396 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words:
यदि पांच या पांच से अधिक व्यक्तियों मे से जो एक साथ मिलकर डकैती कर रहे हो, कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देगा, तो उन व्यक्तियों में से हर व्यक्ति के लिय मना जायगा की उन्होंने हत्या की है इसलिए वे सब हत्या सहित डकैती के लिए दंडित होंगे।
Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।
396 ipc हत्या सहित डकैती –
यदि ऐसे पांच या अधिक व्यक्तियों में से , जो संयुक्त होकर डकैती कर रहे हों , कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देगा , तो उन व्यक्तियों में से हर व्यक्ति मृत्यु से , या आजीवन कारावास से , या कठिन कारावास से , जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी , दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
इस धारा के अधीन अपराध संज्ञेय , अजमानतीय और अशमनीय है , और यह सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है ।
396 ipc से सबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय-
1. लल्ली उर्फ चिरंजीव भौमिक बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1986 एस ० सी ० 1990 अभियुक्तों ने एक पूर्व नियोजित डकैती कारित की , और डकैती करने में उन्होंने दो क्रूर हत्याएं कारित की , और साक्ष्य समाप्त करने के प्रयोजन से उन्होंने शवों को दफना दिया । घटना के छप्पन दिनों पश्चात् पुलिस ने मुख्य प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के कथन का अभिलेखन किया । परन्तु यह देरी युक्तियुक्त रूप में न्यायालय को समाधानप्रद रूप में स्पष्ट कर दी गई । उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि निचले न्यायालय को यह स्पष्टीकरण स्वीकार्य होने के साथ हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था , और अभियुक्तों के विरुद्ध छह वर्ष के कठिन कारावास के दंड के साथ हस्तक्षेप करने के लिए कोई परिस्थितियां नहीं थीं
2. दिगम्बर सिंह बनाम राज्य , 1990 क्रि ० एल ० जे ० 489 ( इलाहाबाद ) जहाँ मृतक ने एक डकैती का प्रतिरोध करने का प्रयास किया , और ऐसा करने में एक डकैत के द्वारा उसकी मृत्यु कारित कर दी गई , इस धारा को लागू किया गया ।
3. रामदेव राय यादव बनाम राज्य , ए ० आई ० आर ० 1990 एस ० सी ० 1180 दूसरी ओर , जहाँ उच्च न्यायालय ने यह पाया कि जब एक डकैती कारित की जा रही थी तो अपीलार्थी स्वयं अकेला ही एक हत्या के लिए दोषी था , और इसलिए उसकी दोषसिद्धि को , बगैर अभियुक्त पर प्रतिकूल प्रभाव डाले हुए , धारा 302 के अधीन परिवर्तित कर दिया , उच्चतम न्यायालय ने इस निर्णय को मान्य ठहराया 4
4. कालिका तिवारी बनाम बिहार राज्य 1997 क्रि ० एल ० जे ० 2531 ( एस ० सी ० ) में डकैतों में से एक ने या कुछ ने एक हत्या की । उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यद्यपि अभियुक्तों में से सभी ने हत्या में भाग नहीं लिया था फिर भी सभी अभियुक्त हत्या सहित डकैती के लिए धारा 396 के अधीन दंडनीय थे और उनके बीच सामान्य आशय या सामान्य उद्देश्य सिद्ध किए जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी ।
5. रफीक अहमद उर्फ रफी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2011 क्रि ० एल ० जे ० 4399 ( एस ० सी ० ) में अभियुक्त को धारा 396 के अधीन आरोपित किया गया । न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या बिना आरोप को बदले हुये उसे धारा 302 के अधीन सिद्धदोष किया जा सकता है । उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हत्या धारा 396 के अधीन अपराध का एक आवश्यक अंग है । पारिस्थितिक साक्ष्य मृतक के साथ ” अन्तिम बार देखा गया ” और अभियुक्त की अगुवाई में शव का पाया जाना अभियुक्त की दोषसिद्धि की ओर संकेत है । तीन छिन्न घाव , तीन खरोंचे और श्वासप्रणाल ( विडपाइप ) का धारदार आयुध से काटा जाना यह संकेत है कि प्रकृति के मामूली अनुक्रम में यह मृत्यु करने के लिये पर्याप्त हैं । ऋजु विचारण और प्रतिरक्षा के अधिकार इत्यादि के बारे में अभियुक्त पूर्वग्रह से बिल्कुल ग्रसित नहीं था । न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि धारा 302 के अधीन वैकल्पिक आरोप न होने के बावजूद हत्या के लिये उसे धारा 302 के अधीन सिद्धदोष किया जा सकता है । धारा 396 और धारा 302 के बीच अन्तर स्पष्ट करते हुये न्यायालय ने कहा कि यह सम्भव हैं कि डकैती का अपराध सिद्ध न किया जा सका हो परन्तु फिर भी हत्या का अपराध सिद्ध किया जा सके । अभियुक्त ने एक से अधिक अपराध किया हो या अधिक गम्भीर अपराध किया हो , अन्ततः वह कम गम्भीर अपराध के लिये दण्डनीय हो या विपर्ययेन , यदि विधि इसकी अनुमति देती हो और आवश्यक तत्व विद्यमान हों । पूर्वग्रह के अभिकथन का परीक्षण ऋजु विचारण के अधिकार , निर्दोषिता की उपधारणा और सबूत के मुकाबले में किया जाना चाहिये । धारा 302 के अधीन दण्डनीय और धारा 300 के अधीन परिभाषित हत्या का अपराध ” निगमन के द्वारा विधान ” के सिद्धान्त के रूप में धारा 396 के अधीन अपराधों के उपबन्धों के अन्तर्गत पढ़ा जाना चाहिये ।
6. ओमा उर्फ ओमप्रकाश एवं अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य ए ० आई ० आर ० 2013 एस ० सी ० 825 .
में अनजान व्यक्तियों के विरुद्ध डकैती की प्रथम सूचना रिपोर्ट लगभग दस वर्ष पूर्व की गयी थी । अपीलार्थियों को लगभग दस वर्ष पश्चात् गिरफ्तार कर लिया गया पर उनकी कोई शनाख्त परेड नहीं हुई । अभियुक्त द्वारा दिखलाने पर आयुध बरामद किया गया पर अपराध से उसके सम्बन्ध की पुष्टि नहीं हुई । उच्चतम न्यायालय ने अपीलाधियों की दोषसिद्धि और उनके विरुद्ध मृत्यु के दण्डादेश को खारिज कर दिया ।
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