364 A IPC IN HINDI

364A IPC In Hindi Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: अपनी मांग को मनवाने के लिए अपहरण – जो कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को व्यपहरण(kidnapping ) या अपहरण (Abduction) करके बंधक बनाता है और ऐसे व्यक्ति(victim ) की मृत्यु या उपहति की धमकी उसके हितैषी (family member or his/her government) को देता है या ऐसा आचरण (Conduct ) करता है, जिससे अन्य लोगों को ऐसा लगे कि वह ऐसे बंधक व्यक्ति की हत्या कर देगा या उसे चोट पहुंचाएगा और वह ऐसा फिरोती लेने के लिए करता है या कोई कार्ये करवाने के लिए करता है या कोई कार्ये रुकवाने के लिए वह ऐसा करता है (उदाहरण प्रॉपर्टी पेपर पेर सिग्नेचर) या किसी सरकार या  किसी विदेशी राज्य या अंतरराष्ट्रीय संगठन से फिरोती लेने के लिए या कोई कार्य कराने या कोई कार्य करने से रुकवाने को विवश किया जा सके एसलिए बंधक बनाता है ( जैसे हाइजैक करना ) तो वह मृत्यु या आजीवन कारावास और जुर्माने से दंडित होगा!

 

Note निम्नलिखित कानूनी परिभाषा भी देखें।

364 A  IPC फिरौती, आदि के लिए व्यपहरण-: जो कोई इसलिए किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करता है  अथवा ऐसे व्यपहरण या अपहरण के पश्चात् किसी का व्यक्ति का निरोध करता है, और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु या उपहति कारित करने की धमकी देता है, अथवा अपने आचरण से ऐसी युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न करता है कि ऐसे व्यक्ति की हत्या या उपहति कारित की जा सकती है अथवा ऐसे व्यक्ति को उपहति या मृत्यु, 2 सरकार [ या किसी विदेशी राज्य या अंतरराष्ट्रीय अंतरसरकारी संगठन या किसी अन्य व्यक्ति] को किसी कार्य को करने या करने से विरत रहने अथवा फिरौती अदा करने के लिए बाध्य करने के उद्देश्य से कारित करता है, मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास से दंडित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

 

संज्ञेय संज्ञेय (गिरफ्तारी के लिए वॉरेंट आवश्यक नही)
जमानत गैर जमानतीय
विचारणीय सेशन न्यायालय
समझौता नही किया जा सकता

366A IPC से  सम्बन्धित सुप्रीम कोर्ट के  निर्णय 

मल्लेशी बनाम कर्नाटक राज्य के निर्णय में अभियुक्त ने फिरौती के उद्देश्य से अपहरण किया । पीड़ित अभियोजन साक्षी को यह बात स्पष्टतः कह दी गयी थी और उसको फिरौती की राशि की जानकारी दे दी गई थी । उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि एक सुस्पष्ट सूत्र के रूप में यह प्रतिपादित नहीं किया जा सकता कि फिरौती की राशि की मांग उसी व्यक्ति से ही की जानी चाहिये जो अंतत : फिरौती की रकम अदा करता है । उदाहरण के रूप में यह कहा जा सकता है कि किसी अमीर व्यापारी का अपहरण किया जाता है । उसको सुरक्षित वापसी के लिये उससे यह कहा जाता है कि उसके परिवार के सदस्य एक निश्चित रकम अदा करें , परन्तु वह रकम वास्तव में अपहृत व्यक्ति को ही है । जिस व्यक्ति को रकम अदा करने के लिये कहा जाता है वह व्यक्ति ही रकम अदा करता है । रकम की मांग प्रारम्भ में अपहृत या व्यपहृत व्यक्ति से ही की जाती है । अपहृत या व्यपहृत व्यक्ति से रकम की मांग करने के पश्चात् यह मांग किसी अन्य व्यक्ति से नहीं कहीं जा सकी । क्योंकि इस बीच अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया जाता है , तो यह अपराध धारा 364 – क की परिधि से बाहर नहीं चला जाता

महाराष्ट्र राज्य बनाम अनिल उर्फ राजू नामदेव पाटिल के निर्णय  में स्कूल से पाँच वर्षीय शिशु का अपहरण कर लिया गया और फिर वह कभी वापस नहीं आया । पीड़ित के पिता का पूर्व चालक अभियुक्त था । अभियुक्त द्वारा बताये गये स्थान से पाई गई हड्डियों के डी ० एन ० ए ० परीक्षण से पता चला कि वे पीड़ित शिशु की थीं । अभियुक्त को संस्वीकृति और सह अभियुक्त को न्यायेतर संस्वीकृति से यह सिद्ध हुआ उन्होंने पीड़ित के व्यपहरण और फिरौती की मांग को योजना बनाई थी । सह अभियुक्त , जिसने बाद मे आत्महत्या कर ली, के आत्महत्या पत्र में भी अभियुक्त की सह अपराधिता की बात लिखी थी । उच्चतम न्यायालय ने धाराओं 364A  और 201 के अधीन को गई अभियुक्त की दोषसिद्धि को उचित ठहराया । पी ड़ित के पिता के प्रति अभियुक्त का वैमनस्य था और अपराध को पूर्व चिंतन से कारित किया गया जिससे मस्तिष्क की पूर्ण विकृति और पतितता झलकती है । इस कारण यह विरल में विरलतम मामला है जिसमें मृत्यु का दंडादेश उचित है

 

 

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