416 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words:प्रतिरूपण (personation ) द्वारा छल-
कोई व्यक्ति “प्रतिरूपण द्वारा छल करता है”, यह तब कहा जाता है,
*जब वह ऐसा आचरण करे दर्शाए कि वह कोई और व्यक्ति है, या
*एक व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के रूप में जानते हुए बताए की वह व्यक्ति यही है , या
*यह प्रदर्शित करे करके कि वह खुद या कोई अन्य व्यक्ति, कोई ऐसा है जो कोई अलग ही व्यक्ति है, ऐसा करके छल करता है।
Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।
416. प्रतिरूपण द्वारा छल-
कोई व्यक्ति “प्रतिरूपण द्वारा छल करता है”, यह तब कहा जाता है, जब वह यह अपदेश करके कि वह कोई अन्य व्यक्ति है, या एक व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के रूप में जानते हुए प्रतिस्थापित करके, या यह व्यपदिष्ट करके कि वह या कोई अन्य व्यक्ति, कोई ऐसा व्यक्ति है, जो वस्तुतः उससे या अन्य व्यक्ति से भिन्न है, छल करता है।
स्पष्टीकरण – यह अपराध हो जाता है चाहे वह व्यक्ति जिसका प्रतिरूपण किया गया है, वास्तविक व्यक्ति हो या काल्पनिक ।
दृष्टान्त
(क) क, उसी नाम का अमुक धनवान बैंकर है, इस अपदेश द्वारा छल करता है। क प्रतिरूपण द्वारा छल करता है ! (ख) ख, जिसकी मृत्यु हो चुकी है, होने का अपदेश करने द्वारा क छल करता है। के प्रतिरूपण द्वारा छल करता है।
सुप्रीम कोर्ट के 416 I.P.C. से सम्बंधित निर्णय-
1.सुशील कुमार दत्त बनाम राज्य, 1985 क्रि० एल० जे० 1948 (कलकत्ता) अभियुक्त, जो अनुसूचित जाति का नहीं था, ने अनुसूचित जाति के परीक्षार्थी के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी और उसमें और साक्षात्कार में वह उत्तीर्ण हो गया, और उसे उस दुर्व्यपदेशन के आधार पर नियुक्ति दे दी गई, यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह प्रतिरूपण द्वारा छल के लिए दोषी है।
2.इनरी के रामाराव, 1960 क्रि० एल० जे० 1181 अभियुक्त के० व्ही० रामाराव जो कि एक ओवरसियर था, जिसके पास इंजीनियरिंग की डिग्री नहीं थी, ने यह मिथ्या व्यपदेशन किया कि वह के० रामाराव था, जो कि मैसूर विश्वविद्यालय का इंजीनियरिंग स्नातक था, और उसने लोक सेवा आयोग की स्वयं को उचित संवर्ग में सरकारी सेवा में चयनित किए जाने के लिए उत्प्रेरित किया, यह अभिनिर्धारित किया गया कि उसने प्रतिरूपण द्वारा छल कारित किया। विश्वविद्यालय परीक्षाओं में समान सिद्धान्त लागू होते हैं।
5 .खराती राम बनाम राज्य, 1972 क्रि० एल० जे० 254 (दिल्ली).जहां अभियुक्त कुछ मनीआर्डरों में उल्लिखित रकम पाने वाला व्यक्ति नहीं था, परन्तु उसने डाकिया के समक्ष मिथ्या व्यपदेशन किया कि वही रकम पाने वाला व्यक्ति था, और अपनी पहचान के लिए उसने मिथ्या पहचान पत्र दिखाया, और इस प्रकार उसने अपने को रकम देने के लिए डाकिया को उत्प्रेरित किया, और उसने मनीआर्डरों पर रकम प्राप्तकर्ता के रूप में हस्ताक्षर भी किए, उसे प्रतिरूपण द्वारा छल के लिए दोषी ठहराया गया है
6.परन्तु जगत नारायण बनाम राज्य, ए० आई० आर० 1967 इलाहाबाद 123 मे अपने भाई, जो मनी आर्डर में रकम पाने वाला था, के द्वारा प्राधिकृत किए जाने पर अभियुक्त डाक घर में गया, और अपने भाई के नाम से हस्ताक्षर कर उसने रकम प्राप्त कर ली, उसे प्रतिरूपण द्वारा छल के लिए दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने वेईमानी से कार्य नहीं किया।
7.रामजस बनाम उत्तर प्रदेश राज्य ए० आई० आर० 1974 एस० सी० 184 में चार अन्य व्यक्तियों के साथ अपीलार्थी के विरुद्ध संहिता की धारा 120 ख और धाराओं 420/511, 467, 468 एवं 471 सपठित धारा 120-ख के अधीन विचारण किया गया। इन धाराओं के अधीन उसे सिद्धदोष किया गया और सभी के लिये कुल तीन वर्ष के कठिन कारावास और तीन हजार रुपये जुर्माने से दण्डित किया गया जिसके व्यतिक्रम में दो वर्ष के अतिरिक्त कारावास का आदेश दिया गया। अपीलार्थी द्वारा अपील किये जाने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसे धारा 419 सपठित धारा 109 के अधीन इस आधार पर सिद्धदोष किया कि उसने एक व्यक्ति ‘क’ के मिथ्या शपथ पत्र के निष्पादन का दुष्प्रेरण किया था, जिस पर हस्ताक्षर किसी अन्य व्यक्ति ‘ख’ ने ‘क’ बनकर किया था और शपथ आयुक्त के समक्ष ‘ख’ की उसने ‘क’ कहकर पहचान की थी। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अभियुक्त, जो दोषपूर्ण पहचान से शपथ आयुक्त को शपथ पत्र अनुप्रमाणित करने के लिए केवल उत्प्रेरित करता है, प्रतिरूपण द्वारा छल का दोषी नहीं है, क्योंकि शपथ आयुक्त के द्वारा किया गया शपथ पत्र अनुप्रमाणित करने का कार्य शपथ आयुक्त को शारीरिक, मानसिक, ख्याति सम्बन्धी या साम्पत्तिक नुकसान या अपहानि नहीं कारित करता।
8.क्षितीश चन्द्र चक्रवर्ती बनाम एम्प०, 1937 क्रि० एल० जे० 577 (कलकता) अभियुक्त, जी वर्ण ब्राह्मण जाति का व्यक्ति था, ने एक लड़की की मां को यह मिथ्या व्यपदेशन किया कि वह बारेन्द्र ब्राह्मण जाति का था, और इस प्रकार उसने लड़की का विवाह अपने साथ करने के लिए लड़की की मां को उत्प्रेरित किया, जिसके लिए मां सम्मति नहीं देती यदि अभियुक्त अपनी वास्तविक जाति बतला देता, और इस विवाह के कारण लड़की की मां को उसकी जाति से बहिष्कृत कर दिया गया, यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त प्रतिरूपण द्वारा छल के लिए दोषी है।
9.महीम चन्दर सोल बनाम एम्म०, ( 1871) 16 डब्ल्यू० आर० ( क्रि०) 42. देखिए दुर्गा दास बनाम एम्प०, 1904 क्रि० एन०. जो० 949, एम्पल बनाम झंडा सिंह, 1918 क्रि० एल०जे० 335, और राज बहादुर बनाम एम्प०, 1918 क्रि० एल० जे० 931इसी प्रकार, जहाँ लड़की को ब्राह्मण बतलाकर अभियुक्त ने एक व्यक्ति को मिथ्या व्यपदेशन किया, और उस व्यक्ति के भाई से एक दलित उस लड़की के विवाह के लिए इस प्रकार धन प्राप्त करने के लिए उस व्यक्ति को उत्प्रेरित किया, उसे प्रतिरूपण द्वारा छल के लिए दोषी ठहराया गया।
10.जी० व्ही०राव बनाम एल०एच० व्ही० प्रसाद में अपनी बहन को कहीं अधिक ऊँची जाति का बताकर अभियुक्त ने याची के साथ उसका विवाह कर दिया। याची ने विवाह इस विश्वास से किया कि वह अपनी ही जाति और हैसियत की महिला से विवाह कर रहा है। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अभियुक्त ने याची से प्रवंचना कर उसको कपटपूर्वक उत्प्रेरित किया कि वह ऐसा कार्य करे, अर्थात् पूर्णरूपेण प्रतिषिद्ध जाति की महिला से विवाह करे, जिसे अभियुक्त प्रत्यर्थी द्वारा इस प्रकार प्रबंचित न किया गया होता तो वह न करता। अतः यह अपराध धारा 415 के द्वितीय भाग में आता है और उच्च न्यायालय के द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट को इस आधार पर अभिखण्डित करना कि धारा 415 आवश्यक रूप से संपत्ति से संबंधित है सही नहीं है।
11. एम०एन०ए०अचर बनाम डी०एल०राजगोपाल 1977 क्रि०एल०जे०(एन०औ० सी०)228 ( कर्नाटक ) के वाद मे अभियुक्त ने परिवादी और उसकी पुत्री को अपने को अविवाहित बतलाकर, जो वह नहीं था, पुत्री का विवाह अपने साथ करने के लिए बेईमानी से उन दोनों को उत्प्रेरित किया, यह प्रतिरूपण द्वारा छल है। यह कहना सही नहीं है कि केवल इसलिए कि अभियुक्त ने कभी भी अपना नाम नहीं बदला था या वह वहीं व्यक्ति बना रहा जो वह था, यद्यपि उसने अपने व्यपदेशन के द्वारा अपनी कोटि या हैसियत बदल ली थी, यह अपराध कारित नहीं किया जा सकता था ।