327 आईपीसी संपत्ति उद्धापित (Inaugurated) करने के लिए अवेध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करना – जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा की उपहत व्यक्ति से , या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई
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326 आईपीसी खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना- उस दशा के सिवाय जिसके लिए धारा 335 में उपबंध है , जो कोई असन , वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा , जो यदि आक्रामक आयुध के तौर
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325 आईपीसी स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिए दंड – उस दशा के सिवाय , जिसके लिए धारा 335 में उपबंध है , जो कोई स्वेच्छया घोर उपहति करीत करेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,
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324 आईपीसी खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करना – उस दशा के सिवाय , जिसके लिए धार 334 के उपबंध है , जो कोई आसान वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा जो यदि
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323 आईपीसी स्वेच्छया उपहति कारित करने के लिए दंड – उस दशा के सिवाय , जिसके लिए धारा 334 में उपबंध है , जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि
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धारा 105 IPC संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना – संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारंभ होती है! संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी
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धारा 106 IPC घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जब तक कि निर्दोष व्यक्ति को हानि होने का जोखिम है – जिस हमले से मृत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित होती है, उसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का
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धारा 104 IPC ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है – यदि वह वह अपराध जिसके किए जाने या जिसके किए जाने के प्रयत्न से प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर
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धारा 103 IPC कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता है – संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार धारा 99 में वर्णित निर्बन्धनो के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छाया
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धारा 102 IPC शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना – शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा
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