97 IPC In Hindi

97 IPC In Kanoon Ki Roshni Mein Words -: 

यह धारा आपको स्वयं के शरीर की सुरक्षा और स्वयं की संपत्ति की सुरक्षा का तो अधिकार तो देती है साथ ही आपको दूसरे व्यक्ति के भी शरीर और संपत्ति की सुरक्षा करने का अधिकार देती है !

धारा 97 IPC शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार – धारा 99 में अंतर्विष्ट निर्बंधनों के अध्ययधीन हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह –

पहला – मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करें

दूसरा – किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध जो चोरी लूट रिष्टी या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाला अपराध है या जो चोरी लूट रिष्टी या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की चाहे जंगम हो चाहे स्थावर संपत्ति प्रतिरक्षा करें !

टिप्पणी

धारा 97 को समझिए इस धारा में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपने शरीर और संपत्ति के साथ किसी अन्य व्यक्ति के शरीर और संपत्ति की प्रतिरक्षा करने का अधिकार है परंतु यह अधिकार संहिता की धारा 99 में अंतर्विष्ट कतिपय निर्बंधनों या परीसीमाओं के अध्ययधीन अधीन है, धारा 97 के पहले भाग के अनुसार हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करें ! चूँकि मानव शरीर पर प्रभाव डालने वालेेेेेेे अपराध संहिता की  धाराओं 299 से लेकर 377 तक के बीच उल्लेखित हैंअतः यह स्पष्ट है कि शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार बहुत सारे मामलों या परिस्थितियों में प्राप्त है इस धारा के दूसरे भाग के अनुसार हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह चोरी लूट दृष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाले आपराधिक कार्य के विरुद्ध अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की जंगम या स्थावर संपत्ति की प्रतिरक्षा करें!

जजमेंट

आकौनती बोरा बनाम राज्य मैं गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने अभीनिर्धारित किया कि संपत्ति की प्रायवेट प्रतिरक्षा का प्रयोग करते समय अतिचारी को बेकब्जा करने या उसे बाहर निकाल देने में अतिचार कारित करने में काम में ली गई तात्विक चीजों को भी निकाल फेंकना सम्मिलित है पर जहां दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 145 के अधीन आदेश पारित कर यह घोषणा की गई है कि किसी विवादित संपत्ति में एक पक्षकार का कब्जा है और जिसमें उसका कब्जा तब तक बना रहेगा जब तक की विधि के सम्यक अनुक्रम में उसे उसे निष्कासित ना कर दिया जाए तो उस पक्षकार को उस संपत्ति को नष्ट करने का अधिकार नहीं है और इसलिए इस प्रकार की संपत्ति को नष्ट होने से बचाने के लिए विपक्षी पक्षकार को प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त होगा जहां अपनी अवयस्क पुत्री को किसी व्यक्ति द्वारा लैंगिक उत्पीड़न होता देख कर अभियुक्त ने उस व्यक्ति पर हमला कर दिया तो ऐसी परिस्थिति में भी अभियुक्त को प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त है और यह तथ्य कि क्या मैंथुन उसकी पुत्री की सम्मति से किया जा रहा था अथवा नहीं महत्वपूर्ण नहीं है यह तथ्य की बाद में उस व्यक्ति की मृत्यु गिरने से हुई आंतरिक क्षति के कारण हुई या अभियुक्त द्वारा उस पर वार करने से या यह भी महत्वपूर्ण नहीं है अतः धारा 325 के अधीन अभियुक्त की दोषसिद्धि अपास्त करने योग्य है!

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