363A IPC In Hindi

363A IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: अगर कोई व्यक्ति किसी नाबालिक व्यक्ति का व्यपहरण [kidnap] इसलिए करता है कि वो ऐसे  नाबालिक को अपनी अभिरक्षा (Custody) में गैर कानूनी रूप से रखे जबकि वह उसका कानूनी रूप से संरक्षक नही है और या फिर  उस नाबालिक से भीख मँगवाने के लिए वह ऐसा व्यपहरण करता है या ऐसे नाबालिक को विकलांग करके भीख मँगवाता है, तो ऐसा करने वाले को सजा होगी ,  (1) जो भीख मँगवाने के लिए किसी नाबालिक का अपहरण करता है उसको 10 साल तक की सजा से दंडित किया जा सकता और जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा | (2) अगर कोई नाबालिक का व्यपहरण करके उसको विकलांग करके भीख मँगवाता है, तो ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास से दंडित किया जा जाएगा और जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा !

363 A IPC भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए अप्राप्तवय का व्यपहरण या विकलांगीकरण – (1) जो कोई किसी अप्राप्तवय का इसलिए व्यपहरण करेगा या अप्राप्तवय का विधिपूर्ण संरक्षक स्वयं न होते हुए अप्राप्तवय की अभिरक्षा इसलिए अभिप्राप्त करेगा की ऐसा अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

(2) जो कोई किसी अप्राप्तवय को विकलांग इसलिए करेगा की ऐसा अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए , वह आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

(3) जहां की कोई व्यक्ति , जो अप्राप्तवय का विधिपूर्ण संरक्षक नहीं है , उस अप्राप्तवय को भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त करेगा , वहाँ जब तक की तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए , यह उपधारणा की जाएगी की उसने इस उद्देश्य से उस अप्राप्तवय का व्यपहरण किया था या अन्यथा उसकी अभिरक्षा अभिप्राय की थी की वह अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए ।

(4) इस धारा में , –

(क)“भीख मांगने” से अभिप्रेत है –

(Ⅰ) लोक स्थान में भिक्षा की याचना या प्राप्ति चाहे गाने , नाचने , भाग्य बताने , करतब दिखने या चीज़े बेचने के बहाने अथवा अन्यथा करना ,

(Ⅱ) भिक्षा की याचना या प्राप्ति करने के प्रयोजन से किसी प्राईवेट परिसर में प्रवेश करना ,

(Ⅲ) भिक्षा अभिप्राप्त या उद्दापित करने के उद्देश्य से अपना या किसी अन्य व्यक्ति का या जीवजंतु का कोई व्रण , घाव , विरूपता या रोग अभिदर्शित या प्रदर्शित करना ,

(Ⅳ) शिक्षा की याचना या प्राप्ति से प्रयोजन से अप्राप्तवय का प्रदर्शित के रूप में प्रयोग करना,

(ख) अप्राप्तवय से वह व्यक्ति अभिप्रेत है , जो –

(Ⅰ) यदि नर है , तो सोलह वर्ष से कम आयु का है , तथा

(Ⅱ) यदि नारी है , तो अठारह वर्ष से कम आयु की है ।

टिप्पणी

भीख मांगने के प्रयोजनो के लिए अप्राप्तवय का व्यपहरण या विकलांगीकरण इस धारा के अधीन दंडनीय अपराध है । इस धारा के खंड (1) के अनुसार , जो कोई किसी अप्राप्तवय का इसलिए व्यपहरण करेगा या उसका विधिपूर्ण संरक्षक स्वयं न होते हुए उसकी अभिरक्षा इसलिए प्राप्त करेगा की उसे भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए , वह दस वर्ष तक के सादा या कठिन कारावास से दंडनीय होगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा । खंड (2) के अनुसार , भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किए जाने के लिए जो कोई किसी अप्राप्तवय को विकलांग करेगा , वह आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा । खंड (3) के अनुसार , जहां की कोई व्यक्ति किसी अप्राप्तवय का विधिपूर्ण संरक्षक नहीं होते हुए भीख मांगने के प्रयोजन के लिए उसको नियोजित या प्रयुक्त करेगा , वहाँ जब तक की इसके प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए , यह उपधारणा की जाएगी की उसने इस उद्देश्य से उस अप्राप्तवय का व्यपहरण किया था या अन्यथा उसकी अभिरक्षा अभिप्राप्त की थी की वह अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए । खंड 4 (क) के अनुसार इस धारा में भीख मांगने का अर्थ (Ⅰ) लोक स्थान में भिक्षा की याचना या प्राप्ति चाहे गाने , नाचने , भाग्य बताने , करतब दिखाने या चीज़े बेचने के बहाने या अन्यथा करना , (Ⅱ) भिक्षा की याचना या प्राप्ति करने के प्रयोजन से किसी प्राइवेट परिसर में प्रवेश करना , (Ⅲ) भिक्षा अभिप्राप्त या उद्दापित करने के उद्देश्य से अपना या किसी अन्य व्यक्ति का या जीव जन्तु का कोई व्रण , घाव , क्षति , विरूपता या रोग अभिदर्शित या प्रदर्शित करना , (Ⅳ) भिक्षा की याचना या प्राप्ति के प्रयोजन से अप्राप्तवय का प्रदर्शित के रूप में प्रयोग करना है । खंड 4 (ख) ‘अप्राप्तवय’ शब्द की परिभाषा देते हुए यह स्पष्ट करता है की इसका अर्थ सोलह वर्ष से कम आयु का नर , तथा अठारह वर्ष से कम आयु की नारी है ।

इस धारा को भारतीय दंड संहिता में 1959 के अधिनियम 52 द्वारा जोड़ा गया , और इसका मुख्य उद्देश्य भिक्षावृत्ति के लिए शिशुओ का व्यपहरण करने और उससे भी अधिक उनको विकलांग बनाकर उन्हें दया का पात्र बनाने जैसे घिनौने कार्यों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना था । उपरोक्त पूर्ववर्ती कार्य के लिए दंड पर्याप्त कठोर है और पश्चातवर्ती कार्य के लिए अत्यधिक कठोर दंड की व्यवस्था की गई है । इस धारा के तृतीय खंड में कठोर और प्रभावी भाषा के द्वारा उस व्यक्ति के विरुद्ध उपधारणा की बात काही गई है जो अप्राप्तवय का विधिपूर्ण संरक्षक नहीं है और उसको भीख मांगने के प्रयोजन के लिए नियोजित या प्रयुक्त करता है । चतुर्थ खंड के अंतर्गत भीख मांगने की परिभाषा को भी पर्याप्त विस्तार दिया गया है और लगभग सभी महत्वपूर्ण बातें इसमे सम्मिलित कर ली गई है ।

इस धारा के अधीन अपराध संज्ञेय , अजमानतीय और अशमनीय है , और यह सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है ।

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