376D IPC IN HINDI

 

376D IPC सामूहिक बलात्संग- जहां किसी स्त्री से , एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा, एक समूह गठित करके या सामान्य आशय को अग्रसर करने में कार्य करते हुए बलात्संग किया जाता है, वहां उन व्यक्तियों में से प्रत्येक के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने बलात्संग का अपाध किया है और वह ऐसी अवधि के कठोर कारावास, से जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंड़ित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा :

परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़िता के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने और पुनर्वास के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परन्तु यह और कि इस धारा के अधीन अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़िता को संदत्तकिया जाएगा ।

संज्ञेय संज्ञेय (गिरफ्तारी के लिए वॉरेंट आवश्यक नही)
जमानत गैर जमानतीय
विचारणीय सत्र न्यायालय
समझौता नही किया जा सकता है

टिप्पणी

दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 के द्वारा प्रतिस्थापित इस धारा के अनुसार, जहां एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा समूह गठित करके या सामान्य आशय को अग्रसर करने में कार्य करते हुये किसी स्त्री से बलात्संग किया जाता है, वहां उनमें से प्रत्येक के बारे में यह समझा जायेगा कि उसने बलात्संग किया है और उसे न्यूनतम बीस वर्ष के कठोर कारावास और अधिकतम आजीवन कारावास, जिसका अर्थ उस व्यक्ति का शेष प्राकृत जीवनकाल है, से दण्डित किया जायेगा और वह जुर्माने से भी दण्डनीय होगा । ऐसा जुर्माना पीड़िता के चिकित्सीय खर्चां को पूरा करने और पुनर्वास के लिये न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा, और यह जुर्माना पीड़िता की संदत्त किया जायेगा । इस धारा के अधीन अपराध संज्ञेय और अजमानतीय है औ सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है ।

इन री : इण्डिया वुमन सेज गैंग- रेप्ड ऑन आर्डर्स ऑफ व्हिलेज कोर्ट जिसे 23.1.2014 की बिजनेस एण्ड फाइनेन्शियल न्यूज में प्रकाशित किया गया में एक समाचार प्रकाशित हुआ जिसके अनुसार सामुदायिक पंचायत ने एक बीस वर्षीय युवती के संग सामूहिक बलात्संग करने के लिये दण्डादेश दिया क्योंकि उसके विरूद्ध आरोप यह था कि समुदाय के बाहर एक पुरूष के संग उसके सम्बन्ध थे । उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि विवाह जिसके संग किया जाये यह चुनने के अधिकार की स्वतन्त्रता अनुच्छेद 21 के अधीन प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का आवश्यकत अंग है । भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं 354, 354-, 354-, 354-, 376, 376-, 376-, 376-, 376-, 376-, और 509 के अधीन स्त्रियों के विरूद्ध अपराध राज्य के द्वारा मूल अधिकारों की सुरक्षा न कर पाने के कारण होते हैं । ऐसे अपराधों पर नियंत्रण करने के लिये दीर्घकालीन नीति बनाना आवश्यक है । ऐसे मामलों में पीड़ित को प्रथम उपचार अथवा चिकित्सीय उपचार प्रदान किया जाना चाहिये । संहिता की धाराओं 376, 326-क और 326-ख के अपराधों के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 357-क के अधीन प्रतिकर देना राज्य सरकार का दायित्व है और यह प्रतिकर दण्ड संहिता की धाराओं 326-क अथवा 376-घ के अधीन पीड़ित को दिये गये जुर्माने के अतिरिक्त होगा । प्रतिकर देने के पश्चात् राज्य का दायित्व समाप्त नहीं हो जाता क्योंकि पीड़ित का पुनर्वास भी अत्यधिक महत्त्पनूर्ण है । राज्य को निदेश दिया गया कि वह पूर्व में मंजूर पचास हजार रूपये के अतिरिक्त प्रतिकर के रूप में पांच लाख रूपये और अदा करे ।

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