340 ipc in hindi
आईपीसी सदोष परिरोध – जो कोई किसी व्यक्ति का इस प्रकार सदोष अवरोध करता है की उस व्यक्ति को निश्चित परिसीमा से परे जाने से निवारित कर दे , वह व्यक्ति का “सदोष परिरोध” करता है , यह कहा जाता है । वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी , या जुर्माने से , जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा , या दोनों से , दंडित किया जाएगा ।
Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को किसी निश्चित स्थान की परिसीमा मे रोक दे या किसी खास स्थान से बाहर जाने से रोकदे जिससे वह व्यक्ति कही जा न सके तो ऐसा करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति सदोष परिरोध मे रखता है यह कहा जाएगा ! उदाहरण दखे !
- य को दीवार से घिरे हुए स्थान में प्रवेश कराकर क उसमे ताल लागा देता है । इस प्रकार य दीवार की परिसीमा से परे किसी भी दिशा में नहीं जा सकता । क ने य का सदोष परिरोध किया है ।
- क एक भवन के बाहर आने के द्वारों पर बंदूकधारी मनुष्यों को बेठा देता है और य से कह देता है की यदि य भवन से बाहर जाने का प्रयत्न करेगा तो वे य को गोली मार देंगे । क ने य का सदोष परिरोध किया है ।
टिप्पणी
यह धारा सदोष परिरोध के अपराध को परिभाषित करती है । इसके अनुसार , जो कोई किसी व्यक्ति का इस प्रकार सदोष अवरोध करता है की उस व्यक्ति को निश्चित परिसीमा से परे जाने से निवारित कर दे , वह उस व्यक्ति का सदोष परिरोध करता है । दूसरे शब्दों में , इस अपराध का सदोष अवरोध का होना आवश्यक है पर अवरोध ऐसा होना चाहिए की पीड़ित व्यक्ति निश्चित परीसीमा से परे जाने से निवारित हो जाए । उस परिसीमा के भीतर घूमने –फिरने की सम्पूर्ण और बिना रोक-टॉक स्वतंत्रता हो सकती है , पर उस परीसीमा के बाहर किसी भी दिशा में नहीं । इस धारा में दिए गए दोनों दृष्टांतो से यह स्पष्ट है की अवरोध कारित करने का ढंग कुछ भी हो सकता है और उसका कोई महत्व नहीं है । महत्वपूर्ण बात केवल यही है की निश्चित परिसीमा के भीतर सदोष अवरोध सम्पूर्ण होना चाहिए , अर्थात सभी दिशाओ में होना चाहिए , केवल कुछ दिशाओ में नहीं , और तभी सदोष परिरोध का अपराध कारित होगा । दूसरे शब्दों में , सदोष परिरोध का का अपराध इस प्रकार का सदोष अवरोध है जहां अवरोध सम्पूर्ण है और पीड़ित व्यक्ति को एक निश्चित सीमा से परे किसी भी ओर जाने की अनुमति नहीं है । इस धर में प्रयुक्त भाषा से यह स्पष्ट है की सदोष परिरोध नामक अपराध को एक अन्य अपराध , सदोष अवरोध , की सहायता से परिभाषित किया गया है । घूमने-फिरने की स्वतंत्रता को एक निश्चित परिसीमा के भीतर सम्पूर्ण रूप से रोक दिया जाना चाहिए , और यदि बाहर निकालने का कोई उपाय हो तो वह अपराध सदोष परिरोध का अपराध नहीं हो सकता । यह अपराध मिथ्या कारावास के अपकृत्य के समान है । इस अपराध के लिए वास्तविक शारीरिक अवरोध साबित किया जाना कदाचित आवश्यक नहीं है , पर पीड़ित व्यक्ति के मस्तिष्क में यह विचार होना चाहिए की उस निश्चित स्थान से परे जाने के लिए वह स्वतंत्र नहीं है , और यदि उसने कभी भी परे जाने का प्रयत्न किया तो उसे तत्काल अवरोधी कर दिया जाएगा । जहां तक दायित्व का प्रशन है परिरोधिक किए जाने जाने की अवधि महत्वपूर्ण नहीं है , पर बात दंड की मात्रा निर्धारित करने में सुसंगत हो सकती है ।
जहां अभियुक्त एक ऐसे नगर में रहता था जहां युक्तियुक्त चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध थी , और उसने अपने भी को भारी जंजीरों से पकड़ रखा था क्यूंकी आंतरिक उन्मत्तता से ग्रसित था , यह अभिनिर्धारित किया गया की वह सदोष परिरोध का दोषी था । जहां अभियुक्त पुलिस अधिकारी ने न्यायालय के जमानत के आदेश दिखा दिए जाने के बावजूद एक व्यक्ति को थाने में रोके रखा , उसे सदोष परिरोध कारित करने के लिए दंडित किया गया ।
ननिया नानूराम बनाम राज्य में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की विविध्यता के अंतर्गत किसी व्यक्ति को किसी विशिष्ट दिशा की ओर चलने के लिए बाध्य करना 340 में परिभाषित सदोष परिरोध का अपराध है ।
[…] Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: सदोष परिरोध अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को किसी निश्चित स्थान की परिसीमा से निकालने न दे और अगर ऐसा सदोष परिरोध 10 दिन तक का या 10 दिन से अधिक दिन तक तो ऐसा करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति सदोष परिरोध मे रखता है और धारा 344 आईपीसी कए अंतर्गत अपराध करता है ! ( धारा 340 देंखें सदोष परिरोध https://www.kanoonkiroshnimein.com/340-ipc-in-hindi/) […]