397 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words; मृत्यु या गंभीर चोट कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती
यदि लूट या डकैती करते समय अपराधी किसी जानलेवा हथियार या किसी उपकरण का जो हथियार के तरह उपयोग लिया जा सकता हो का उपयोग करेगा या किसी व्यक्ति को गंभीर चोट या रोग ( 320 ipc ) कारित करेगा या किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने या उसे गंभीर चोट या रोग (320 ipc) कारित करने का प्रयास करेगा
Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।
397 IPC मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती –
यदि लूट या डकैती करते समय अपराधी किसी घातक आयुध का उपयोग करेगा , या किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा , या किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने या उसे घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा , तो वह कारावास , जिससे ऐसा अपराधी दण्डित किया जाएगा , सात वर्ष से कम का नहीं होगा ।
इस धारा के अधीन अपराध संज्ञेय , अजमानतीय और अशमनीय है , और यह सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है ।
397 ipc से सबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय-
1.फूल कुमार बनाम दिल्ली प्रशासन 1975 एस ० सी ० सी ० ( क्रि ० ) 336 में इस धारा में प्रयुक्त अभिव्यक्ति ” उपयोग करेगा ” के निर्वाचन पर प्रश्न था । एक अभियुक्त , जिसके पास चाकू था , और दूसरा जिसके पास एक छोटी बन्दूक थी , एक सर्विस स्टेशन के कर्मचारियों को उन्हें चाबी देने के लिए भयग्रस्त किया । उन्होंने कार्यालय को खोला और वे वहाँ से नकदी ले गए । उच्चतम न्यायालय ने उन्हें धारा 397 के अधीन दंडित किया क्योंकि पीड़ितों की आंखों के सामने चाकू लेकर चलना उन्हें भयग्ग्रस्त करने के लिए पर्याप्त है और उनके द्वारा अन्य कोई प्रत्यक्ष कार्य , जैसे चाकू को इधर – उधर घुमाने की या घोर उपहति कारित करने की आवश्यकता नहीं है । धारा 397 में अभिव्यक्ति उपयोग करेगा ‘ और धारा 398 में अभिव्यक्ति से सज्जित होगा ‘ लगभग समानार्थी हैं । जहाँ घातक आयुध से सज्जित होकर कोई अपराधी पीड़ित की आंखों के सामने लूट कारित करता है , तो इससे पीड़ित के चित्त में भय उत्पन्न हो जाता है और इस प्रकार धारा 397 के अन्तर्गत अपराधी ने उस घातक आयुध का ‘ उपयोग किया ‘ । परन्तु यदि घातक आयुध से सज्जित अपराधी ने लूट करने का केवल प्रयत्न किया तो उसके आयुध का कोई लाभदायक उपयोग नहीं किया गया क्योंकि आयुध का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब अपराधी अपने प्रयत्न में सफल हो और लूट करें , और इसलिये अभिव्यक्ति ‘ घातक आयुध से सज्जित होगा ‘ का प्रयोग किया गया है ।
परन्तु यह देखकर आश्चर्य होता है कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने इसके विपरीत जाकर
2.जंग सिंह बनाम राज्य , 1984 क्रि ० एल ० जे ० 1135 ( राजस्थान ) यह अभिनिर्धारित किया है कि डकैती करने में किसी व्यक्ति को आतंकित करने के लिए घातक आयुध का मात्र प्रदर्शन इस धारा को तो आकर्षित करता है परन्तु यह अभिकथित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि डकैत घातक आयुध से सज्जित थे ।
3.मोहम्मद असलम बनाम राज्य , 1985 क्रि ० एल ० जे ० 1760 पटना उच्च न्यायालय के साथ है जिसने यह अभिनिर्धारित किया है कि धारा 397 में शब्दों ‘ किसी घातक आयुध का उपयोग करेगा ‘ का अर्थ मात्र घातक आयुध से सज्जित होने से कुछ अधिक है । अतः जहाँ इस बात का कोई साक्ष्य नहीं था कि अभियुक्त ने पीड़ित की ओर रिवाल्चर का मुंह घुमाया था , और यह तथ्य भी कि रिवाल्वर चालू नहीं था , पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 397 लागू नहीं होगी ।उच्चतम न्यायालय ने फूल कुमार के मामले में इस मत से भी सहमति प्रकट की है कि धारा 397 के अधीन केवल उन व्यक्तियों को दंडित किया जा सकता है जो लूट या • डकैती करते समय स्वयं घातक आयुधों का उपयोग करते हैं या जो स्वयं घोर उपहति कारित करते हैं । उच्चतम न्यायालय के अनुसार यह उस धारा की भाषा से स्पष्ट है । धारा 397 में शब्द ‘ अपराधी ‘ मात्र उस अपराधों तक सीमित हैं जो घातक आयुध का उपयोग करता है । डकैती करते समय एक अपराधी के द्वारा घातक आयुध का उपयोग किसी अन्य अपराधी पर , जिसने घातक आयुध का उपयोग नहीं किया था , न्यूनतम दड अधिरोपित करने के लिए धारा 397 को आकर्षित नहीं करता ।
4.गेड्डा रामिनायडू बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1980 एस ० सी ० 2127 अभियुक्तों ने घातक आयुधों को घुमाया और व्यक्तियों को यह धमकी दी कि यदि उन्होंने उनके द्वारा परिवादियों के तालाब से मछली ले जाने में हस्तक्षेप किया तो उसके गम्भीर परिणाम होंगे , यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्तगण धाराओं 395 और 397 के अधीन दोषी थे ।
5.छोटे लाल सिंह बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1978 एस ० सी ० 1390 यद्यपि अभिव्यक्ति ” घातक आयुध ” को भारतीय दंड संहिता में परिभाषित नहीं किया गया है तो भी इसका सामान्य तात्पर्य कोई ऐसा आयुध है जो मृत्युकारक क्षमता रखता हो । स्वाभाविकत : आयुध की प्रकृति और इसके उपयोग करने का ढंग महत्वपूर्ण बातें हैं । किसी भी अभियुक्त को घटना के छः दिन पश्चात् किसी स्थान से खाली कारतूसें प्राप्त होने पर इस आधार पर दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता कि वे कारतूसें अभियुक्त को बंदूक से चलाई गई हो सकती हैं ।
6.रामशंकर बनाम राज्य ए ० आई ० आर ० 1981 एस ० सी ० 644 में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि यद्यपि न्यायालय इस धारा के अधीन न्यूनतम सात वर्ष के कारावास का दंड देने के लिए आवद्ध हैं , पर वे सदा ही सरकार को दंड प्रक्रिया संहिता , 1973 की धारा 432 के अधीन , जिसके अन्तर्गत सरकार को दंडादेशों के परिहार या लघुकरण की शक्ति प्राप्त है , दया के लिए सिफारिश कर सकते हैं ।
7.हरिन्दर सिंह बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1992 एस ० सी ० 1976 पीड़ित को क्षति कारित की गई , कमरे में बंद कर दिया गया , और उसका धन लूट लिया गया । साक्ष्य से यह साबित हो गया कि लूट कारित की गई थी । अभियुक्त , जो एक निगम में गनमैन था , को मिथ्या फंसाने का कोई कारण नहीं था , घटना के पश्चात् लगभग ढाई माह से अभियुक्त फरार था । उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि धाराएं 390 और 397 लागू होंगी 19
8.बाबूलाल जयराम मौर्य बनाम राज्य , 1993 क्रि ० एल ० जे ० 281 मुंबई उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि संहिता की धाराओं 397 और 398 के अधीन दोषसिद्धि के लिए उपयोग किया गया आयुध वास्तव में ‘ घातक आयुध ‘ होना चाहिए , घातक आयुध मान लिया गया होना या भूल से समझ लिया गया होना नहीं । इस प्रकार , एक खिलौना पिस्तौल घातक आयुध नहीं हो सकता , चाहे पीड़ित पर उसका प्रभाव कुछ भी हुआ हो ।
9.अशफाक बनाम दिल्ली राज्य 2004 क्रि ० एल ० जे ० 936 ( एस ० सी ० ) में संहिता की धारा 397 के अंतर्गत प्रयुक्त शब्दों ‘ उपयोग करेगा ‘ के निर्वाचन का प्रश्न था उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि पीड़ित के मस्तिष्क में आतंक फैलाने के लिये अपराधी द्वारा आयुध का प्रयोग ही इस धारा के अधीन दायित्व के लिये पर्याप्त है । इसके अतिरिक्त यह साबित करने की आवश्यकता नहीं है कि आयुध का प्रयोग काटने , बेधने , गोली चलाने , जैसा भी मामला हो , के लिये वास्तव में किया गया । धारा 397 के अंतर्गत उपबंध अभियुक्त के द्वारा किये गये व्यक्तिगत कार्य को ही सुसंगत आधार तत्व बनाते हैं । यह अपरिहार्य रूप से धारा 34 के अधीन आन्वयिक या प्रतिनिधिक दायित्व के सिद्धान्त के उपयोग को अर्थहीन बनाते हैं । यह साबित किया जा चुका है कि सभी अभियुक्तों के पास अपने घातक आयुध थे । इससे धारा 397 की आवश्यक शर्तें पूर्ण होती हैं । अतः धाराओं 397/34 के अधीन की गई अभियुक्तों की दोषसिद्धि को धारा 397 के अधीन में परिवर्तित कर दिया गया । •
10.निरंजन सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य ‘ 2004 क्रि ० एल ० जे ० 936 ( एस ० सी ० ) में अभियुक्त ने लूट करते समय पीड़ित के सीने पर चाकू किया । उच्चतम न्यायालय ने धारा 397 के अधीन को गयी अभियुक्त की दोषसिद्धि को उचित ठहराते हुये यह स्पष्ट किया कि इस धारा के अधीन घोर उपहति कारित किया जाना आवश्यक नहीं है , घोर उपहति का प्रयत्न करना ही पर्याप्त है ।
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