339 Ipc In Hindi

सदोष अवरोध और सदोष परिरोध के विषय में

संहिता की धाराए 339 से 348 एक सदोष अवरोध और सदोष परिरोध से संबंधित है । इन धाराओ में इन्हे परिभाषित भी किया गया है और इनके कारित भी किए जाने पर दंड की आवधि भी निश्चित की गई है । संहिता के इस भाग में कतिपय विशेष परिस्थितियों में कारित किए जाने वाले सदोष अवरोध और सदोष परिरोध को भी दंडित किया गया है ।

339  आईपीसी सदोष अवरोध – जो कोई किसी व्यक्ति को स्वेच्छया ऐसे बाधा डालता है की उस व्यक्ति को उस दशा में , जिसमे उस व्यक्ति को जाने का अधिकार है , जाने से निवारित कर दे , वह उस व्यक्ति का सदोष अवरोध करता है , एक कहा जा सकता है । वह सादा कारावास से , जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी , या जुर्माने से , जो पाँच सो रुपये तक का हो सकेगा , या दोनों से , दंडित किया जाएगा ।

Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को उस एक दिशा मे जाने से रोकता है जिस एक दिशा मे उसको जाने का अधिकार है तो ये माना जाएगा उसने सदोष अवरोध का अपराध किया है !और इंद्रीसन मुगम 1971 बॉम्बे क्रिमिनल ला जनरल के जजमेन्ट के अंतर्गत सदोष अवरोध भोतीक रूप से, शारीरिक रूप से, शब्दों के द्वारा या अन्य किसी रूप मे भी हो सकता है! परंतु ऐसा व्यक्ति स्वयं के प्राइवेट मार्ग मे आने से रोकता है तो अपराध नही होगा !नीचे अपवाद को देखे !

अपवाद- भूमि के या जल के किसी प्राइवेट मार्ग में बाधा डालना जिसके संबंध में किसी व्यक्ति को सद्भावपूर्वक विश्वास है की वहाँ बाधा डालने का उसे विधिपूर्ण अधिकार है , इस धारा के अर्थ के अंतर्गत अपराध नहीं है ।

टिप्पणी

यह धारा सदोष अवरोध के अपराध को परिभाषित करती है । इसके अनुसार , जो कोई किसी व्यक्ति को स्वेच्छया ऐसे बाधा डालता है की उस व्यक्ति को जिस दिशा में जाने का अधिकार है उसमे जाने से निवारित कर दे , वह उस व्यक्ति का सदोष अवरोध करता है । परंतु इसी धारा मे उल्लिखित एक अपवाद के अनुसार , भूमि के या जल के ऐसे प्राइवेट मार्ग में बाधा डालना जिसके संबंध में किसी व्यक्ति को सद्भावपूर्वक विश्वास है की वहाँ बाधा डालने का उसे विधिपूर्ण अधिकार है , इस धारा के अर्थ में अपराध नहीं है ।

जहां किरायेदार किसी परिसर को वेध रूप से बंद कर उसमे ताला लगा देता है , और भू – स्वामी अवेध रूप से इसलिए उस ताले पर पर एक और ताल लगा देता है की वो किरायेदार को अंदर आने से रोक सके , भू-स्वामी सदोष अवरोध का अपराध करने का दोषी है । जहां परिवादी को अपने बेलों के साथ हो कर एक रास्ते से होकर जाने से रोकने के लिए अभियुक्त ने बेलों को पीटकर उस रास्ते से भगाया , अभियुक्त को सदोष अवरोध के लिए दोषी ठहराया गया क्यूंकी अपने बेलों के साथ उस रास्ते पर से होकर परिवादी का जाने का अधिकार है ।

राजिंदर सिंह कटोच बनाम चण्डीगड़ प्रशासन में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की अविभक्त कुटुम्ब की समपत्ती का अंश बँटवाने का सह-अंशधारक का अधिकार एक सिविल अधिकार है । यदि किसी भी कारण से अन्य सह-अंशधारक यह अधिकार देने से इनकार करे तो सिविल विधियों के अधीन प्राप्त उपचारों की सहायता से इनको प्रवर्तित करवाया जाना चाहिए । ऐसे सिविल अधिकार का प्रवर्तन करवाने के लिए आपराधिक कार्यवाहियों की सहायता नहीं ली जा सकती ।

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