98 IPC In Hindi
98 IPC In Kanoon Ki Roshni Mein Words-:
प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार का अधिकार आपको पागल या नासमझ व्यक्ति के खिलाफ तो मिलता ही हैसाथ ही बालक के विरुद्ध आपको यह अधिकार प्राप्त होता है !
धारा 98 IPC ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित आदि हो- कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्रविकृति या मत्ता के कारण या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्रायवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता
दृष्टांत
(क) य पागलपन के असर में क को जान से मारने का प्रयत्न करता है य किसी अपराध का दोषी नहीं है किंतु क को प्रायवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है जो वह य के स्वास्थ्यचित होने की दशा में रखता!
टिप्पणी
धारा 98 यह सिद्धांत प्रतिपादित करती है कि प्रायवेट प्रतिरक्षा का अधिकार ऐसे आक्रमणकारियों के विरुद्ध प्राप्त है जो मानसिक तौर पर स्वस्थचित नहीं होने के कारण कोई क्षति कार्य करने के बावजूद भी उसके लिए दोषसिद्ध नहीं होंगे क्योंकि वह मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं है, अर्थात एक सामान्य व्यक्ति को एक सामान्य व्यक्ति के विरुद्ध प्रायवेट प्रतिरक्षा का जितना अधिकार प्राप्त है उतना ही अधिकार उसे उस व्यक्ति के विरुद्ध ही प्राप्त है जो भारतीय दंड संहिता द्वारा प्रदत किसी प्रतिरक्षा के कारण अपने कार्य के लिए दायी नहीं है !( और सरल रूप में समझे कि कोई व्यक्ति जो विकृत जीत है यानी उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और यह कोई व्यक्ति जो नशे की हालत में है जिसको यह नहीं पता कि वह क्या प्राप्त करने वाला है या कर रहा है तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ भी आपको प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त है)