Section 50A in The Code of Criminal Procedure 1973
50A Cr.P.C. Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words:
किसी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों से जल्द से जल्द अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा तथा वह अपनी प्रतिरक्षा हेतु मनचाहा वकील भी नियुक्त कर सकेगा।” अनुच्छेद 22 (1) में प्रतिपादित नियम के अनुरूप इस उपधारा में यह उपबंधित किया गया है कि बिना वारंट गिरफ्तार करने वाला पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के तुरन्त बाद गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के नातेदारों या मित्रों को गिरफ्तारी के आधारों से सूचित करेगा। यदि इस प्रकार गिरफ्तार किया गया व्यक्ति किसी जमानतीय अपराध का अभियुक्त है, तो उस दशा में पुलिस अधिकारी गिरफ्तार व्यक्ति को यह इत्तिला देगा कि वह जमानत पर छोड़े जाने का हकदार है तथा वह स्वयं की ओर से जमानतियों का प्रबंध करे।
Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।
50क. गिरफ्तारी करने वाले व्यक्ति की, गिरफ्तारी आदि के बारे में, नामित व्यक्ति को जानकारी देने की बाध्यता-
(1) इस संहिता के अधीन कोई गिरफ्तारी करने वाला प्रत्येक
पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति ऐसी गिरफ्तारी और उस स्थान के बारे में, जहां गिरफ्तार किया गया व्यक्ति रखा जा रहा है, जानकारी उसके मित्रों, नातेदारों या ऐसे अन्य व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किये गये व्यक्ति द्वारा ऐसी जानकारी देने के प्रयोजन के लिये प्रकट या नामनिर्दिष्ट किया जाए, तुरंत देगा।
(2) पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को, जैसे ही वह पुलिस थाने में लाया जाता है, उपधारा (1) के अधीन उसके अधिकारों के बारे में सूचित करेगा ।
(3) इस तथ्य की प्रविष्टि कि ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी की इत्तिला किसे दी गयी है, पुलिस थाने में रखी जाने वाली पुस्तक में ऐसे प्ररूप में, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विहित किया जाए, की जाएगी।
(4) उस मजिस्ट्रेट का, जिसके समक्ष ऐसा गिरफ्तार किया गया व्यक्ति, पेश किया जाता है, यह कर्तव्य होगा कि वह अपना समाधान करे कि उपधारा (2) और उपधारा (3) की अपेक्षाओं का ऐसे गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के सम्बन्ध में अनुपालन किया गया है।]
सुप्रीम कोर्ट के 50A Cr.P.C. से संबंधित निर्णय
1. मध्य प्रदेश राज्य बनाम शोभाराम, ए० आई० आर० 1966 सु० को० 1910.निरुद्ध व्यक्ति को जमानत पर छोड़े जाने की उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली जाने पर भी उसे अपनी गिरफ्तारी के कारण जानने का अधिकार बना रहता है।
2. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर बनाम महाराष्ट्र राज्य 2011 (10) स्केल 771 ए० आई० आर० 2011 सु० को० 2211 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि जहाँ अभियुक्त के विरुद्ध खतरनाक हथियारों या साधनों को अपनाते हुये लोगों को भड़काने तथा बलवा करने के प्रयास का आरोप हो और इसके अलावा विस्फोटकों द्वारा विस्फोट कर जान-माल को हानि कारित की हो, तो अवैध गतिविधियां (निवारण) अधिनियम, 1967 के अधीन उसकी गिरफ्तारी की जाना न्यायोचित होगा। परन्तु गिरफ्तारी करने वाले व्यक्ति या पुलिस को इसकी सूचना गिरफ्तार किये गये व्यक्ति द्वारा नामित व्यक्ति को दी जाना अनिवार्य है कि वह उसकी जमानत आदि हेतु प्रयास कर सके।
3. विन्देश्वरी महतो बनाम स्टेट, 1973 पटना लॉ ज० रि० 432 यदि गिरफ्तारी के बाद गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को आंतरिक आदेश की सूचना न दी जाकर केवल उसके सार से ही अवगत कराया जाता है, तो ऐसी अभिकथित धारणा के अन्तर्गत की गयी गिरफ्तारी अवैध – नहीं होगी।
Note .धारा 51 A दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 (2005 का 25) की धारा 7 द्वारा (23-6-2006 से) अन्तःस्थापित।