404 IPC IN HINDI

404 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words:

ऐसी सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग जो मृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके कब्जे में थी

जो कोई किसी सम्पत्ति को यह जानते हुए कि ऐसी सम्पत्ति जो किसी व्यक्ति की मौत  के समय उस मृत व्यक्ति के कब्जे में थी , और उसके मरने के बाद से किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं रही है , जो ऐसे कब्जे का वैध रूप से हकदार है यानि उसका वारीश के कब्जा लेने से पहले ही , बेईमानी से अपने उपयोग के लिए ले लेगा  या कब्जा करेगा या अपने उपयोग में बदल लेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी , दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा , और

यदि वह अपराधी , ऐसे व्यक्ति की मृत्यु के समय बाबू (क्लर्क ,मुंशी ) ,नोंकर के रूप में काम कारता था , तो कारावास बड़कर सात वर्ष तक का हो सकेगा ।

Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।

404 IPC ऐसी सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग जो मृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके कब्जे में थी –

जो कोई किसी सम्पत्ति को यह जानते हुए कि ऐसी सम्पत्ति किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उस मृत व्यक्ति के कब्जे में थी , और तब से किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं रही है , जो ऐसे कब्जे का वैध रूप से हकदार है , बेईमानी से दुर्विनियोग करेगा या अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी , दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा , और यदि वह अपराधी , ऐसे व्यक्ति की मृत्यु के समय लिपिक या सेवक के रूप में उसके द्वारा नियोजित था , तो कारावास सात वर्ष तक का हो सकेगा ।

यह धारा अपराध असंज्ञेय , जमानतीय और अशमनीय है , और यह प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है ।

दृष्टान्त

य के कब्जे में फर्नीचर और धन था । वह मर जाता है । उसका सेवक क , उस धन के किसी ऐसे व्यक्ति के कब्जे में आने से पूर्व , जो ऐसे कब्जे का हकदार है , बेईमानों से उसका दुर्विनियोग करता है । कने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

इस धारा के अधीन अपराधी के द्वारा बेईमानी से किसी ऐसी सम्पत्ति को दुर्विनियोजित किया जाना चाहिए या अपने उपयोग में सम्परिवर्तित किया जाना चाहिए जिसके बारे में उसे जानकारी हो कि वह किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उस मृत व्यक्ति के कब्जे में थी और तब से किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं रही है जो ऐसे कब्जे का वैध रूप से हकदार है । मृतक की मृत्यु के समय अपराधी यदि मृतक के द्वारा लिपिक या सेवक के रूप में नियोजित था तो कारावास की अवधि में उल्लिखित वृद्धि हो सकेगी । इस धारा में ‘ सम्पत्ति ‘ शब्द का प्रयोग किया गया है , जिसका अर्थ सामान्यतः जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति है ।

परन्तु इस विषय पर न्यायालयों के बीच मतभिन्नता है ।

सुप्रीम  कोर्ट व हाई कोर्टस के 404 IPC से  संबंधित  निर्णय

1. मुंबई गिरधर धरम दास बनाम एम्प ० , ( 1869 ) 6 मुंबई एच ० सी ० ( क्रि ० के ० ) 33 , कलकत्ता जगदीन सिन्हा बनाम क्वीन एम्प ० , ( 1895 ) 23 कलकत्ता 372 .और मध्य भारत धूलजी बनाम कंचन , 1956 क्रि ० एल ० जे ० 224 ‘ उच्च न्यायालयों का मत यह है कि यह धारा जंगम सम्पत्ति तक ही सीमित है , यद्यपि स्पष्टतः ऐसा उल्लिखित नहीं है ।

2. परन्तु   दाऊद खां बनाम एम्प ० , ए ० आई ० आर ० 1925 इलाहाबाद 673 इलाहाबाद उच्च न्यायालय का विचार यह है कि इस धारा में जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति सम्मिलित है क्योंकि यदि भारतीय दंड संहिता के निर्माताओं का आशय यह न होता तो वे अवश्य ही ‘ जंगम सम्पत्ति ‘ अभिव्यक्ति का प्रयोग करते जैसा कि उन्होंने कई अन्य धाराओं में किया है ।

3. बल्ला मुंशी भाय बनाम राज्य , 1958 क्रि ० एल ० जे ० 902  मृत शरीर में से गहने खोल ( हटा ) लेना धारा 403 के अधीन आपराधिक दुर्विनियोग नहीं हो सकता क्योंकि मृत शरीर व्यक्ति नहीं है और इसलिए किसी भी सम्पत्ति पर उसका कब्जा नहीं सकता । अतः ऐसा कार्य धारा 404 के अधीन दंडनीय है ।

4.जमनादास परशराम बनाम राज्य , ( 1963 ) 1 क्रि ० एल ० जे ० . 433 एक ही कार्रवाई के दौरान हत्या और लूट दोनों अपराध किए गए , तो अपराधी को धारा 404 के अधीन नहीं बल्कि धारा 392 के अधीन दोषी ठहराया गया , क्योंकि ऐसे मामले में ‘ व्यक्ति ‘ शब्द को इतने सीमित और नियन्त्रित रूप से अर्थान्वयित नहीं किया जा सकता कि वह मानव के मृत शरीर को छोड़ दे जिसकी मृत्यु उसी कार्रवाई के दौरान की गई जिसमें चोरी की गई

5.राज्य बनाम विश्नु चरण मुदूली , 1985 क्रि ० एल ० जे ० 1573 ( उड़ीसा ) मे अभियुक्त ने पहले मृतक की हत्या की और उसके पश्चात् उसके शरीर से एक सोने की अंगूठी खोल ( हटा ) ली , उसने स्वयं को सदोष अभिलाभ कारित किया , और इस प्रकार उसने धारा 404 के अधीन अपराध कारित किया । इसी प्रकार ,

6.भोपा सारा भारवड बनाम राज्य , 1986 क्रि ० एल ० जे ० 518 ( गुजरात )  मे  अभियुक्तों ने मृतक की हत्या करने के पश्चात् उसके शरीर से गहने ले लिए और उनको बेच दिया , उन्हें इस धारा के अधीन दोषसिद्ध किया गया ।

7.साथी प्रसाद बनाम राज्य , 1973 क्रि ० एल ० जे ० 344 ( एस ० सी ० ) एक व्यक्ति की डूबकर मृत्यु हो जाने के पश्चात् एक नाविक ने उसके शरीर से एक स्वर्ण घड़ी , स्वर्ण गहने और नकदी ले ली , परन्तु अभियुक्त हेड कांस्टेबल ने नाविक के विरुद्ध बल प्रयोग कर उसे थप्पड़ मारकर उससे उपर्युक्त वस्तुएं ले लीं , और उसने रिकार्ड इन वस्तुओं के विवरण दर्ज नहीं किए और उनको बेईमानी से अपने पास रख लिया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि उसने धाराओं 394 और 404 के अधीन अपराध किया

8. तुरुकू बुधा कारकरिया बनाम राज्य , 1994 क्रि ० एल ० जे ० 554 ( उड़ीसा ) अभियोजन पक्ष के एक साक्षी ने यह स्वीकार किया कि अभियुक्त ने उसके समक्ष अपना दोष स्वीकार किया था , और प्रतिपरीक्षा में उसके परिसाक्ष्य को झुठलाया नहीं गया , और अभियुक्त की निशानदेही पर मृत शरीर और चोरी किए गए गहने बरामद कर लिए गए , धाराओं 302 , 404 और 201 के अधीन की गई उसकी दोषसिद्धि उचित ठहराई गई

9. गणेश लाल बनाम राजस्थान राज्य 2002 क्रि ० एल ० जे ० 967 ( एस ० सी ० ) में एक खेत से प्राप्त मृतक के शव से यह स्पष्ट था कि बलात्संग के पश्चात् उसकी हत्या की गई थी । घटना के कुछ समय पूर्व अभियुक्त घटनास्थल के निकट उपस्थित था । मृतक के चांदी के गहने और रक्तरंजित कुल्हाड़ी अभियुक्त की प्रेरणा पर बरामद की गई । अभियुक्त के घर से उसके मिट्टी से सने हुये और मनुष्य का रक्त लगे हुये कपड़े भी बरामद किये गये । उसके कच्छे पर रक्त के धब्बे और वीर्य मिले । अभियुक्त , जो अविवाहित था , के शरीर पर दो क्षति थीं जो घटना के समय या लगभग उसी समय कारित की गई लगती थीं । उन परिस्थितियों के बारे में वह कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सका । उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि उपर्युक्त परिस्थितियों से निकल रहे आवश्यक परिणाम का उपयोग फंसाने वाले पारिस्थितिक साक्ष्य की कड़ी के रूप में अभियुक्त पर किया जा सकता है और इस प्रकार वह भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं 376 ( 2 ) ( च ) , 302 और 304 के अधीन दोषी है ।

10. गजराज बनाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र 10. 2012 क्रि ० एल ० जे ० 413 ( एस ० सी ० ) में अपीलार्थी ने अपने नाम से रजिस्ट्रीकृत मोबाइल फोन ( सिम ) का उपयोग मृतक के मोबाइल हैण्डसेट से करते हुये मृतक की हत्या के तत्काल पश्चात् कई फोन किये । उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अपीलार्थी के द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले इस हैण्डसेट के आई ० ई ० एम ० आई ० नम्बर जिसका उपयोग वह अपने नाम से रजिस्ट्रीकृत मोबाइल फोन ( सिम ) से कर रहा था , की उपेक्षा इस आधार पर नहीं की जा सकती कि मृतक की पत्नी के मौखिक साक्ष्य में थोड़ा बहुत अन्तर था । न्यायालय ने कहा कि मौखिक साक्ष्य में गम्भीर अन्तर को भी हजार वैज्ञानिक साक्ष्य की तुलना में कम महत्व दिया जाना चाहिये । तथ्य यह थे कि मृतक के पास तीन लाख नौ रुपये थे जिसे अपीलार्थी ने अपने बैंक कर दिये थे । यह गौण था क्योंकि ठोस सबूतों के आधार में जमा पर अभियोजन ने अपराध सिद्ध कर दिया था । वे साक्षी जो रिवाल्वर और मृतक के मोबाइल हैण्डसेट की बरामदगी में सम्मिलित थे अपीलार्थी के भाई और पिता थे । उनके द्वारा सम्बद्ध प्राधिकारियों के समक्ष ऐसा कोई आवेदन नहीं किया गया कि पुलिस ने उनसे खाली कागजों पर हस्ताक्षर करवाये थे । उपर्युक्त के आधार पर अभियुक्त को धाराओं 302 और 404 के अधीन दोषी ठहराया गया ।

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