376 IPC IN HINDI
376 IPC बलात्संग के लिए दण्ड- (1) जो कोई, उपधारा (2) में उपबंधित मामलों के सिवाय, बलात्संग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कठोर कारावास से, जिसकी अवधि 1दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
(2) जो कोई-
(क) पुलिस अधिकारी होते हुए-
(i) उस पुलिस थाने की, जिसमें ऐसा पुलिस अधिकारी नियुक्त है, सीमाओं के भीतर; या
(ii) किसी भी थाने के परिसर में; या
(iii) ऐसे पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में या ऐसे पुलिस अधिकारी के अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में,
किसी स्त्री से बलात्संग करेगा; या
(ख) लोक सेवक होते हुए, ऐसे लोक सेवक की अभिरक्षा में या ऐसे लोक सेवक के अधीनस्थ किसी लोक सेवक की अभिरक्षा में की किसी स्त्री से बलात्संग करेगा; या
(ग) केंन्द्रीय या किसी राज्य सरकार द्वारा किसी क्षेत्र में अभिनियोजित सषस्त्र बलों का कोई सदस्य होते हुए, उस क्षेत्र में बलात्संग करेगा; या
(घ) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान के या स्त्रियों या बालकों की किसी संस्था के प्रबंधतंत्र या कर्मचारिवृंद में होते हुए, ऐसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह, स्थान या संस्था के किसी निवासी से बलात्संग करेगा;या
(ड) किसी अस्पताल के प्रबंधतंत्र या कर्मचारिवृंद में होते हुए, उस अस्पताल में किसी स्त्री से बलात्संग करेगा; या
(च) स्त्री का नातेदार, संरक्षक या अध्यापक अथवा उसके प्रति न्यास या प्राधिकारी की हैसियत में का कोई व्यक्ति होते हुए, उस स्त्री से बलात्संग करेगा; या
(छ) सांप्रदायिक या पंथीय हिंसा के दौरान बलात्संग करेगा; या
(ज) किसी स्त्री से यह जानते हुए कि वह गर्भवती है बलात्संग करेगा; या
(झ) 2 ****; या
(ञ) उस स्त्री से, जो सम्मति देने में असमर्थ है, बलात्संग करेगा; या
(ट) किसी स्त्री पर नियंत्रण या प्रभाव रखने की स्थिति में होते हुए,उस स्त्री से बलात्संग करेगा; या
(ठ) मानसिक या शारीरिक निःषक्तता से ग्रसित किसी स्त्री से बलात्संग करेगा; या
(ड) बलात्सग करते सेमय किसी स्त्री को गंभीर शारीरिक अपहानि कारित करेगा या विकलांग बनाएगा या विद्रूपित करेगा या उसके जीवन को संकटापन्न करेगा; या
(ढ) उसी स्त्री से बार-बार बलात्संग करेगा,
वह कटोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण- इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए,-
(क) ‘‘सशस्त्र बल” से नौसेनिक, सैनिक और वायु सैनिक अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत तत्समय प्रवृत्त्र किसी विधि के अधीन गठित सषस्त्र बलों का, जिसमें ऐसे अर्धसैनिक बल और कोई सहायक बल भी हैं, जो केंन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन हैं, कोई सदस्य भी है;
(ढ) ‘‘अस्पताल” से अस्पताल का अहाता अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत किसी ऐसी संस्था का अहाता भी है, जो स्वास्थ्य लाभ कर रहे व्यक्तियां को या चिकित्सीय देखरेख या पुनर्वास की अपेक्षा रखने वाले व्यक्तियों के प्रवेश और उपचार करने के लिए है;
(ग) ‘‘पुलिस अधिकारी” का वही अर्थ होगा जो पुलिस अधिनियम, 1861 (1861 का 5) के अधीन ‘‘पुलिस” पद में उसका है;
(घ) ‘‘स्त्रियों या बालकों क संस्था” से स्त्रियों और बालकों को ग्रहण करने और उनकी देखभाल करने के लिए स्थापित और अनुरक्षित कोई संस्था अभिप्रत है चाहे उसका नाम अनाथलय हो या उपेक्षित स्त्रियों या बालकों के लिए गृह हो या विधवाओं के लिए गृह या किसी अन्य नाम से ज्ञात कोई संस्था हो। ]
(3)3 जो कोई सोलह वर्ष की कम आयु की किसी स्त्री से बलात्संग करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा :
परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़ित की चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :
परन्तु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़ित को किया जाएगा। ]
संशोधन
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- क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा सात साल की सजा को बढ़ाके दस साल कर दिया गया
- आईपीसी धारा 376 में 2(झ) ‘किसी स्त्री से, जब वह सोलह वर्ष से कम आयु की है, बलात्संग करेगा’ इस विधान को क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा बहार किया गया, और इस प्रकार के अपराध में कारावास को बढ़ाके 20 साल कर दिया
- आईपीसी धारा 376 में 2(झ) को बदल कर आईपीसी धारा 376(3) का स्थान दिया गया
संज्ञेय | संज्ञेय (गिरफ्तारी के लिए वॉरेंट आवश्यक नही) | |
जमानत | गैर जमानतीय | |
विचारणीय | सत्र न्यायलय | |
समझौता | नही किया जा सकता |
टिप्पणी
यह धारा बलात्संग के अपराध के लिये दण्ड की व्यवस्था करती है । उपधारा (1) के अनुसार, उपधारा (2) में उपबन्धित मामलों के सिवाय, बलात्संग के लिये न्यूनतम दस वर्ष के कठोर कारावास और अधिकतम आजीवन कारावास की व्यवस्था है और यह जुर्माने से भी दण्डनीय होगा । उपधारा (1) के अधीन बलात्संग को सामान्यतः साधारण बलात्संग कहा जाता है । उपधारा (2) के अनुसार, जिनमें से खण्ड (क), (ख), (ग), (घ), (ड), (च), और (ट) को सामान्यतः अभिरक्षा में बलात्संग कहा जाता है, ऐसे बलात्संग के लिये न्यूनतम दस वर्ष के कठोर कारावास और अधिकतम आजीवन कारावास की व्यवस्था है और वह जुर्माने से भी दण्डनीय होगा । इसी प्रकार, खण्ड (छ), (ज), (झ), (ञ), (ठ), (ड) और (ढ) में भी बलात्संग के लिये न्यूनतम दस वर्ष का कठोर कारावास और अधिकतम आजीवन कारावास की व्यवस्था है और साथ ही यह अपराध जुर्माने से भी दण्डनीय होगा । इन खण्डों के अधीन साम्प्रदायिक या पंथीय हिंसा के दौरान या जानते हुये गर्भवती स्त्री से या सम्मति देने में असमर्थ स्त्री से या मानसिक या शारीरिक निःषक्तता से ग्रसित स्त्री से बलात्संग को दण्डित किया गया है, या बलात्संग करते समय स्त्री को गम्भीर शारीरिक अपहानि कारित करने या विकलांग बनाने या विद्रूपित करने या उसके जीवन को संकटापन्न करने या उस स्त्री से बार-बार बलात्संग करने को दण्डित किया गया है । उपधारा (2) के अधीन सभी प्रकार के बलात्संग के लिये आजीवन कारावास को उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिये कारावास कहा गया है जो अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । स्पष्टीकरण के द्वारा उपधारा (2) में प्रयुक्त शब्दों ‘‘सशस्त्र बल”, ‘‘अस्पताल”, ‘‘पुलिस अधिकारी” और ‘‘स्त्रियों या बालकों की संस्था” का अर्थ स्पष्ट किया गया है । अतः उपधारा (1) और (2) दोनों के अधीन ही दस वर्ष के न्यूनतम दंड की व्यवस्था है । नई अंतःस्थापित उपधारा (3) के अधीन सोलह वर्ष से कम आयु की स्त्री से बलात्संग करने पर न्यूनतम बीस वर्ष कठिन कारावास की व्यवस्था की गई है जो अधिकतम आजीवन कारावास तक हो सकेगी जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवन के लिए कारावास होगा ओर जुर्माने से भी दंडनीय होगा । जुर्माने की राषि पीडित की चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होनी चाहिए । जुर्माने का संदाय पीड़ित को ही किया जाएगा ।
उच्चतम न्यायालय ने बलवंत सिंह बनाम राज्य¹ में यह अभिनिर्धारित किया है कि चाहे अभियोजन पक्ष बालत्संग करने वाले अपराधियों की निश्चित संख्या साबित कर पाने में विफल रहा हो, तो भी उनको अवश्य ही दोषसिद्ध किया जाना चाहिये, जिनके विरूद्ध आरोप सन्देह से परे साबित हो चुके हों । जहाँ एक साधू,जिसे वेदान्त दर्शन का प्रचंड ज्ञान था, की गुप्त आदत एक महिला दलाल के द्वारा छोटी बालिकाओं कह प्रलोभित कर अपने मन्दिर में लाने और उपके साथ बलात्संग करना था, और सच्चाई तब सामने आई जब उसने एक आठ वर्षीया बालिका के साथ बलात्संग किया, यह अभिनिर्धारित किया गया कि साधू की अपराध कार्यप्रणाली कुमारी पूजा करने ओर उसके बहाने बाद में उनके साथ बलात्संग करने के लिये भयोपरत दस वर्ष के दंड की आवश्यकता है, और उकारता का कोई भी कारण नहीं था ।² जहाँ एक बलात्संग के मामले में अभियुक्त और पीडित के परिवारजन उदार द्रष्टिकोण अपनाये जाने के लिये तैयार हों, उससे न्यायालय को किसी भी प्रकार बाध्य नहीं किया जा सकता । परन्तु अभियुक्त, जो अपने विंशाति ( बीस से उन्तीस वर्ष की आयु के बीच ) में था, के निष्कपट पश्चाताप के कारण न्यायालय ने उपके चार वर्ष के कारावास के दंड को दो वर्ष के कठिन कारावास में परिवर्तित कर दिया ।ङ बलात्संग के मामलों में दंडादेश के समय अभियुक्त के युवा वय को ध्यान में रखा जा सकता है ।4 जहाँ एक पिता ने अपनी अल्पवयस्क पुत्री के साथ बलात्संग किया, सात वर्ष का कठिन कारावास के भयोपरत दंड और एक हजार रूपये के जुर्माने को उचित ठहराया गया ।5 छह वर्षीया बालिका के साथ बलात्संग करने वाले अभियुक्त को केवल छह माह के कठिन कारावास का दंड न्याय का मखौल है, और अपराध के वहशीपन के कारण दंड की अवधि को कहीं अधिक बढ़ाए जाने की आवश्यकता है ।6 जहाँ सेना का एक जवान वेश्यागृह गया, और वहाँ से वापस लौटने के दौरान उसने चार माह की एक बच्ची का व्यपहरण कर लिया और उसके साथ बलात्संग किया जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गयी, यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त मृत शरीर को कुएं में फेंकने के लिये, जहाँ से वह चौबीस घंटे पश्चात् निकाला गया, धारा 201 के अधीन धाराओं 366, 367 और 302 के अधीन दोषी है, और बलात्संग के लिये उसे अधिकतम दंड, आजीवन कारावास से दंडित किया गया ।7
प्रथम स्पष्टीकरण यह दर्शाता है कि सामान्य आशय को अग्रसर करने में एक या अधिक व्यक्तियों के द्वारा किया गया बलात्संग सामूहिक बलात्संग होगा । एक मामले में दो व्यक्तियों द्वारा सामूहिक बलात्संग किया गया, और परिवाद दाखिल करने में नौ दिन की देरी की गयी जिसके कारणों को स्पष्ट नहीं किया जा सका । दोनों में से एक अभियुक्त से पीड़ित विवाह करने की अच्छा रखती थी, और प पीड़ित ने स्वीकार किया कि उसने माता-पिता के कहने पर ही अनिच्छा से रिपोर्ट की थी । अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में रासायनिक परीक्षक की रिपोर्ट के साथ-साथ अन्य बहुत सी कमियां थीं । यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त बलात्संग के दोषी नहीं थे, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114-क के अधीन उपधारणा लागू नहीं होगी । दूसरी ओर, राजस्थान राज्य बनाम रोशन खान एवं अन्य में अभिकथन यह थे कि प्रत्यर्थी अभियुक्तगण इस झूठ पर पीड़ित को अपने साथ ले गये कि उसके चाचा उसे ढूंढ़ रहे थे और एक टूटे-फूटे मकान में उसके संग उन्होंने बलात्संग किया । उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अभियोक्त्री का साक्ष्य कि सभी अभियुक्तों ने उसके संग बिना उसकी सम्मति के और उसकी इच्छा के विरूद्ध बलात्संग किया । सूचना देने वाले अभियोक्त्री के पिता के साक्ष्य से संपुष्ट होता है जिसने अभियुक्तों में से एक को यह कृत्य करते हुये देखा था । पीड़ित और पिता के साक्ष्यों की संपुष्टि चिकित्सीय साक्ष्य से भी हुई । प्रत्यर्थी की दोषमुक्ति इसलिये अपास्त कर दी गयी । एक अन्य मामले में, एक युवा विधवा अपने सत्तर वर्षीय ससुर के साथ, जिसके पाँचों पुत्रां की मृत्यु हो गयी थी, एक पवित्र स्थान से वापस लौट रही थी । रास्ते में तीन अभियुक्तों में से एक ने उस वृद्ध को पकड़कर रखा जबकि शेष दो झाड़ियां के पीछे उस विधवा से बारी-बारी से बलात्संग किया । विधवा का शव कभी नहीं मिला जबकि घटनास्थल से उसकी साड़ी अवश्य मिली थी । यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त सामूहिक बलात्संग करने के लिये दोषी थे । जहाँ चार अभियुक्तों के विरूद्ध एक अविवाहिता बालिका के घर में बलपूर्वक प्रवेश कर उसके साथ सामूहिक बलात्संग करने का आरोप था, यह अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 376 के प्रथम स्पष्टीकरण के कारण एक बार अभियुक्तों का सामान्य आशय साबित हो जाने के पश्चात् यह साबित किया जाना आवश्यक नहीं था कि किन व्यक्तियां ने और कितने व्यक्तियों ने सामूहिक बलात्संग किया था ।