409 IPC IN HINDI

409 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words:-

लोक सेवक ( public servant)द्वारा या बैंकर , व्यापारी या अभिकर्ता(agent)द्वारा आपराधिक न्यासभंग (अमानत मे ख्यानत )

इस धारा में उल्लिखित प्रकारों के व्यक्ति अत्यधिक विश्वास के कार्य निष्पादित करते हैं , और इसलिए विधि उनसे यह आशा करती है कि वे ईमानदारी से अपना कार्य करें । इसलिए ऐसी ईमानदारी के कार्य का उल्लंघन कर आपराधिक न्यासभंग ( 405 IPC ) करने पर विधि में कठोर कार्रवाई की व्यवस्था है ।

अभिव्यक्ति ‘ लोकसेवक ‘ का अर्थ वही है IPC की धारा 21 में उल्लिखित है ।

बैंकर वह व्यक्ति है जो ऐसा धन प्राप्त करता है जिसे धन का स्वामी अपनी आवश्यकतानुसार पुनः निकाल सकता है , जिसमें ग्राहक उधारदाता और बैंकर कर्जदार होता है , और इसमें बैंक का यह दायित्व है कि ग्राहक के खाते में जमा पूंजी के ग्राहक के चेक को वह मान्य करे । बैंक में कार्यरत व्यक्ति बैंकर नहीं है । व्यापारी वह व्यक्ति है जो सुदूर देशों में व्यापार करता है , और वह भी जो माल के विक्रय और क्रय करने में लेन देन करता है ।                                                    फेक्टर वह अभिकर्ता है जिसे मालिक वह माल या वाणिज्य , जो मालिक उसे दे या मालिक के लिए उसे दिया जाए , प्रतिकर या दलाली या कमीशन के आधार पर बेचने के लिए नियोजित करता है ।

दलाल वह अभिकर्ता है जिसे व्यवसाय , वाणिज्य और नौसंचालन से सम्बन्धित विषय में अन्य व्यक्तियों के बीच सौदा या संविदा करने के लिए नियोजित किया जाता है , और जो यह कार्य दोनों पक्षकारों के आशयों को स्पष्ट करते हुए और विषय को इस प्रकार से समझौते के द्वारा तय करता है कि जो उसे नियोजित करते हैं वे व्यक्तिगत रूप से व्यवहार करें । आमतौर पर दलाल दूसरे के साथ बाध्यकारी संविदा करने के लिए केवल एक पक्षकार के द्वारा नियोजित अभिकर्ता है जबकि फेक्टर को सम्पत्ति का कब्जा और निपटारा दोनों न्यस्त किया जाता है , दलाल को बगैर कब्जा दिए हुए सम्पत्ति के बारे में संविदा करने के लिए नियोजित किया जाता है । अटर्नी वह व्यक्ति है जो किसी अन्य के द्वारा उसकी अनुपस्थिति में कुछ करने के लिए नियोजित किया जाता है , और जिसके द्वारा उसे प्रत्यायुक्त किया जाता है उसके स्थान पर और उसकी बारी में अटर्नी को कार्य करने का प्राधिकार प्राप्त होता है । अभिकर्ता न केवल वह व्यक्ति है जो अभिकर्ता की वृत्ति करता है बल्कि वह ऐसा व्यक्ति भी है जिसे व्यवसाय की तरह या अभिकर्त्ता के रूप में कोई सम्पत्ति या सम्पत्ति पर अधिकार न्यस्त किया जाता है ।

Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।

409 ipc लोक सेवक द्वारा या बैंकर , व्यापारी या अभिकर्ता द्वारा आपराधिक न्यासभंग –

जो कोई लोक सेवक के नाते अथवा बैंकर , व्यापारी , फेक्टर , दलाल , अटर्नी या अभिकर्ता के रूप में अपने कारबार के अनुक्रम में किसी प्रकार सम्पत्ति , या सम्पत्ति पर कोई भी अख्त्यार अपने को न्यस्त होते हुए उस सम्पत्ति के विषय मे  , आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह आजीवन कारावास से ,या  दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि दस वर्ष तक के सादा या कठिन कारावास से , दंडित किया जाएगा , और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

सुप्रीम  कोर्ट  के 409 I.P.C. से  सम्बंधित  निर्णय-

1.बुध सिंह बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1974 एस ० सी ० 1354 ग्राम पंचायत के द्वारा किसी बेंकमे जिसका प्रबंधक अभियुक्त था बड़ी – बड़ी धनराशि जमा करवाई गई , और सरपंचों को भुगतान की गई राशियों की काल्पनिक प्रविष्टियाँ पाई गईं , और अभियुक्त ने उनसे यह कहकर कि वे खाद के लिए आवेदन पर हस्ताक्षर कर रहे हैं मिथ्या व्यपदेशन पर उनसे हस्ताक्षर करवाए , यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त इस धारा के अधीन दोषी हैं ।

2 पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने राज्य बनाम केसरी चन्द्र , 1987 क्रि ० एल ० जे ० 549 सा यह अभिनिर्धारित किया है कि सहकारी सोसाइटी के अध्यक्ष और सचिव लोकसेवक नहीं होने के कारण उन पर धारा 409 लागू नहीं होती क्योंकि सहकारी सोसाइटी राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित निगम नहीं है।परन्तु

3.अमूल्यरतन बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1969 पटना 173 किसी बैंक ने किसी सहकारी सोसाइटी के सचिव के माध्यम से सोसाइटी को रकमें उधार दीं , और सचिव ने सदस्यों से उन रकमों को प्राप्त करके बैंक में जमा नहीं की , उसे इस धारा के अधीन दोषसिद्ध किया गया क्योंकि उसके द्वारा सदस्यों से प्राप्त की गई राशि बैंक की ओर से न्यस्त की गई थी

4.डी ० सी ० नान्जप्पा बनाम राज्य , 1971 एस ० सी ० सी ० ( क्रि ० ) 11  किसी व्यक्ति के द्वारा न्यस्त धन को उप – डाकपाल ने बेईमानी से उस व्यक्ति के अंगूठे का चिन्ह लेकर दुर्विनियोजित कर लिया , उसे इस धारा के अधीन दोषी ठहराया गया ।

5.राज्य बनाम वीरेश्वर राव , 1957 क्रि ० एल ० जे ० 892 ( एस ० सी ० )भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम , 19475 की धारा 5 ( 1 ) के अधीन दंडनीय आपराधिक अवचार का अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के अधीन दंडनीय अपराध से भिन्न है और इस धारा को निराकृत नहीं करता,इस अधिनियम की निरसित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम , 1988 अधिनियमित कर दिया गया है

8.ओम प्रकाश बनाम राज्य , 1957 क्रि ० एल ० जे ० 575 ( एस ० सी ० ) आपराधिक न्यासभंग कारित करने वाला लोकसेवक सामान्यतः लोकसेवक के नाते ऐसा नहीं करता , और इसलिए उसके अभियोजन के लिए सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है

9.विष्णु दत्त मिश्र बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1979 एस ० सी ० 825 अभियुक्त को उसके नियोजन से मुक्त कर दिए जाने की सम्भावना थी , और वह अपने दो वर्ष के कारावास के दंडादेश में से साढ़े छह माह का कारावास भुगत चुका यह उचित था कि उसके कारावास की अवधि को घटाकर उतना कर दिया जाए जितना वह भुगत चुका था , और उस पर एक हजार रुपये का जुर्माना भी किया गया ।

10.गुरदेव सिंह साथी बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1979 एम ० सी ० 1195  एक युवा विधि स्नातक को इस धारा के अधीन दोषसिद्ध किया गया , उसके साथ उदार नीति अपनाई गई और उसे एक माह के कठिन कारावास से दंडित किया गया और उस पर पांच सौ रुपये का जुर्माना भी किया गया ?

11.कृपासिंधु पुस्ती बनाम राज्य , 1987 क्रि ० एल ० जे ० 1426 मे घटना को घटित हुए तेरह वर्ष की दीर्घ अवधि व्यतीत हो चुकी थी , तो कारावास के दंडादेश को उतना कम कर दिया जा सकता था जितनी अवधि का कारावास अभियुक्त भुगत चुका था ।10

12.सोमनाथ पुरी बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1972 एस ० सी ० 1490  इस धारा के अधीन परिवीक्षा का लाभ प्रदान नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अपराध आजीवन कारावास से दंडनीय है ।

13.कासिम पिल्लई अब्दुल बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1978 एस ० सी ० 1081  अभियुक्त ने वह रकम लौटा दी जिसके विषय में उसने आपराधिक न्यासभंग कारित किया था , तो उसके विरुद्ध उदार दृष्टिकोण के आधार पर जितनी अवधि तक वह कारावास का दंड भुगत चुका था उतनी अवधि के कारावास का दंडादेश देना उचित है

14.राज्य बनाम प्रेमलाल , 1991 क्रि ० एल ० जे ० 2878  एक डाकपाल ने उस रकम का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लिया जो उसे न्यस्त की गई थी , पर उसके विरुद्ध चालान दाखिल किए जाने के पूर्व ही उसने सम्पूर्ण रकम वापस रख दी , इस आधार पर उसे दोषमुक्त नहीं किया जा सकता

परन्तु

15. नरेन्द्र प्रताप नारायण सिंह बनाम राज्य , ५० आई ० आर ० 1991 एस ० सी ० 1394 , जहाँ उधार विक्रय प्रचलित था , और सी ० आई ० डी ० के द्वारा अन्वेषण प्रारम्भ होनेके पूर्व आवेष्टित धन जमा करवा दिया गया , इस धारा के अधीन दोषसिद्धि नहीं की जा सकती ।

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