362 IPC In Hindi
362 IPC Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: अगर कोई व्यक्ति किसी वयस्क व्यक्ति पर बल (force) का इस्तिमाल (use ) करके या प्रवंचना से (यानि बहला-फुसलाकर या झूठ बोलकर, कपट द्वारा ) किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाता है, तो ऐसा करने वाला व्यक्ति अपहरण करता है |जिसे धारा 365 आईपीसी के तहत दंडित किया जा सकेगा !
362 IPC अपहरण (Abduction) – जो कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिए बल द्वारा विवश करता है , या किन्हीं प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है , वह उस व्यक्ति का अपहरण करता है , यह कहा जाता है ।
टिप्पणी
अपहरण के अपराध को इस धारा के अंतर्गत परिभाषित किया गया है । इसके अनुसार , जो कोई किसी व्यक्ति को ले जाने के लिए या तो बल द्वारा विवश करता है या किन्हीं प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है , वह उस व्यक्ति का अपहरण करता है । इस प्रकार अपहरण के अपराध के लिए यह आवश्यक है की अभियुक्त ने या तो किसी व्यक्ति को बल द्वारा किसी स्थान से जाने के लिए विवश किया हो , या उसने किन्हीं प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उसे किसी स्थान से जाने के लिए उत्प्रेरित किया हो । दूसरे शब्दों में , इस अपराध के लिए अभियुक्त की ओर से बल द्वारा किसी को जाने के लिए विवश करने का या प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उसे जाने के लिए उत्प्रेरित करने का तत्व विधमान होना चाहिए । ‘बल’ शब्द का अर्थ वही है जो संहिता की की धारा 349 के अंतर्गत वर्णित है । उत्प्रेरित करने का अर्थ प्रोत्साहन देना है ; अपहर्ता की ओर से सक्रिय सुझाव होना चाहिए जिससे पीड़ित को ऐसे स्थान में जाने के लिए सम्मत किया जा सके जहां इस सुझाव की अनुपस्थिति में वह न जाता । उत्प्रेरण में पीड़ित के चित्त में परिवर्तन होता है । अभिव्यक्ति ‘प्रवंचनापूर्ण उपायों’ का प्रयोग यह स्पष्ट करता है की अपराधी के द्वारा अपनाए गए उपाये ऐसे होना चाहिए जिनसे पीड़ित को धोका दिया गया हो । इस अभिव्यक्ति का विस्तार प्रयाप्त व्यापक है , और इसमें भ्रामक कथन भी सम्मिलित है ।
जहां एक वयस्क स्त्री को उसकी इच्छा के विपरीत बल द्वारा चाहे उसके पति को सौंप देने के उद्देश्य से ले जाया जाता है , तो भी यह कार्य अपहरण ही होगा क्योंकि उस स्त्री को बल द्वारा किसी स्थान से जाने के लिए विवश किया जाता है । जहां अभियुक्त ने एक अप्राप्तवय बालिका को पिस्तौल द्वारा धमकाकर अपने साथ जाने के लिए उत्प्रेरित किया , यह कार्य अपहरण होगा , विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण नहीं , क्योंकि बल द्वारा विवश किए जाने का तत्व विद्यमान है । जहां एक विवाहित स्त्री ने अपने स्वयं के अपहरण में अपनी सम्मति दी , उसे अपने स्वयं के अपहरण के दुष्प्रेरण के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अपहरण के अधिषठायी अपराध का कारित किया जाना संभव था ।
विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण का अपराध और अपहरण में अंतर
विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण का अपराध केवल किसी अप्राप्तवय , यदि वह नर हो तो सोलह वर्ष से कम आयु वाले या यदि वह नारी हो तो अट्ठारह वर्ष से कम आयु वाली , या किसी विकृतचित्त व्यक्ति के विरुद्ध ही कारित किया जा सकता है , जबकि अपहरण का अपराध किसी भी आयु के व्यक्ति के विरुद्ध कारित कीयस जा सकता है । विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण में ले जाना या बहका के जाना पीड़ित के विधिपूर्ण संरक्षक की सम्मति के बिना ही होना आवश्यक है , परंतु अपहरण में ऐसा होना आवश्यक नहीं है । विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण में ले जाना या बहक ले जाना पीड़ित के विधिपूर्ण संरक्षक की संरक्षकता में से ही होना चाहिए । जबकि अपहरण में ऐसी कोई बात नहीं है । विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण में पीड़ित के द्वारा दी गई सम्मति महत्वहीन होती है , जबकि अपहरण में यदि पीड़ित के द्वारा दी गई सम्मति स्वतंत्र और स्वेच्छया हो तो अपहरण का अपराध कारित नहीं होता । विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण जारी रहने वाला अपराध नहीं होता , परंतु अपहरण जारी होने वाला अपराध है । विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण स्वत: ही अपराध है जिसमे में अपराधी की मन:स्थिति को साबित किए जाने की आवश्यकता नहीं है , और यह धारा 363 के अधीन दंडनिय है , परंतु अपहरण अपने आप में अपराध नहीं होता , और इसे पश्चातवर्ती धाराओं के अधीन केवल तभी दंडनीय बनाया गया है जब दोषपूर्ण कार्य के साथ विशिष्ट आपराधिक मन:स्थिति भी सम्मिलित हो ।