405 IPC IN HINDI

405 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words:-आपराधिक न्यासभंग (अमानत मे ख्यानत )

जो कोई सम्पत्ति(चल व अचल सम्पति ) या सम्पत्ति पर कोई भी अख्त्यार ( अधिकार ) किसी तरीके से अपने को मिल जाने बाद जिसे अमानत के रूप मे उसको सुरक्षित रखने  या देख-रेख  करने या  लीगल तरिके  से किसी सम्पति का का काम-काज को चलाने की जिम्मेदारी पूरी करने के लिए अख्त्यार ( हक ) सौप देने  के बाद उस सम्पत्ति का बेईमानी से अपने खुद के अवेध उपयोग  मे लेता है या उस सम्पति पर कब्जा कर लेता है या उसे अपने उपयोग के लिए बदल लेता है या  नियमों  का अवहेलना करता है  या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा करने देता है , वह ” आपराधिक न्यासभंग ” करता है ।

Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।

                                       

405 IPC आपराधिक न्यासभंग –

जो कोई सम्पत्ति या सम्पत्ति पर कोई भी अख्त्यार किसी प्रकार अपने को न्यस्त किए जाने पर उस सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है या उसे अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेता है या जिस प्रकार ऐसा न्यास निर्वहन किया जाता है , उसको विहित करने वाली विधि के किसी निदेश का , या ऐसे न्याय के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गई किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैध संविदा का अतिक्रमण करके बेईमानी से उस सम्पत्ति का उपयोग या व्ययन करता है , या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा करना सहन करता है , वह ” आपराधिक न्यासभंग ” करता है ।

¹[ स्पष्टीकरण ²[ 1 ]  –

जो व्यक्ति , ³[ किसी स्थापन का नियोजक होते हुए , चाहे वह स्थापन कर्मचारी भविष्य निधि और प्रकीर्ण उपबन्ध अधिनियम , 1952 ( 1952 का 19 ) की धारा 17 के अधीन छूट प्राप्त है या नहीं , ] तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा स्थापित भविष्य निधि या कुटुम्ब पेंशन निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी – अभिदाय की कटौती कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से करता है , उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसके द्वारा इस प्रकार कटौती किए गए अभिदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई है । और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय का संदाय करने में , उक्त विधि का अतिक्रमण करके व्यतिक्रम करेगा तो उसके बारे में यह समझा जायेगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।

4[ स्पष्टीकरण 2 –

जो व्यक्ति , नियोजक होते हुए , कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम , 1948 ( 1948 का 34 ) के अधीन स्थापित कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा धारित और शासित कर्मचारी राज्य बीमा निगम निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से कर्मचारी अभिदाय की कटौती करता है , उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसे अभिदाय की वह रकम न्यस्त कर दी गई है , जिसकी उसने इस प्रकार कटौती की है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय के संदाय करने में उक्त अधिनियम का अतिक्रमण करके , व्यतिक्रम करता है , तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।

दृष्टान्त

( क ) क एक मृत व्यक्ति की विल का निष्पादक होते हुए , उस विधि की , जो चीजबस्त को विल के अनुसार विभाजित करने के लिए उसको निदेश देती है , बेईमानी से अवज्ञा करता है , और उस चीजबस्त को अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

( ख ) क भाण्डागारिक है । य यात्रा को जाते हुए अपना फर्नीचर के के पास उस संविदा के अधीन न्यस्त कर जाता है कि वह भाण्डागार के कमरे के लिए ठहराई गई राशि के दे दिए जाने पर लौटा दिया जाएगा । क उस माल को बेईमानी से बेच देता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

1 . 1973 के अधिनियम सं ० 40 की धारा 9 द्वारा अन्त : स्थापित ,

2. 1975 के अधिनियम सं ० 38 की धारा 9 द्वारा स्पष्टीकरण के रूप में संख्यांकित किया गया ।

3. 1988 के अधिनियम सं ० 33 की धारा 27 द्वारा अन्तःस्थापित ,

4. 1975 के अधिनियम सं ० 38 की धारा 9 द्वारा अन्तःस्थापित .

सुप्रीम  कोर्ट  के 405  IPC से  संबंधित  निर्णय

1. वेलजी राघवजी बनाम राज्य ( 1965 ) 2 क्रि ० एल ० जे ० 431 ( एस ० सी ० ) , देखिए जी ० एस ० राजकुमार बनाम सुब्रमणियम पोती , 1979 क्रि ० एल ० ०738 . 1996 क्रि ० एल ०० 408 ( एस ० सी ० ) , में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अभियुक्त को सम्पत्ति पर अख्यार न्यस्त किया जाना साबित करने के लिए केवल उस व्यक्ति का सम्पत्ति पर अधिकार था यह साबित किया जाना ही पर्याप्त नहीं है । यह भी साबित किया जाना आवश्यक है कि सम्पत्ति पर उसका अधिकार न्यस्त किए जाने के कारण था । अतः किसी भागीदार के अभियोजन के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि भागीदारी की आस्तियों को या किसी विशिष्ट आस्ति को पक्षकारों के बीच एक विशेष करार से अभियुक्त भागीदार को न्यस्त किया गया था । इस प्रकार के करार की अनुपस्थिति में भागीदारी का कोई धन कोई भागीदार प्राप्त करता है तो यह नहीं कहा जाएगा कि उसने यह धन वैश्वासिक हैसियत में प्राप्त किया था या यह धन उसे न्यस्त किया गया था ।

2. अनिल सरन बनाम बिहार राज्य ए ० आई ० आर ० 1977 एस ० सी ० 1786 में एक विशेष संविदा के अन्तर्गत के भागीदार को सम्पत्ति न्यासित की गई । उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि उसके पास वह सम्पत्ति वैश्वासिक हैसियत में थी और यदि वह उसका दुर्विनियोग करता है तो वह आपराधिक न्यायभंग का दोषी है ।

3. राज्य बनाम गोपाल चुनीलाल पोद्दार , 1978  कि ० एल ० जे ० 425 ( मुंबई )सरदार सिंह बनाम राज्य में यह साबित हो गया कि अभियुक्त पटवारी को एक रसीद वही या रसीद बही पर अधिकार न्यस्त किया गया । वह अपने उच्च प्राधिकारियों को वह बही लौटा नहीं सका । यह अभिनिर्धारित किया गया कि उसने आपराधिक न्यासभंग का अपराध कारित नहीं किया क्योंकि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि उसने उस बही का बेईमानी से दुर्विनियोग किया या बेईमानी से उनको अपने उपयोग में सम्परिवर्तित किया ।

4. शोंब  बनाम राज्य , 1975 कि ० एल ० जे ० 1122 ( इलाहाबाद ) भागीदार   के बकाया धन को बैंक में फर्म के नाम में जमा किया जाना था , परन्तु अभियुक्त भागीदार ने उसे तीसरे पक्षकार के नाम में जमा कर दिया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि उसे आपराधिक न्यासभंग के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि विशेष करार की अनुपस्थिति में इसे भागीदारी सम्पत्तियों पर अख्त्यार न्यस्त किया जाना नहीं माना जा सकता है

5. जनेश्वर दास अग्रवाल बनाम राज्य , ए ० आई आर 1981 एस . सी ० 1646 . ;  बचत खाता खोलने के लिए पीड़ित ने शाखा डाकपाल को कुछ धन सौंपा , यह सम्पत्ति का न्यस्त किया जाना है , और इसलिए जहां उस धन को डाकपाल ने बेईमानी से दुर्विनियोजित कर लिया या अपने उपयोग में सम्परिवर्तित कर लिया , वह इस अपराध के लिए दोषी होगा 5

6. उच्चतम न्यायालय ने सुरेन्द्र प्रसाद वर्मा बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1973 एस ० सो०- 488 एक ओवरसियर , जिसे खुले गोदामों में रखे गए माल में कमी के कारण दोषसिद्ध किया गया था जबकि वह माल चौकीदार के शारीरिक संरक्षण में था , की दोषसिद्धि को इस आधार पर अभिखंडित कर दिया कि न तो अभियोजन पक्ष यह साबित कर सका कि गोदाम उस ओवरसियर के संरक्षण में थे और न ही यह कि उसने दुर्विनियोजित किया था । यह भी कि गोदाम खुले में होने के कारण उनके अन्दर प्रवेश अनियन्त्रित था और फलतः कोई भी अन्दर जा और बाहर आ सकता था , जिसके कारण माल चोरी होने की सम्भावना थी जहाँ अभियुक्त खजांची के पास एक तिजोरी का कब्जा था , और भीतरी दराज की चाबियां तिजोरी में ही रखी जाती थीं , तथा किसी ने तिजोरी से रकम निकाल ली , यह निष्कर्ष निकालना काफी सुरक्षित था कि तिजोरी में से रकम निकालने में अभियुक्त एक भाग लेने वाला या संसर्गी था ।

7. बसंत मोघे बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1979 एम ० सी ० 1008. देखिए इन री अध्यादुरै देवर , 1981 क्रि ० एल ० जे ० 258 एक तहसीलदार , जिसके द्वारा भू राजस्व और जुर्माना आदि की राशि जमा करवाए जाने की अपेक्षा थी , ऐसा करने में विफल रहा , और उसने रिकार्ड में भी इनका उल्लेख नहीं किया , वह आपराधिक न्यासभंग कारित करने का दोषी होगा क्योंकि उसे इन सम्पत्तियों पर अधिकार न्यस्त किया गया था और उसने बेईमानी से उनका दुर्विनियोग किया था अपने उपभोग में उनको सम्परिवर्तित कर लिया ।

8. आर ० पी ० सबलीक बनाम कौशल्या देवी , 1982 क्रि ० एल ० जे ० 1342 ( दिल्ली ) किसी बैंक के साथ की गई सावधि जमा सम्पत्ति का न्यस्त किया जाना नहीं है क्योंकि यह बैंक को एक योजना के अन्तर्गत जमाकर्ता द्वारा इस अनुबन्ध पर धन का भुगतान है कि जमाकर्ता जमा की अवधि के पूर्ण हो जाने पर ब्याज सहित अपनी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा । इस प्रकार यदि बैंक राशि लौटाने में व्यतिक्रम करे तो जमाकर्ता बैंक के विरुद्ध सिविल कार्यवाही में अपना धन प्राप्त करने का हकदार होगा ।

9. म्याग्थाई बनाम पो श्वे . 15 क्रि ० एल ० जे ० 125 अभियुक्त ने अवक्रय करार के अन्तर्गत एक वस्तु प्राप्त की , और बाद में जिस व्यक्ति से उसने वह वस्तु अवक्रथ में ली थी उसे पूर्ण भुगतान किए बिना उसने उस वस्तु को बेच दिया , वह आपराधिक न्यासभंग का दोषी है ।

परन्तु

10. मोहम्मद सुलेमान बनाम मोहम्मद अयूब ( 1962 ) 2 क्रि ० एल ० जे ० 421 ( एस ० सी ० ) मोहम्मद सुलेमान बनाम मोहम्मद अयूब ( 1962 ) 2 क्रि ० एल ० जे ० 421 ( एस ० सी ० ) अभियुक्त ने एक विद्युत मोटर अवक्रय कर लिया , कुछ माह तक अवक्रय को रकम देता रहा जिस दौरान उसने मोटर का उपयोग किया , फिर उसने मोटर के स्वागी को यह पत्र लिखा कि उसने मोटर को इस शर्त पर खरीदा था कि वह तीन माह तक उसका उपयोग करके देखेगा और यदि वह उस दौरान ठीक कार्य करता रहा तो वह रकम का भुगतान कर देगा और तब उसने इस बात का दावा किया कि उसने सम्पूर्ण रकम दे दी थी और मोटर खरीद लिया था , यह अभिनिर्धारित किया गया कि विवाद सिविल प्रकृति का है , और आपराधिक न्यासभंग का अपराध कारित नहीं किया गया ।

11. सुनील रंजन घोष राय बनाम राज्य , ( 1986 ) 2 क्राइम्स 601 इसी प्रकार , अभियुक्त ने एक अवक्रय करार का उल्लंघन किया और एक ट्रक से कुछ पुर्जे निकाल लिए , उसे आपराधिक न्यासभंग के लिए दोषसिद्ध नहीं किया गया यद्यपि वह संविदा भंग के लिए दायी होगा

12. महिपाल बहादुर सिंह बनाम राज्य , 1986 क्रि ० एल ० जे ० 1851 ( कलकत्ता ) न्यास के धन को स्वयं के नामों से जमा करवाना , परन्तु लेखापरीक्षक को उस धन को न्यास का धन दर्शाना , धाराओं 406 और 120 – ख के अधीन आपराधिक न्यासभंग कारित करने के लिए आपराधिक षड्यन्त्र के लिए दोषी नहीं बनाता 5

13.एक रजिस्ट्रीकृत सोसाइटी के विरुद्ध यदि परिवाद कि उसने आपराधिक न्यासभंग कारित किया चलाने योग्य है जहां अभियोजन का पक्ष यह हो कि द्वितीय याची और सोसाइटी के अन्य अधिकारियों के माध्यम से कार्य करवाए जाने के दौरान सोसाइटी को आपराधिक मनःस्थिति थी । परन्तु

14.एम ० जी ० माहत बनाम शिवपुत्रप्पा , 1984 क्रि ० एल ० जे ० 1969 ( कर्नाटक )  परिवादी ने स्वर्ण की कुछ वस्तुएं बैंक को गिरवी रखी थीं , और निपटारे के समय उसने इस बात का दावा किया कि लौटाई गई वस्तुएं निकृष्ट कोटि की थीं , और इसलिए बैंक के प्रबन्धक , लेखाकार और खजांची को आपराधिक न्यासभंग के लिए दंडित किया जाना चाहिए , यह अभिनिर्धारित किया गया कि चूंकि बैंक ने बैंक प्रबन्धक के माध्यम से कार्य किया , केवल वह हो , लेखाकार और खजांची नहीं , इस अपराध के लिए दोषी होंगे

15. कलक्टर सिंह बनाम राज्य , 1978 क्रि ० एल ०० 663 ( पटना ) सरकार और अभियुक्त ठेकेदार के बीच संविदा में यह अनुबन्ध था कि निर्माण सामग्री सरकार देगी और ठेकेदार निर्माण के लिए जिम्मेदार होगा , और ठेकेदार ने निर्माण के प्रयोजन के लिए दिया गया सीमेन्ट बेच दिया , उसे आपराधिक न्यासभंग के लिए दोषी ठहराया गया ।

16.देखिये चतुर्भुज नारायण चौधरी बनाम एम्प ० ( 1935 ) 15 पटना 108केवल कुछ समय के लिए सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग या संपरिवर्तित किया जाना भी दोष से मुक्ति नहीं प्रदान करता , और इस प्रकार ऐसा कार्य अधिक अवधि के लिए किया गया या कम अवधि के लिए यह सम्पूर्णत : महत्वहीन है ?

17.सोमनाथ पुरी बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1972 एस ० सी ० 1490 .अभियुक्त , जो इंडियन एयरलाइंस के कार्यालय में यातायात सहायक था , ने कुछ यात्रियों से उनके आरक्षण करवाने के लिए ट्रंक काल शुल्क के रूप में कुछ अधिक रकम की मांग की और उसने इन राशियों की रसीदें भी उन्हें दी , परन्तु बाद में उसने उन रसीदों के प्रतिषणों में उन राशियों का मिथ्याकरण कर दिया , और बेईमानी से उनका दुर्विनियोग किया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह आपराधिक न्यासभंग का दोषी है

18.कुंदनलाल बनाम राज्य ,1976 क्रि ० एल ० जे ० 587  ( हिमाचल प्रदेश )किसी सहकारी सोसाइटी के सचिव ने , जिसे सोसाइटी की कुछ रकम न्यस्त की गई थी , वह रकम सोसाइटी के अध्यक्ष को दे दी और एक अन्य सदस्य के लिए ट्रक भर गेहूं खरीद लिया , तथा अध्यक्ष ने वह राशि वापस नहीं लौटाई और उस दूसरे सदस्य ने गेहूँ के लिए राशि का भुगतान नहीं किया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि सचिव ने बेईमानी से धन का दुर्विनियोग किया और जानबूझकर अध्यक्ष और उस सदस्य के द्वारा बेईमानी से धन का स्वयं के उपयोग में लिया जाना सहन किया , और इस प्रकार वह आपराधिक न्यासभंग का दोषी था ।

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