Section 53 in The Code of Criminal Procedure 1973

53 Cr.P.C. Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words:

गिरफ्तार किए गये व्यक्ति की चिकित्सक द्वारा चिकित्सकीय जांच कराने संबंधी धारा  हैं। यदि मामले की परिस्थितियों के अनुसार इस प्रकार के चिकित्सकीय परीक्षण से अपराध घटित होने संबंधी किसी प्रकार के साक्ष्य के मिलने की संभावना हो, तो गिरफ्तार व्यक्ति की चिकित्सकीय जांच कराई जा सकती है। चिकित्सकीय जांच में रक्त या वीर्य का सेंपल (sample) लिया जाना भी सम्मिलित है’ यदि अपराधी या गिरफ्तार किया गया व्यक्ति कोई महिला हो, तो उसके शरीर की परीक्षा केवल महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिये धारा 53 के अन्तर्गत की जाने वाली शारीरिक परीक्षा में रक्त, रक्त के धब्बों, वीर्य (सीमन), थूक, स्वेद बाल के नमूनों, अंगुली चिह्नों, नाखून की कतरनों, डी० एन० ए० प्रोफाइल टेस्ट आदि ऐसे सभी आधुनिकतम तकनीकी परीक्षणों का भी समावेश है जिन्हें रजिस्ट्रीकृत चिकित्सक आवश्यक समझता है। यह प्रावधान संशोधन 2005के द्वारा धारा 53 के स्पष्टीकरण के रूप में अन्तः स्थापित किया गया है।यदि गिरफ्तार किया व्यक्ति चाहता है कि उसका शारीरिक चिकित्सीय परीक्षण करा लिया जाये ताकि वह यह साबित कर सके कि उसके शरीर के विरुद्ध किसी ने कोई अपराध किया है, तो मजिस्ट्रेट उसकी यह . प्रार्थना स्वीकार कर उसके शारीरिक परीक्षा के निर्देश दे सकता है। परन्तु यदि मजिस्ट्रेट यह समझता है कि उक्त प्रार्थना केवल विलंब करने या तंग करने के लिये की गयी है, तो वह उसे अस्वीकार भी कर सकता है।

Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।

53 Cr.P.C. पुलिस अधिकारी की प्रार्थना पर चिकित्सा व्यवसायी द्वारा अभियुक्त की परीक्षा –

(1) जब कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है जो ऐसी प्रकृति का है और जिसका ऐसी परिस्थितियों में किया जाना अभिकथित है कि यह विश्वास करने के उचित आधार हैं कि7उसकी शारीरिक परीक्षा ऐसा अपराध किए जाने के बारे में साक्ष्य प्रदान करेगी, तो ऐसे पुलिस अधिकारी की, जो उप निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, प्रार्थना पर कार्य करने में रजिस्ट्रीकृत चिकित्स व्यवसायी के लिए और सद्भावपूर्वक उसकी सहायता करने में और उसके निदेशाधीन कार्य करने में किसी व्यक्ति के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की ऐसी परीक्षा करे जो उन तथ्यों को, जो ऐसा साक्ष्य प्रदान कर सकें, अभिनिश्चित करने के लिए उचित रूप से आवश्यक है। और उतना बल प्रयोग करे जितना उस प्रयोजन के लिए उचित रूप से आवश्यक है।

(2) जब कभी इस धारा के अधीन किसी स्त्री की शारीरिक परीक्षा की जानी है तो ऐसी परीक्षा केवल किसी महिला द्वारा जो रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी है या उसके पर्यवेक्षण में की जाएगी।

¹[ स्पष्टीकरण- इस धारा में और धारा 53-क और धारा 54 में

(क) “परीक्षा” में खून, खून के धब्बों, सीमन, लैंगिक अपराधों की दशा में

सुआब, थूक और स्वेद, बाल के नमूनों और उंगली के नाखून की कतरनों की आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकों के, जिनके अंतर्गत D.N.A. प्रोफाइल करना भी है, प्रयोग द्वारा परीक्षा और ऐसे अन्य परीक्षण, जिन्हें रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी किसी विशिष्ट मामले में आवश्यक समझता है, सम्मिलित होंगे;

(ख) “रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी” से वह चिकित्सा व्यवसायी अभिप्रेत है, जिसके पास भारतीय चिकित्सा परिषद् अधिनियम, 1956 की धारा 2 के खण्ड (ज) में परिभाषित कोई चिकित्सीय अर्हता है और जिसका नाम राज्य चिकित्सा रजिस्टर में प्रविष्ट किया गया है। ]

1.दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 (2005 का 25) की धारा 8 द्वारा (23-6-2006 से ) प्रतिस्थापित। 

सुप्रीम  कोर्ट  के 53 Cr.P.C.से  सम्बंधित  निर्णय-

1.अनिल अनन्तराव लोखंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य के वाद 1981 क्रि० लॉ ज० 125 में बम्बई उच्च न्यायालय ने अभियुक्त की शारीरिक परीक्षा सम्बन्ध की सविस्तार व्याख्या करते हुये कहा है कि

(i) उस अभियुक्त की भी शारीरिक परीक्षा करायी जा सकती है जो जमानत पर छोड़ा गया है क्योंकि ऐसा व्यक्ति अप्रत्यक्षतः न्यायालय की अभिरक्षा में होता है।

(ii) धारा 53 के अन्तर्गत अभियुक्त की शारीरिक परीक्षा केवल उसके शरीर के ऊपरी अवयवों (अंगों) तक ही सीमित न होकर शरीर की आंतरिक अंगों के प्रति भी करायी जा सकती है। अतः रक्त परीक्षण हेतु अभियुक्त के खून का नमूना लिया जा सकता है। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के उल्लंघन में नहीं माना जायेगा।

(iii) अभियुक्त की शारीरिक परीक्षा अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या न्यायालय द्वारा भी करायी जा सकती है।

2.शीला बनाम महाराष्ट्र राज्य 1983 क्रि० लॉज० 642 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि अभियुक्त या गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को स्वयं की शारीरिक परीक्षा कराने का अधिकार प्रदान किया गया है। लेकिन अधिकांश को इसकी जानकारी नहीं होती, अतः वे इसकी मांग नहीं करते। अतः यदि अभियुक्त या गिरफ्तार किया व्यक्ति पुलिस द्वारा प्रताड़ित या यातनायें दी जाने की शिकायत करता है, तो मजिस्ट्रेट का यह कर्तव्य है कि वह अभियुक्त को बताये कि यदि वह चाहे, तो स्वयं की शारीरिक परीक्षा के अधिकार का प्रयोग कर सकता है, जो साक्ष्य के रूप में उसके लिये सहायक हो सकता है।

3.थोगोरानी बनाम उड़ीसा राज्य 2004 क्रि० लॉज० 4003 (उड़ीसा) वाद में धारा 53 के अधीन अभियुक्त के मेडिकल परीक्षण के महत्व का उल्लेख करते हुये उड़ीसा उच्च न्यायालय ने अभिकथन किया कि इससे न केवल अभियुक्त की दोषसिद्धि में मदद मिलती है, अपितु यह उसके दोषमुक्ति के लिये भी सहायक होती है। यदि अभियुक्त अपना डी० एन० ए० परीक्षण कराने तथा इस हेतु रक्त का नमूना देने से इन्कार करता है तो उसके प्रतिकूल निष्कर्ष (Adverse inference) निकाला जा सकता है। न्यायालय ने यह मत भी प्रकट किया कि धारा 53 में पुलिस द्वारा निवेदन किया जाने पर अभियुक्त की चिकित्सीय परीक्षा का प्रावधान है लेकिन न्यायालय को भी यह शक्ति प्रदान की जानी चाहिये कि वह आवश्यकतानुसार अभियुक्त का मेडिकल परीक्षण कराने का निर्देश दे सके। इस बाद में अभियुक्त के विरुद्ध आरोप कि उसने पीड़िता स्त्री को विवाह का झूठा आश्वासन देकर उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किये, जिसके परिणामस्वरूप, उनके दो बच्चे उत्पन्न हुए। अत: इस प्रकरण के विचारण में बच्चों के पैतृत्व के निर्धारण हेतु अभियुक्त का डी० एन० ए० परीक्षण कराया जाना उचित एवं आवश्यक माना गया।

4.सन्ना ईरन्ना बनाम कर्नाटक राज्य, 1983 (1) केरल लॉ ज० 115 के वाद में स्पष्ट किया कियदि अभियुक्त ने विचारण में यह तर्क प्रस्तुत किया हो कि वह अस्वस्थ मस्तिष्क का है तथा न्यायालय ने उसे उक्त आधार पर दोषमुक्त कर दिया हो, तो दोषमुक्ति के पश्चात् उसे चिकित्सकीय परीक्षण के लिये गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।।

5.महाराष्ट्र राज्य बनाम क्रिश्चियन कम्युनिटी वेलफेयर काउन्सिल ऑफ इण्डिया (2003) 8 एस० सी० सी० 546 के बाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि प्रत्येक मामले में अभियुक्त की गिरफ्तारी के पश्चात् तथा उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने के पूर्व उसकी चिकित्सीय परीक्षा होनी चाहिये तथा इसका निवारण थाने की पुलिस डायरी में दर्ज किया जाना चाहिये। उक्त चिकित्सीय रिपोर्ट अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करते समय मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत की जानी चाहिये।

6.उच्चतम न्यायालय ने श्रीमती सेल्वी एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य ए०आई०आर० 2010 सु० को० 1974 के वाद में स्पष्ट किया कि धारा 53 में प्रयुक्त ‘ऐसे अन्य परीक्षण’ (Such other tests) में नाकों टेस्ट (Narco-test) शामिल नहीं है। धारा 53 के स्पष्टीकरण के अनुसार पॉलीग्राफ परीक्षण (Polygraph test) तथा ब्रेन फिंगरप्रिण्ट परीक्षण (BEAP) चिकित्सीय परीक्षण से भिन्न माने गये हैं तथा व्यक्ति के शरीर के अन्दर पदार्थों जैसे रक्त, वीर्य, पेशाब, बाल (hair), शौच (stools) आदि का भौतिक आदि की अनुक्रिया (response) सीधे मस्तिष्क से जुड़े रहते हैं। अतः नार्को टेस्ट पॉलीग्राफ टेस्ट तथा ब्रेन फिंगरप्रिण्ट टेस्ट आदि को धारा 53 के अधीन चिकित्सीय परीक्षा (Medical examination) नहीं माना गया है। परन्तु डी० एन० ए० प्रोफाइलिंग को संशोधित धारा 53 के अधीन अभिव्यक्त रूप से चिकित्सीय परीक्षा के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है।अभियुक्त की चिकित्सकीय जांच को संविधान के अनुच्छेद 20 (3) में वर्णित उसके आत्म अभिशंसन (self incrimination) के सांविधानिक विशेषाधिकार का उल्लंघन नहीं माना गया है।

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