363 IPC In Hindi

363 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: अगर कोई व्यक्ति धारा 360  ipc या 361 ipc में बताई गई परिभाषा जो कि  बात करती है कि अगर कोई व्यक्ति किसी नाबालिक को अगर वह नर है, तो 16 वर्ष से कम आयु वाले को और अगर वह नारी है तो 18 वर्ष से काम आयु वाली को या किसी मनबुद्धी व्यक्ति को जो की  कानूनन अपने माता-पिता या संरक्षक की संरक्षकता में हो और ऐसे व्यक्ति को कोई व्यक्ति बिना माता-पिता या संरक्षक की सहमति के ले जाता है या बहका कर ले जाता है तो ऐसे व्यक्ति को 363 IPC के तहत 7 साल तक की सजा से दंडित किया जा सकता है, और जुर्माने से भी ऐसा व्यक्ति दंडनीय होगा !

363 IPC व्यपहरण के लिए दण्ड – जो कोई भारत में से या विधिपूर्ण संरक्षकता में से किसी व्यक्ति का व्यपहरण करेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी ,दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

टिप्पणी

धारा 360 और धारा 361 के अंतर्गत दोनों प्रकार के व्यपहरण की यह धारा दण्ड की व्यवस्था करती है। इसके अनुसार , जो कोई भारत में से किसी व्यक्ति का व्यपहरण करेगा या विधिपूर्ण संरक्षकता में से किसी व्यक्ति का व्यपहरण करेगा , वह सात वर्ष तक के सादा या कठिन कारावास से दंडित किया जाएगा , और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है की जहां किसी जनजाति में यह प्रथा हो की पुरुष पहले किसी स्त्री को बलपूर्वक ले जाता है और फिर बाद में उनके समुदाय और पुरुष और स्त्री दोनों के परिवारों के गुरुजनों की सम्मति से उससे विवाह करता है , और इस प्रथा के अंतर्गत अपीलारथी के द्वारा एक विवाहित स्त्री को पहले उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके विधिपूर्ण संरक्षक से बलपूर्वक ले जाया गया , सभी अभियुक्तों ने विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण का अपराध कारित किया और वे सभी धारा 363 के अधीन दंडनीय है , और कोई प्रथा देश की विधि के साथ हस्तक्षेप नहीं कर सकती , परंतु क्योंकि पीड़ित के साथ कोई छेड़खानी नहीं की गई इसलिए सभी को कम दंड से दंडित किया गया । जहां अभियुक्त ने लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने के आशय से एक अप्राप्तवय बालिका का व्यपहरण किया , और यह पाया गया की वह बालिका पहले से ही सम्भोग करने की आदि थी , और उसने अभियुक्त के साथ ऐसे संबंधों के लिए अपनी सम्मति दी थी , यह अभिनिर्धारित किया गया की अभियुक्त विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण के अपराध के लिए दोषी है , पर बालिका की सम्मति धारा 363 के अधीन अभियुक्त के दंड को कम कर देगी । जहां विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण का अपराध कारित करते हुए सदोष आवरोध और सदोष परिरोध कारित किया जाता है , और वह व्यपहरण के आशय से अलग नही किया जा सकता तो वह व्यपहरण के अपराध का अनिवार्य अंग बन जाता है , और उसके लिए अलग से दोषसिद्धि और दंडादेश विधि के अनुकूल नहीं है ।

इस धारा के अधीन अपराध संज्ञेय , जमानतीय और आशमनीय है , और यह प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है ।

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