43 Cr.P.C. प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी और ऐसी गिरफ्तारी पर प्रक्रिया:-
( 1 ) कोई प्राइवेट व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को जो उसकी उपस्थिति में अजमानतीय और संज्ञेय अपराध करता है , या किसी उद्घोषित अपराधी को गिरफ्तार कर सकता है या गिरफ्तार करवा सकता है और ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अनावश्यक विलंब के बिना पुलिस अधिकारी के हवाले कर देगा या हवाले करवा देगा या पुलिस अधिकारी की अनुपस्थिति में ऐसे व्यक्ति को अभिरक्षा में निकटतम पुलिस थाने ले जाएगा या भिजवाएगा ।
( 2 ) यदि यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसा व्यक्ति धारा 41 के उपबन्धों के अंतर्गत आता है तो पुलिस अधिकारी उसे फिर से गिरफ्तार करेगा । ( 3 ) यदि यह विश्वास करने का कारण है कि उसने असंज्ञेय अपराध किया है और वह पुलिस अधिकारी की मांग पर अपना नाम और निवास बताने से इंकार करता है , या ऐसा नाम या निवास बताता है , जिसके बारे में ऐसे अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि वह मिथ्या है , तो उसके विषय में धारा 42 के उपबन्धों के अधीन कार्यवाही की जाएगी ; किन्तु यदि यह विश्वास करने का कोई पर्याप्त कारण नहीं है कि उसने कोई अपराध किया है तो वह तुरंत छोड़ दिया जाएगा ।
43 Cr.P.C. से संबंधित निर्णय
1. गौरी प्रसाद बनाम चार्टर्ड बैंक ऑफ इंडिया ए ० आई ० आर ० 1925 कल ० 884 और दोस्त मुहम्मद बनाम सम्राट ए ० आई ० आर ० 1945 लाहौर 334 के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि यह आवश्यक नहीं है कि गिरफ्तार करने वाला प्राइवेट व्यक्ति संज्ञेय तथा अजमानतीय अपराध कारित होते समय भौतिक रूप से घटना स्थल पर उपस्थित हो ।यदि उसके समक्ष अपराध किया जाता है , तो वह ऐसे अपराधी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा भी गिरफ्तार करवा सकता है
2. ब्रजिन्दर सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य 2012 लॉ सूट 142 ( एस ० सी ० ) के वाद में अभियुक्त के विरुद्ध आरोप था कि वह मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश हेतु व्यावसायिक परीक्षा मण्डल द्वारा आयोजित प्री – मेडिकल एण्ट्रेन्स टेस्ट में किसी अन्य अभ्यर्थी की जगह उसका प्रतिरूपण ( impersonate ) करते हुये उक्त परीक्षा दे रहा था । उसे व्यावसायिक परीक्षा मण्डल में परीक्षा हॉल में ड्यूटी कर रहे वीक्षक ( invigitor ) ने प्रतिरूपण करते हुये पकड़ा था । अभियुक्त का कहना था कि वह वही परीक्षार्थी था जिसके नाम से वह परीक्षा दे रहा था , अतः उसके द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है । अभियुक्त के फोटोग्राफ को सागर स्थित विधि – विज्ञान प्रयोगशाला ( Forensic laboratory ) को परीक्षण हेतु भेजा गया । इस दौरान प्रकरण की जांच के दौरान अभियुक्त को मेडिकल कॉलेज में कक्षा में उपस्थित रहने की अस्थायी अनुमति इस शर्त के साथ दो गयी कि यदि वह प्रतिरूपण के अपराध का दोषी पाया गया तो उसे कक्षा में हाजिरी की पात्रता नहीं होगी और उसके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही की जायेगी । फोरेन्सिक परीक्षण में विलम्ब को देखते हुये उच्चतम न्यायालय ने इस • प्रकरण में तीन विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त कर दी जिसमें एक प्रोफेसर ऑफ एनाटॉमी होना आवश्यक था तथा समिति की रिपोर्ट आने तक अभियुक्त को कक्षायें अटेण्ड करने की अस्थायी अनुमति दी गयी ।