जो कोई बेईमानी से किसी जंगम सम्पत्ति का दुर्विनियोग करेगा या उसको अपने उपयोग के लिए सम्परिवर्तित कर लेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी , या जुर्माने से , या दोनों से , दण्डित किया जाएगा ।
दृष्टान्त
( क ) क य की सम्पत्ति को उस समय जबकि क उस सम्पत्ति को लेता है , यह विश्वास रखते हुए कि वह सम्पत्ति उसी की है , य के कब्जे से सद्भावपूर्वक लेता है । क , चोरी का दोषी नहीं है । किन्तु यदि क अपनी भूल मालूम होने के पश्चात् उस सम्पत्ति का बेईमानी से अपने लिए दुर्विनियोग कर लेता है , तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
( ख ) क , जो य का मित्र है , य की अनुपस्थिति में य के पुस्तकालय में जाता है और य की अभिव्यक्त सम्मति के बिना एक पुस्तक ले जाता है । यहाँ , यदि क का यह विचार था कि पढ़ने के प्रयोजन के लिए पुस्तक लेने की उसको य की विवक्षित सम्मति प्राप्त है , तो क ने चोरी नहीं की है । किन्तु यदि के बाद में उस पुस्तक को अपने फायदे के लिए बेच देता है , तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
( ग ) क और ख एक घोड़े के संयुक्त स्वामी हैं । क उस घोड़े को उपयोग में लाने के आशय से ख के कब्जे में से उसे ले जाता है । यहाँ , क का उस घोड़े को उपयोग में लाने का अधिकार है , इसलिए वह उसका बेईमानी से दुर्विनियोग नहीं करता है । किन्तु यदि के उस घोड़े को बेच देता है , और सम्पूर्ण आगम का अपने लिए विनियोग कर लेता है , तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
स्पष्टीकरण 1- केवल कुछ समय के लिए बेईमानी से दुर्विनियोग करना इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत दुर्विनियोग है । दृष्टान्त क को य का एक सरकारी वचनपत्र मिलता है , जिस पर निरंक पृष्ठांकन है । क , यह जानते हुए कि यह वचनपत्र य का है , उसे ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में बैंकार के पास इस आशय से गिरवी रख देता है कि वह भविष्य में उसे य को प्रत्यावर्तित कर देगा । क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है ।
स्पष्टीकरण 2- जिस व्यक्ति को ऐसी सम्पत्ति पड़ी मिल जाती है , जो अन्य व्यक्ति के कब्जे में नहीं है और वह उसके स्वामी के लिए उसको संरक्षित रखने या उसके स्वामी को उसे प्रत्यावर्तित करने के प्रयोजन से ऐसी सम्पत्ति को लेता है , वह न तो बेईमानी से उसे लेता है और न बेईमानी से उसका दुर्विनियोग करता है , और किसी अपराध का दोषी नहीं हैं , किन्तु वह ऊपर परिभाषित अपराध का दोषी है , यदि वह उसके स्वामी को जानते हुए या खोज निकालने के साधन रखते हुए अथवा उसके स्वामी को खोज निकालने और सूचना देने के युक्तियुक्त साधन उपयोग में लाने और उसके स्वामी को उसकी मांग करने को समर्थ करने के लिए उस सम्पत्ति को युक्तियुक्त समय तक रखे रखने के पूर्व उसको अपने लिए विनियोजित कर लेता है । ऐसी दशा में युक्तियुक्त साधन क्या है , या युक्तियुक्त समय क्या है , यह तथ्य का प्रश्न है । यह आवश्यक नहीं है कि पाने वाला यह जानता हो कि सम्पत्ति का स्वामी कौन है विशिष्ट व्यक्ति उसका स्वामी है । यह पर्याप्त है कि उसको विनियोजित करते समय उसे यह विश्वास नहीं है कि वह उसकी अपनी सम्पत्ति है , या सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि उसका असली स्वामी नहीं मिल या यह कि कोई सकता ।
दृष्टांत-
( क ) क को राजमार्ग पर एक रुपया पड़ा मिलता है । यह न जानते हुए कि वह रुपया किसका है क उस रुपए को उठा लेता है । यहां क ने इस धारा में परिभाषित अपराध नहीं किया है ।
( ख ) क को सड़क पर एक चिट्ठी पड़ी मिलती है , जिसमें एक बैंक नोट है । उस चिट्ठी में दिए हुए निदेश और विषयवस्तु से उसे ज्ञात हो जाता है कि वह नोट किसका है । वह उस नोट का विनियोग कर लेता है । वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
( ग ) वाहक – देय एक चैक क को पड़ा मिलता है । वह उस व्यक्ति के सम्बन्ध में जिसका चैक खोया है , कोई अनुमान नहीं लगा सकता , किन्तु उस चैक पर उस व्यक्ति का नाम लिखा है , जिसने वह चैक लिखा है । क यह जानता है कि वह व्यक्ति क को उस व्यक्ति का पता बता सकता है । जिसके पक्ष में वह चैक लिखा गया था , क उसके स्वामी को खोजने का प्रयत्न किए बिना उस चैक का विनियोग कर लेता है । वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
( घ ) क देखता है कि य को थैली , जिसमें धन है , य से गिर गई है । क वह थैली य को प्रत्यावर्तित करने के आशय से उठा लेता है । किन्तु तत्पश्चात् उसे अपने उपयोग के लिए विनियोजित कर लेता है । क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है ।
( ड़ ) क को एक थैली , जिसमें धन है , पड़ी मिलती है । वह नहीं जानता है कि वह किसकी है । उसके पश्चात् उसे यह पता चल जाता है कि वह य की है , और वह उसे अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
( च ) क को एक मूल्यवान अंगूठी पड़ी मिलती है । वह नहीं जानता है कि वह किसकी है । क उसके स्वामी को खोज निकालने का प्रयत्न किए बिना उसे तुरन्त बेच देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
इस धारा के अधीन अपराध असंज्ञेय , जमानतीय और शमनीय है जब विचारण न्यायालय ऐसा करने की अनुमति दे , और यह किसी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है ।
सुप्रीम कोर्ट के 403 IPC से सम्बंधित निर्णय-
1. राजेन्द्र सिंह बनाम राज्य , 1960 क्रि एल ० जे ० 857 मे दो अभियुक्तों ने एक स्वर्णकार से एक हार इस मिथ्या प्रतिवेदन और वचन के आधार पर प्राप्त किया कि वे उसे वापस लौटा देंगे , परन्तु बाद में उन्होंने उसे लौटाने से इनकार कर दिया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि वे धाराओं 403 और 420 के अधीन दोषी थे ।
2. फूमन बनाम एम्स ० , 1908 क्रि ० एल ० जे ० 250 मे अभियुक्त को एक भीड़ भरे मन्दिर के फर्श पर एक बटुआ प्राप्त हुआ , और उसने उसे अपनी जेब में रख लिया , परन्तु इसके तत्काल बाद उसे पकड़ लिया गया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह इस धारा के अधीन इसलिए दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता क्योंकि मात्र बटुए को उठा लेने से यह साबित नहीं हो जाता कि उसने बेईमानी से ऐसा किया था
3. शोम सुन्दर बनाम एम्प ० , ( 1870 ) 2 एन ० डब्ल्यू ० पी ० 475 मे क ने भूलवश ख को कुछ धन का भुगतान कर दिया और बाद में जब ख को इस भूल के बारे में पता चल गया तो भी उसने यह धन के को चापस नहीं लौटाया , और उसको अपने स्वयं के लिए विनियोजित कर लिया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि उसने इस धारा के अधीन अपराध किया ।
4. बन्धु बनास एम्प ० , ( 1885 ) 8 इलाहाबाद 51 मे चूंकि आपराधिक दुर्विनियोग का अपराध तभी कारित किया जा सकता है जब कोई जंगम सम्पत्ति निर्दोषिता से अभियुक्त के कब्जे में आ चुकी हो , अतः कोई परित्यक्त सम्पत्ति कभी भी आपराधिक दुर्विनियोग का विषय नहीं बन सकती ।
5. कृष्ण कुमार बनाम भारत संघ ( 1960 ) 1 एस ० सी ० आर ० 452 मे अभियुक्त , जो एक कम्पनी में कर्मचारी था , ने रेल से भेजे गए किसी माल को कम्पनी की ओर से प्राप्त कर लिया , परन्तु कम्पनी के रिकार्ड में उसने इसे दर्ज नहीं किया , और यहाँ तक कि उसने यह मिथ्या सूचना दी कि उसने माल प्राप्त नहीं किया था , जबकि उसने रेलवे साइडिंग से माल को हटा लिया था , यह अभिनिर्धारित किया गया कि उसने आपराधिक दुर्विनियोग का अपराध कारित किया।
6. महाबीर प्रसाद बनाम राज्य ( 1961 ) 2 क्रि ० एल ० जे ० 457
कपड़ों के कुछ गट्ठे , जो रेलवे की अभिरक्षा में थे , अभियुक्त के गोदाम के निकट उतारे गए पाए गए , और बाद में उन्हें उस गोदाम से बरामद कर लिया गया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि केवल इन तथ्यों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता था कि वे दुर्विनियोजित या अभियुक्त के अपने उपयोग में सम्परिवर्तित किए गए थे , और इसलिए उसे इस धारा के अधीन दोषी नहीं ठहराया जा सकता ।
7. सराजुल हक बनाम एम्प ० , ( 1920 ) 23 क्रि ० एल ० जे ० 401जहाँ किसी व्यक्ति को कोई ऐसी सम्पत्ति पड़ी मिले जिसकी प्रकृति से यह समझना स्वाभाविक कि उस सम्पत्ति का कोई मालिक होगा , तो उसे उस सम्पत्ति की युक्तियुक्त देख रेख करनी चाहिए और उसके स्वामी को खोजने का युक्तियुक्त प्रयास करना चाहिए , परन्तु यह प्रयास ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि उसके लिए उसे विज्ञापन पर पर्याप्त धन खर्च करना पड़े ।
8.कुर्क की गई फसल को काटना- क्वीन एम्प ० बनाम ओभैय्या ( 1898 ) 22 मद्रास 151 अभियुक्त निर्णीत ॠणी , जिसकी खड़ी फसल को कुर्क कर लिया गया था , ने कुर्की के आदेश के अस्तित्व में रहने के दौरान फसल की कटाई कर ली . उसे आपराधिक दुर्विनियोग कारित करने के लिए इस धारा के अधीन दंडित किया गया
9.. एम्प ० बनाम गिरिजी , 1904 क्रि ० एल ० जे ० 1109 मे अभियुक्त ने किसी व्यक्ति से उधार रुपया ले रखा था पर उसने इससे इनकार किया , केवल इतने ही से उसे धारा 403 के अधीन दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि सिविल दायित्व को टालने का अर्थ आवश्यक रूप से यह नहीं होता कि अभियुक्त ने बेईमानी से ऐसा किया ।
10.नारायण सिंह बनाम राज्य 1986 क्रि ० एल ० जे ० 1481 ( मध्य प्रदेश ) मे अभियुक्त एक समिति का सभापति था , और उस हैसियत में उसने सदस्यों से बकाया राशि वसूल की थी , परन्तु उसके सभापतित्व की अवधि पूर्ण हो जाने के काफी समय पश्चात् भी उसने वह राशि जमा नहीं कराई , यह द्वारा यात्रियों से पक्ष यह साबित में आई थी । यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह इस धारा के अधीन दोषी था ।
11.पुष्प कुमार राय बनाम राज्य , 1978 क्रि ० एल ० जे ० 1379 ( सिक्किम )मे अभियुक्त बस कंडक्टर के अभिकथित रूप से एकत्र की गई टिकट किराये की राशि उसने जमा नहीं कराई । अभियोजन करने में विफल रहा कि वास्तव में उसने उक्त राशि एकत्र की थी वह राशि उसके कब्जे अभिनिर्धारित किया गया कि उसे इस धारा के अधीन अपराध करने के लिए दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता है
12. क्वीन एम्प बनामकटसामी ( 1890 ) 14 मद्रास 229 मे डाक – तार विभाग के कर्मचारी अभियुक्त ने पत्र छांटकर अलग करने में सहायता करते समय दो पत्र चुपचाप इस आशय से अलग रख लिए कि वह स्वयं उन्हें बांटने वाले व्यक्ति को देगा और उन पत्रों पर भुगतान की जाने वाली राशि को वह उस व्यक्ति के साथ बांट लेगा । अभियुक्त को चोरी करने के लिए और आपराधिक दुर्विनियोग का प्रयत्न करने के लिए दोषसिद्ध किया गया ।
13.बृजवासीलाल श्रीवास्तव बनाम राज्य ए ० आई ० आर ० 1979 एस ० सी ० 1080 मे अभियुक्त , जो एक स्कूल का प्रधानाचार्य था , ने स्कूल के चौकीदार के लिए अभिकथित रूप से कुछ धन निकाला , पर रजिस्टर से यह बात उजागर नहीं होती थी यद्यपि चौकीदार ने उक्त राशि प्राप्त करना स्वीकार किया । इसी प्रकार के अन्य भुगतान भी रजिस्टर में नहीं लिखे गए । यह अभिनिर्धारित किया गया कि मात्र इतने साक्ष्य के आधार पर प्रधानाचार्य को धारा 403 के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता
14 भागीदार का दायित्व -वेलजी राघवजी बनाम राज्य ( 1965 ) 2 क्रि ० एल ० जे ० 431 ( एस ० मी ० ) में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि भागीदार का अन्य भागीदारों के साथ भागीदारी की सभी आस्तियों पर अपरिभाषित स्वामित्व होता है , और यदि वह उनमें से किसी को अपने प्रयोजनों के लिए उपयोग करने के लिए चुनता है तो वह सिविल विधि में अन्य भागीदारों को जवाबदेही होगा , पर वह उस कारण धारा 403 के अधीन कोई आपराधिक दुर्विनियोग कारित नहीं करता ।
15.महल बन्द सिकवाल बनाम राज्य , 1987 क्रि ० एल ० जे ० 1569 ( कलकत्ता ) मे किसी भागीदार ने यह परिवाद किया कि दूसरे भागीदार ने भागीदारी कारबार को स्वामित्व कारबार में परिवर्तित कर दिया था , और उसने भागीदारी कारबार में से परिवादी के हिस्से का भी भुगतान उसे नहीं किया , तो व्यतिक्रमी भागीदार को इस धारा के अधीन तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि यह अभिकथन न हो कि भागीदारी विघटित कर दो गई थी
16.अनिल सरण बनाम राज्य 1996 क्रि ० एल ० जै- 408 ( एस ० सी ० ) में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जहाँ किसी विशेष संविदा के अन्तर्गत किसी भागीदार को कोई सम्पत्ति न्यस्त की गई हो , और इस प्रकार वह वैश्वासिक हैसियत में उस सम्पत्ति को अपने पास रखता हो , तो उसके द्वारा उस सम्पत्ति का दुर्विनियोग आपराधिक न्यासभंग हैं ।
17.रेलवे टिकट बदलना -एम्म ० बनाम रजा हुसैन , 1905 कि ० एल ० जे ० 94 बनारस सिटी में क और ख एक रेलगाड़ी पर चढ़ने वाले थे । क के पास अयोध्या के लिए विधिमान्य टिकट था , जबकि ख के पास बनारस कैंट के लिए विधिमान्य टिकट था । कने स्वेच्छया अपना टिकट ख को यह जांचने के लिए दिया कि क्या वह यात्रा के लिए विधिमान्य था के का टिकट उसे वापस करते समय ख ने स्वयं का टिकट तो क को दे दिया और क का टिकट स्वयं के पास रख लिया । ख को छल के लिए नहीं बल्कि आपराधिक दुर्विनियोग के लिए दोषी ठहराया गया
चोरी और सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग के बीच अन्तर-
चोरी में जंगम सम्पत्ति का हटाया जाना आवश्यक है जबकि सम्पत्ति के बेईमानी से दुर्विनियोग में जंगम सम्पत्ति का दुर्विनियोग करना या उसको अपने उपयोग के लिये सम्परिवर्तित करना आवश्यक है । चोरी में जंगम सम्पत्ति को किसी व्यक्ति के कब्जे में से हटाना आवश्यक है जबकि सम्पत्ति के बेईमानी से दुर्विनियोग में जिस सम्पत्ति का दुर्विनियोग किया जाना या जिसको अपने उपयोग में सम्परिवर्तित किया जाना है वह सम्पत्ति पहले से ही अभियुक्त के पास निर्दोष रूप से आयी हुई होती हैं । चोरी के लिये अधिकतम दण्ड तीन वर्ष का कारावास है जबकि सम्पत्ति के आपराधिक दुर्विनियोग में अधिकतम दण्ड दो वर्ष का कारावास है ।