366A IPC IN HINDI

366A IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: जो कोई  किसी  अठारह वर्ष से कम आयु की नाबालिग लड़की को किसी के साथ संभोग (sex ) करने के लिए मजबूर / विवश करता है या उस नाबालिक को किसी स्थान से जाने के लिए कोई ऐसा कार्य करता है या किसी का साधन बनकर उसकी मदद करता है और  वह ऐसा करके उसको अयुक्त संभोग के लिए  उकसाता या बहकता है  जिससे की किसी व्यक्ति से अयुक्त संभोग( illicit sexual intercourse ) (धारा 372 का स्पष्टीकरन 2 देखे ) (जबरन शारीरिक संबंध ) बनाने के लिए उसको मजबूर ( forced ) करे (seduced ) और ये जानते-बुझते हुए करेगा  जबकि वो विवाह संबंध मे नही है तो सजा का दोषी होगा !

Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।

                                             

366A IPC अप्राप्तवय लड़की का उपापन

जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु की अप्राप्तवय लड़की को अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या बिलुब्ध करने के आशय से या तद्वारा विवश या विलुब्ध किया जाएगा यह सम्भाव्य जानते हुए ऐसी लड़की को किसी स्थान से जाने को या कोई कार्य करने को किसी भी साधन द्वारा उत्प्रेरित करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

 366A ipc से  सम्बन्धित सुप्रीम कोर्ट के  निर्णय

  1. एम्प ० बनाम सीस राम , ( 1929 ) 51 इलाहाबाद 889   इस धारा के अधीन अपराध विशिष्ट उद्देश्य के साथ उत्प्रेरण है , और उत्प्रेरण के पश्चात् जब लड़की को अपराधी कई अन्य व्यक्तियों को देता है तो हर नए विक्रय के प्रस्ताव के साथ नया अपराध कारित नहीं होता ।
  2. रमेश बनाम राज्य , ( 1963 ) 1 क्रि ० एल ० जे ० 16 ( एस ० सी ० )    जहां कोई स्त्री , जो अठारह वर्ष की नहीं भी हुई हो , अपने शरीर को दूसरों को धन के लिये सौंपकर वेश्यावृत्ति से अपना जीवन – यापन करती है , और अपने इस जीविका उपार्जन में अभियुक्त उसे सहायता प्रदान करता है , अभियुक्त को इस धारा के अधीन तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि उसके विरुद्ध अपेक्षित आशय या ज्ञान साबित न हो जाये ।
  3. राम सरन बनाम एम्प ० , ए ० आई ० आर ० 1930 इलाहाबाद 497    जहां एक अठारह वर्ष से आयु की लड़की का विवाहित जीवन सुखी न होने के कारण उसके पिता ने उसे उसके पति के घर से ले जाकर एक अन्य व्यक्ति के साथ उसका विवाह कर दिया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि पिता के द्वारा किया गया कार्य इस धारा के अधीन उत्प्रेरण होगा , और इसलिये वह इस धारा के अधीन अपराध करने का दोषी हैं , परन्तु उस दूसरे व्यक्ति को जिसके साथ उस स्त्री का पुन : विवाह किया गया , इस धारा के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता , क्योंकि उस स्थान से जाने के उत्प्रेरण का उद्देश्य किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा विलुब्ध किया जाना होना चाहिये , उस व्यक्ति के द्वारा नहीं , जिसने स्वयं ही जाने के लिये उस स्त्री को उत्प्रेरित किया ।
  4. सैयद अमजद अहमद बनाम राज्य , 1993 क्रि ० एल ० जे ० 1920 ( आन्ध्र प्रदेश )  जहां अभियुक्त एक अप्राप्तवय लड़की को उसकी मां की अभिरक्षा से ले गया और उसने उसके साथ बलात्संग किया , और यह साबित हो गया कि उसकी आयु घटना के समय पंद्रह वर्ष थी , तथा अभियुक्त ने उस लड़की से उसकी आयु के बारे शपथ – पत्र प्राप्त किया , और धमकी के अन्तर्गत उससे विवाह किया तथा उसके साथ बलात्संग किया , यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त धाराओं 366 क और 376 के अधीन दोषी है चाहे पीड़ित के पक्ष में सम्मति साबित भी हो जाये
  5.  मंजप्पा बनाम कर्नाटक राज्य 2010 क्रि ० एल ० जे ० 4729 ( एस ० सी ० )में अभियुक्त एक अप्राप्तवय लड़की को बहुत दूर किसी स्थान पर ले गया और अवैध और अनैतिक प्रयोजन से उसे बेच दिया । उच्चतम न्यायालय ने यह  अभिनिर्धारित किया कि अभियुक्त को भयोपरतिकारी दण्ड मिलना चाहिये , अतः उसे संहिता की धाराओं 366 – क , 372 और 373 के अधीन अधिरोपित सात वर्ष के कारावास और साथ में जुर्माने के दण्डादेश से हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं बनता ।
संज्ञेय संज्ञेय (गिरफ्तारी के लिए वॉरेंट आवश्यक नही)
जमानत अजमानतीय
विचारणीय सेशन न्यायालय
समझौता नही किया जा सकता

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