390 IPC IN HINDI
390 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words चोरी(378 IPC) या उद्दापन(383 IPC) निम्न प्रकार से लूट(390) मे परिवर्तन हो जाते है
Explanation चोरी कब लूट मे परिवर्तन हो जाती है यदि उस चोरी को करने के लिए, या उस चोरी के करते समय में या उस चोरी की सम्पति को ले जाने या ले जाने का प्रयत्न करने के उद्देश्य को पूरा केरती समय अपनी मर्जी से किसी व्यक्ति की मृत्यु, या उपहति[ hurt ]या उसका सदोष अवरोध[किसी दिशा मे जाने से रोकना जिस दिशा मे जाने का उसका अधिकार है ] या उसी समय तुरंत मृत्यु का, या उसी समय तुरंत उपहति [ hurt ]का, या उसी समय तुरंत किसी दिशा मे जाने से रोकने [सदोष अवरोध] का भय कारित करता या कारित करने का प्रयत्न करता है।
Explanation उद्दापन कब लूट मे परिवर्तन हो जाता है-उद्दापन “लूट” है, यदि अपराधी वह उद्दापन करते समय भय में डाले गए व्यक्ति के सामने वही मौजूद है, और उस व्यक्ति को स्वयं उसकी या उससे संम्बध रखने वाले किसी अन्य व्यक्ति की उसी समय तुरंत मृत्यु का, या उसी समय तुरंत उपहति [ hurt ]का, या उसी समय तुरंत किसी दिशा मे जाने से रोकने [सदोष अवरोध] का भय दिखाकर डराता और वह उद्दापन(Extortion) करता है और इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को उद्दापन की जाने वाली चीज उसी समय और वहां ही किसी व्यक्ति को (अपने आप को या किसी अन्य व्यक्ति को ) देने के लिऐ बईमानी मनवाता है
Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।
390 ipc लूट(Robbery ) – प्रत्येक प्रकार की लूट में या तो चोरी या उद्दापन होता है ।
thefi चोरी कब लूट है- चोरी ” लूट ” है , यदि उस चोरी को करने के लिए या उस चोरी के करने में या उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने या ले जाने का प्रयत्न करने में , अपराधी उस उद्देश्य से स्वेच्छया किसी व्यक्ति को मृत्यु , या उपहति या उसका सदोष अवरोध या तत्काल मृत्यु का , या तत्काल उपहति का , या तत्काल सदोष अवरोध का भय कारित करता है या कारित करने का प्रयत्न करता है ।
उद्दापन कब लूट है- उद्दापन ” लूट ” हैं , यदि अपराधी वह उद्दापन करते समय भय में डाले गए की उपस्थिति में है , और उस व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की तत्काल मृत्यु या • तत्काल उपहति या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालकर वह उद्दापन करता है और इस प्रकार भय में डालकर इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को उद्दापन की जाने वाली चीज उसी समय और वहाँ ही परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है ।
स्पष्टीकरण- अपराधी का उपस्थित होना कहा जाता है , यदि वह उस अन्य व्यक्ति को तत्काल मृत्यु के तत्काल उपहति के , या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालने के लिए पर्याप्त रूप से निकट हो ।
दृष्टान्त
( क ) क , य को दबोच लेता है , और य के कपड़े में से य का धन और आभूषण य को सम्मति के बिना कपटपूर्वक निकाल लेता है । यहाँ क ने चोरी की है और वह चोरी करने के लिए स्वेच्छया स को सदोष अवरोध कारित करता है । इसलिए के ने लूट की है ।
( ख ) क य को राजमार्ग पर मिलता है , एक पिस्तौल दिखलाता है और य की थैली मांगता है । परिणामस्वरूप य अपनी थैली दे देता है । यहाँ के नेय को तत्काल उपहति का भय दिखलाकर थैली उद्दापित की है और उद्दापन करते समय वह उसकी उपस्थिति में है । अतः क ने लूट की है ।
( ग ) के राजमार्ग पर य औरय के शिशु से मिलता है । क उस शिशु को पकड़ लेता है और यह धमको देता है कि यदि य उसको अपनी थैली नहीं परिदत कर देता है , तो वह उस शिशु को कगार के नीचे फेंक देगा । परिणामस्वरूप य अपनी थैली पदित कर देता है । यहाँ कने य को यह भय कारित करके कि वह उस शिशु को , जो वहाँ उपस्थित है , तत्काल उपहति करेगा , य से उसकी थैली उद्दापित की है । इसलिए केने य को लूटा है ।
( घ ) क य से कहकर लेने सम्पत्ति का अभिप्राय करता है कि ” तुम्हारा शिशु मेरी टोली के हाथों में है , यदि तुम हमारे पास दस हजार रुपया नहीं भेज दोगे , तो वह मार डाला जाएगा । ” यह उद्दापन है , और इसी रूप में दण्डनीय है , किन्तु यह लूट नहीं है , जब तक य को उसके शिशु को तत्काल मृत्यु के भय में न डाला जाए ।
टिप्पणी
यह धारा लूट के अपराध की परिभाषा देती है , जो चोरी या उद्दापन का ही गम्भीर स्वरूप है । इसके • अनुसार , सब प्रकार की लूट में या तो चोरी या उद्दापन होता है । चोरी कब लूट है इसके बारे में यह धारा यह स्पष्ट करती है कि चोरी लूट है यदि उस चोरी को करने के लिए , या उस चोरी के करने में या उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने में , या उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने का प्रयत्न करने में , अपराधी उस उद्देश्य से किसी व्यक्ति की या तो मृत्यु , या उपहति , या उसका सदोष अवरोध कारित करता है या कारित करने का प्रयत्न करता है , या तत्काल मृत्यु का , या तत्काल उपहति का , या तत्काल सदोष अवरोध का भय कारित करता है या कारित करने का प्रयत्न करता है । उद्दापन कब लूट है इसके बारे में यह धारा यह स्पष्ट करती है कि उद्दापन ‘ लूट ‘ है यदि अपराधी वह उद्दापन करते समय भय में डाले गए व्यक्ति की उपस्थिति में है , और या तो उस व्यक्ति को स्वयं उसकी , या किसी अन्य व्यक्ति की , तत्काल मृत्यु या तत्काल उपहति , या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालकर वह उद्दापन करता है , और इस प्रकार भय में डालकर इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को उद्दापन की जाने वाली चीज उसी समय और वहाँ हो परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है । इस धारा में दिए गए स्पष्टीकरण के द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि अपराधी का उपस्थित होना तब कहा जाता है यदि वह उस अन्य व्यक्ति को तत्काल मृत्यु के या तत्काल उपहति के , या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालने के लिए पर्याप्त रूप से निकट हो । यद्यपि लूट सदा चोरी या उद्दापन का ही रूप है जैसा कि लूट को परिभाषा से ही स्पष्ट है , परन्तु व्यवहार में कभी – कभी यह बतला पाना अत्यधिक कठिन है , कि लूट का कौन सा भाग चोरों द्वारा था और कौन सा उद्दापन द्वारा उदाहरणार्थ , ख के घर में के प्रवेश करता है , और उसकी और रिवाल्वर तानकर उससे सभी मूल्यवान वस्तुएं समर्पित करने के लिए कहता है । जबकि ख ऐसी वस्तुएं समर्पित करना प्रारंभ करता है , क स्वयं कुछ अन्य ऐसी वस्तुएं उठाना प्रारंभ कर देता है । इस प्रकार के उन वस्तुओं की चोरों द्वारा लूट कारित करता है जो उसने स्वयं उठाई और उन वस्तुओं की उदापन द्वारा लूट कारित करता है जो खने उसे दी । इस प्रकार लूट कारित कर लेने के पश्चात् हो सकता है कि क को यह स्मरण न रहे कि उसने रिवाल्वर की नोंक पर कौन सी वस्तुएं स्वयं उठाई और कौन सी वस्तुएं ख ने उसे दी । परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि लूट के इस मामले में लूट चोरी द्वारा भी की गई और उद्दापन द्वारा भी । चोरी द्वारा लूट – चोरी द्वारा लूट तब होती है जबकि जिस कार्य को या तो किया जाता है या करने का प्रयत्न किया जाता है वह केवल इन चार परिस्थितियों में से ही किसी में होता है-
( 1 ) उस चोरी को करने के लिए या
( 2 ) उस चोरी के करने में , या
( 3 ) उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने में , या
( 4 ) उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने का प्रयत्न करने में उक्त चार परिस्थितियों में से किसी में भी अपराधी के द्वारा स्वेच्छया किसी की मृत्यु , या उपहति , या सदोष अवरोध कारित किया गया होना चाहिए , या
किसी की मृत्यु का प्रयत्न या उपहति का प्रयत्न या सदोष अवरोध का प्रयत्न किया गया होना चाहिए , या उक्त चार परिस्थितियों में से किसी में भी उसके द्वारा स्वेच्छया तत्काल मृत्यु , या तत्काल उपहति , या तत्काल सदोष अवरोध का भय कारित किया गया होना चाहिए , या तत्काल मृत्यु , या तत्काल उपहति , या तत्काल सदोष अवरोध का भय कारित करने का प्रयत्न किया गया होना चाहिए । उक्त में से जो भी किया जाए वह उस उद्देश्य से किया जाना चाहिए । अभिव्यक्ति ‘ उस उद्देश्य से ‘ बहुत महत्वपूर्ण है , और यह उपर्युक्त चार परिस्थितियों में से प्रत्येक की ओर इंगित करता है ।
दूसरे शब्दों में , यह चार उद्देश्य हैं— ( 1 ) उस चोरी को करने के लिए , या ( 2 ) उस चोरी के करने में , या ( 3 ) उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने में , या ( 4 ) उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने का प्रयत्न करने में उद्दापन द्वारा लूट उद्दापन द्वारा लूट में अपराधी वह उद्दापन करते समय भय में डाले गए व्यक्ति की उपस्थिति में होता है । यह उपस्थिति तभी साबित होती है जब वह उस अन्य व्यक्ति को तत्काल मृत्यु के , तत्काल उपहति के , या तत्काल सदोष अवरोध के , भय में डालने के लिए पर्याप्त रूप से निकट हो । उसके द्वारा उद्दापन किया गया होना चाहिए । यह उद्दापन उस व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की तत्काल मृत्यु , या तत्काल उपहति , या तत्काल सदोष अवरोध , के भय में डालकर किया गया होना चाहिए । इस प्रकार भय में डालकर अपराधी के द्वारा इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को उद्दापन की जाने वाली चीज उसी समय और वहाँ ही परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित किया गया होना चाहिये । न्यायिक निर्णय – जहाँ ये दो दृष्टिकोण सम्भाव्य हों कि को ले जाने के लिए उपहति कारित की गई , या चोरी करने के अभियुक्त के द्वारा या तो चोरी की गई सम्पत्ति पश्चात् स्वयं के निकल भागने में कारित की गई , तो वह दृष्टिकोण उचित समझा जाएगा जो अभियुक्त के हित में हो , अर्थात् उपहति अभियुक्त के स्वयं के निकल भागने में कारित की गई , और इस प्रकार अभियुक्त केवल चोरी के लिए दोषी होगा , लूट के लिए नहीं 2 जहां अभियुक्त ने चोरी करने से प्राप्त सम्पत्ति को छोड़ दिया , और उसके पश्चात् भी उसका पीछा किए जाने पर उसने पीछा करने वालों को रोकने के लिए उन पर पत्थर फेंके , यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह केवल चोरी का दोषी है , लूट का नहीं । इसी प्रकार , सशस्त्र अभियुक्तगण परिवादी की भूमि से फसल हटा रहे थे , और जब परिवादी ने इसका प्रतिरोध किया तो उन्होंने यह कहकर उसे धमकी दी कि भविष्य में उसने कभी भी उस भूमि में प्रवेश करने का प्रयत्न किया तो उसकी हत्या कर दी जाएगी , यह अभिनिर्धारित किया गया कि अपराधियों ने चोरी का अपराध किया , लूट का नहीं । दो अभियुक्तों में से एक ने , साहचर्य में , चलती हुई रेलगाड़ी में पीड़ित को घड़ी छीन ली , और जब वे गाड़ी से उतरने का प्रयास कर रहे थे तो पौड़ित ने शोर मचाया , जिस पर दूसरे अभियुक्त ने उसको थप्पड़ मार दिया । यह अभिनिर्धारित किया गया कि चूंकि उपहति चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति के ले जाने में कारित की गई थी , इसलिए दोनों अभियुक्त चोरी द्वारा लूट करने के लिए दोषी थे । इस धारा में किसी व्यक्ति की शब्दों का प्रयोग यह दर्शाता है कि यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी के द्वारा किया गया कार्य उस व्यक्ति के विरुद्ध ही हो जिसके कब्जे से सम्पत्ति ली गई हो , वह कार्य किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध भी हो सकता है , परन्तु कोई व्यक्ति अवश्य होना चाहिए । अतः किसी ट्रक का अवरोधन जबकि ट्रक के अधिभोगियों को अवरोधित नहीं किया गया , इस धारा के अधीन नहीं आता । आंख में पिसी मिर्च डालकर सूटकेस छीनना धारा 390 के अधीन अपराध है 7
महाराष्ट्र राज्य बनाम विनायक तुकाराम उतेकर 1997 क्रि ० एल ० जे ० 3988 ( मुंबई )
में अभियुक्त एक व्यक्ति की कमीज से सोने के तीन बटन तोड़कर लेकर भागने लगा । जब वह भाग रहा था तब उसे इत्तिला देने वाले ने पकड़ लिया । इस पर अभियुक्त ने उस पर चाकू से एक वार किया । मुंबई उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि यह तर्क कि उसने सोने के बटन लेकर भागने के लिए नहीं बल्कि स्वयं को छुड़ाने के लिए चाकू से प्रहार किया बेकार है ।