375 IPC IN HINDI

375 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: बलात्संग (बलात्कार/rape) यदि कोई पुरुष

(क ) अपना लिंग किसी स्त्री की योनि, उसके मुंह, मूत्रमार्ग (urethra) या गुदा (anus) में किसी भी सीमा तक प्रवेश(penetrates) करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है;या

(ख )ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग, जो लिंग न हो, किसी स्त्री की योनि, मूत्रामार्ग या गुदा में किसी भी सीमा तक अनुप्रविष्ट(inserts) करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या

(ग )किसी स्त्री के शरीर के किसी भाग का इस प्रकार हस्तसाधन(manipulates) करता है यानी जोर-जबरदस्ती करता है जिससे कि उस स्त्री की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग या शरीर के किसी भाग में प्रवेशन कारित किया जा सके या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है.या

(घ)अपना मुंह किसी स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा पर लगाता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है,यह भी स्पष्ट है कि केवल स्त्री की योनि में लिंग के प्रवेश से ही यह अपराध हो, यह आवश्यक नहीं । उसके मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा मे भी ऐसा करने या कराने पर भी यह अपराध होगा

 

तो उसके बारे में यह कहा जाएगा कि उसने बलात्संग किया है, जहां ऐसा निम्नलिखित सात भांति की परिस्थितियों में सक किसी के अधीन किया जाता है :

पहला- उस स्त्री की इच्छा के विरूद्ध -जो पुरुष किसी स्त्री के साथ उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध मैथुन करता है , वह पुरुष बलात्संग करता है , यदि यह इस धारा में उल्लिखित अपवाद में नहीं आता । अभिव्यक्ति ‘उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ‘ का अर्थ यह है कि स्त्री के विरोध के बावजूद कार्य किया गया । इसमें बल या विवश करने का तत्व विद्यमान है । इससे यह स्पष्ट होता है कि पीड़ित को पुरुष के द्वारा अभिभूत किया गया है ; पुरुष ने स्त्री के साथ जबरदस्ती की है ।

विनोद कुमार बनाम राज्य , 1987 क्रि ० एल ० जे ० 1541 ( मध्य प्रदेश )जहां अभियुक्त ने पीड़ित स्त्री को अभिभूत कर उसके साथ मैथुन किया जबकि दूसरे अभियुक्त ने उसके हाथों को मजबूती से पकड़ रखा था , इसे बलात्संग का मामला अभिनिर्धारित किया गया ।

बी . अंकी रेड्डी बनाम राज्य , 1988 क्रि ० एल ० जे ० 1461 ( आंध्र प्रदेश ) यहां बाईस वर्षीय नवयुवक अभियुक्त ने दो शिशुओं की तीस वर्षीय मां को अभिभूत कर उसके साथ बलात्संग किया , उसको यह प्रतिरक्षा कि वह अकेले अपने आप इतनी वयस्क स्त्री के विरुद्ध सफल नहीं हो सकता था , को नामंजूर कर दिया गया , क्योंकि तथ्य और परिस्थितियां , जिनमें स्त्री के गुप्तांग पर क्षति भी सम्मिलित थी केवल बलपूर्वक मैथुन करने से ही कारित हो सकती हैं , बलात्संग को सन्देह से परे साबित कर रही थी ।

मिश्र बनाम राज्य के मामले का विभेद भी किया जिसमें उच्चतम न्यायालय ने यह कहा था कि चिकित्सीय विशेषज्ञों की राय से भी यह स्पष्ट होता है कि एक अकेले व्यक्ति के द्वारा एक वयस्क और अनुभवी स्त्री के साथ बिना उसकी ओर से अत्यधिक शक्तिशाली प्रतिरोध का सामना किये हुए बलात्संग करना बहुत कठिन है ।

दूसरा- उस स्त्री की सहम्मति के बिना ।

तीसरा-उस स्त्री की सहम्मति से, जब कि उकी सहम्मति, उसे या ऐसे किसी व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या उपहति(323 ipc ) के भय में डालकर अभिप्राप्त की गई है ।

चौथा- उस स्त्री की सहम्मति से, जब कि वह पुरूष यह जानता है कि वह उसका पति नहीं है और उसने सहम्मति कारण दी है कि वह यह विश्वास करती है कि ऐसा अन्य पुरूष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है ।

पांचवा- उस स्त्री की सम्मति से, जब ऐसी सम्मति देने के समय, वह मानसिक रोगी है या नशे के कारण या उस पुरूष द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य कि माध्यम से कोई संज्ञाषून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदार्थ दिए जाने के कारण, उस बात की, जिसके बारे में वह सम्मति देती है, प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है ।

छठां- उस स्त्री की सहम्मति से या उसके बिना, जब वह अठारह वर्ष से कम आयु की है। अठारह वर्ष से कम आयु की स्त्री की सहम्मति मान्य नही है

सातवां- जब वह स्त्री सहम्मति देने में असमर्थ है ।
Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।

 

375 बलात्संग यदि कोई पुरुष :-

( क ) किसी स्त्री की योनि , उसके मुंह , मूत्रमार्ग या गुदा में अपना लिंग किसी भी सीमा तक प्रवेश करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है ; या यौन अपराध

( ख ) किसी स्त्री की योनि , मूत्रमार्ग या गुदा में ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग , जो लिंग न हो , किसी भी सीमा तक अनुप्रविष्ट करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है ; या

( ग ) किसी स्त्री के शरीर के किसी भाग का इस प्रकार .. हस्तसाधन करता है जिससे कि उस स्त्री की योनि , गुदा , मूत्रमार्ग या शरीर के किसी भाग में प्रवेशन कारित किया ) जा सके या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है ; या

( घ ) किसी स्त्री की योनि , गुदा , मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है , तो उसके बारे में यह कहा जाएगा कि उसने बलात्संग किया है , जहां ऐसा निम्नलिखित सात भांति की परिस्थितियों में से किसी के अधीन किया जाता है :

पहला- उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ।

दूसरा- उस स्त्री की सम्मति के बिना ।

तीसरा-उस स्त्री की सम्मति से , जब उसकी सम्मति ( उसे या ऐसे किसी व्यक्ति को , जिससे वह हितबद्ध है , मृत्यु या उपहति के भय में डालकर अभिप्राप्त की गई है ।

चौथा – उस स्त्री की सम्मति से , जब कि वह पुरुष यह जानता है कि वह उसका पति नहीं है और उसने सम्मति इस कारण दी है कि वह यह विश्वास करती है कि वह ऐसा अन्य पुरुष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है ।

पांचवां-  उस स्त्री की सम्मति से , जब ऐसी सम्मति देने के समय , वह विकृतचित्तता या मत्तता के कारण या उस पुरुष द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य के माध्यम से कोई संज्ञाशून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदार्थ दिए जाने के कारण , उस बात की , जिसके बारे में वह सम्मति देती है , प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है ।

छठवां – उस स्त्री की सम्मति से या उसके बिना , जब वह अठारह वर्ष से कम आयु की है ।

सातवां- जब वह स्त्री सम्मति संसूचित करने में असमर्थ है ।

स्पष्टीकरण 1. इस धारा के प्रयोजनों के लिए , “ योनि ” के अंतर्गत वृहत्त् भगौष्ठ भी है । 

स्पष्टीकरण 2. सम्मति से कोई स्पष्ट स्वैच्छिक सहमति अभिप्रेत है , जब स्त्री शब्दों , संकेतों या किसी प्रकार की मौखिक या अमौखिक संसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट लैंगिक कृत्य में शामिल होने की इच्छा व्यक्त करती है : –

  • परन्तु ऐसी स्त्री के बारे में , जो प्रवेशन के कृत्य का भौतिक रूप से विरोध नहीं करती है , मात्र इस तथ्य के कारण यह नहीं समझा जाएगा कि उसने विनिर्दिष्ट लैंगिक क्रियाकलाप के प्रति सहमति प्रदान की है ।

अपवाद 1. किसी चिकित्सीय प्रक्रिया या अंतः प्रवेशन से बलात्संग गठित नहीं होगा ।

अपवाद 2. किसी पुरुष का अपनी स्वयं की पत्नी के साथ , मैथुन या यौन क्रिया यदि पत्नी पंद्रह वर्ष से कम आयु की न हो , बलात्संग नहीं है ।

 

टिप्पणी

  • इस परिभाषा के अनुसार, यदि कोई पुरूष (क) किसी स्त्री की योनि, उसके मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में अपना लिंग किसी भी सीमा तक प्रवेश करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; (ख) किसी स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग, जो लिंग न हो, किसी भी सीमा तक अनुप्रविष्ट करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या (ग) किसी स्त्री के शरीर के किसी भाग का इस प्रकार, हस्तसाधन करता है जिससे कि उस स्त्री की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग या शरीर के किसी भाग में प्रवेशन कारित किया जा सके या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या (घ) किसी स्त्री की योनि, गुदा या मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है, तो उसके बारे में यह कहा जायेगा कि उसने बलात्संग किया है । जहां ऐसा इस धारा में उल्लिखित सात भांति की परिस्थितियों में से किसी के अधीन किया जाता है । इस भाषा से यह स्पष्ट है कि बलात्संग के अपराध के लिये केवल पुरूष ही दोषी होगा, कोई स्त्री नहीं । यह भी स्पष्ट है कि केवल स्त्री की योनि में लिंग के प्रवेश से ही यह अपराध हो, यह आवष्यक नहीं । उसके मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा मं भी ऐसा करने या कराने पर भी यह अपराध होगा । इसी प्रकार, उसकी योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में कोई वस्तु या लिंग न होकर शरीर का कोई अन्य भाग प्रवेश करने या कराने से भी यह अपराध होगा । इसी प्रकार, स्त्री के शरीर के किसी भाग का ऐसा हस्तसाधन किया जाये कि स्त्री की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग या किसी अन्य भाग में प्रवेश करना या कराना भी अपराध होगा । इसी प्रकार, स्त्री की योनि, गुदा या मूत्रमार्ग पर मुंह लगाना या उससे ऐसा कराना भी बलात्संग होगा पहले स्पष्टीकरण के द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ‘‘योनि” के अन्तर्गत बृहत् भगोष्ठ भी है । दूसरे स्पष्टीकरण के द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि जब स्त्री शब्दों, संकेतों या किसी प्रकार के मौखिक या अमौखिक संसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट लैंगिक कृत्य में सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त करती है तब ऐसी स्वैच्छिक सहमति को सम्मति कहा जायेगा । साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि स्त्री के द्वारा प्रवेशन के कृत्य का भौतिक रूप से विरोध न किये जाने मात्र से यह नहीं समझा जायेगा कि विनिर्दिष्ट लैंगिक क्रियाकलाप में उसकी सम्मति थी । इस धारा के अन्त में दो अपवाद भी दिये गये हैं, जिनमें से पहले के अनुसार, किसी चिकित्सीय प्रक्रिया या अन्तः प्रवेषन को बलात्संग नहीं कहा जायेगा । दूसरे अपवाद के अनुसार, पन्द्रह वर्ष से कम आयु की न होने वाली पत्नी के साथ उसके पति द्वारा मैथुन या यौन क्रियायें बलात्संग की श्रैणी में नहीं आयेंगी ।

साक्षी बनाम भारत संघ¹ में उच्चत्तम  न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि न्यायिक निर्वचन की प्रक्रिया के द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 को बदला नहीं जा सकता जिससे इसमें सभी प्रकार के प्रवेषन जैसे कि लिंग/योनि प्रवेषन, लिंग/योनि प्रवेषन, उंगली/योनि और उंगली/गुदा प्रवेषन तथा उपकरण/योनि प्रवेषन सम्मिलित हो जाएं । धारा 375 में प्रयुक्त अभिव्यक्ति ‘‘मैथुन को शब्द कोष में ऐसे अतरलिंगी समागम के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें योनि में लिंग का प्रवेषन हो । यही ‘‘मैथुनका सही अर्थ है और इसलिये इस धारा के अधीन केवल लिंग/योनि प्रवेषन ही आते है । यही सही अर्थ है और उच्चत्तम  न्यायालय ने इस अर्थ को ही सही माना है ।

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