349 ipc In Hindi

349 IPC बल – कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर बल का प्रयोग करता है , यह कहा जाता है , यदि वह उस अन्य व्यक्ति में गति , गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है या यदि वह किसी पदार्थ में ऐसी गति , गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है जिससे उस पदार्थ का स्पर्श उस अन्य व्यक्ति के शरीर के किसी भाग से या किसी ऐसी चीज से , जिसे वह अन्य व्यक्ति पहने हुए या ले जा रहा है , या किसी ऐसी चीज से, जो इस प्रकार स्थित है की ऐसे संस्पर्श से उस अन्य व्यक्ति की संवेदन-शक्ति पर प्रभाव पड़ता है, हो जाता है !

परंतु यह तब जबकि गतिमान गति-परिवर्तन या गतिहीनता करने वाला व्यक्ति उस गति , गति-परिवर्तन या गतिहीनता को एतस्मिन पश्चात वर्णित तीन तरीकों में से किसी एक द्वारा कारित करता है, अर्थात:-

पहला – अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा ।

दूसरा – किसी पदार्थ के इस प्रकार व्ययन द्वारा की उसके अपने या किसी व्यक्ति द्वारा कोई अन्य कार्य के किए जाने के बिना ही गति या गति-परिवर्तन या गतिहीनता घटित होती है ।

तीसरा – किसी जीवजंतु को गतिमान होने , गति-परिवर्तन करने का या गतिहीन होने के लिए उत्प्रेरण द्वारा ।

Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर (1) अपनी निजी शक्ति के प्रयोग द्वारा या (2) किसी पदार्थ के प्रयोग से या (3) किसी जीवजन्तु का प्रयोग करके यानि उपरोक्त 3 तरीकों मे से किसी भी एक का उपयोग करके उस अन्य व्यक्ति की गति ,गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित करता है यानि उसके हाव – भाव (Gesture Posture) मे परिवर्तन करता है तो यह कहा जाता है कि जिसने ऐसा किया उसने बाल का प्रयोग किया है !

टिप्पणी

यह धारा ‘बल’ शब्द को परिभाषित करती है । इसके अनुसार , यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति में गति , गति-परिवर्तन या गातीहीनता करीत कर देता है , यदि वह किसी पदार्थ में ऐसी गति , गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है जिससे उस पदार्थ का स्पर्श उस अन्य व्यक्ति के शरीर के किसी भाग से या किसी ऐसी चीज से जिसे वह अन्य व्यक्ति पहने हुए है , या किसी ऐसी चीज से जो इस प्रकार स्थित है की ऐसे संस्पर्श से उस अन्य व्यक्ति की संवेदन शक्ति पर प्रभाव पढ़ता है , हो जाता है , परंतु यह तब जब की गतिमान , गति परिवर्तन या गतिहीन करने वाला व्यक्ति उस गति , गति-परिवर्तन या गतिहीनता को अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा , या किसी पदार्थ के इस प्रकार व्ययन द्वारा की उसके अपने या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई अन्य कार्य के किए जाने के बिना ही गति या गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित होती है , या किसी जीवजंतु को गतिमान होने , गति-परिवर्तन करने या गतिहीन होने के लिए उत्प्रेरण द्वारा , कारित करता है , वह उस अन्य व्यक्ति पर बल का प्रयोग करता है ।

इस धारा में शब्दों ‘किसी अन्य व्यक्ति पर’ ‘उस अन्य व्यक्ति में’ तथा ‘उस अन्य व्यक्ति के’ का प्रयोग यह स्पष्ट करता है की भारतीय दंड संहिता में ‘बल’ शब्द का प्रयोग केवल शरीर संबंधी अर्थों में ही किया गया , अन्य किसी अर्थ जेसे सम्पत्ति आदि के संबंध में नहीं ।

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