330 ipc in hindi
330 आईपीसी संस्वीकृति उद्धापित करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करना – जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा की उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी , जिससे किसी अपराध अथवा अवचार का पता चल सके , उद्धापित की जाए अथवा उपहत व्यक्ति या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को मजबूर किया जाए की वह कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति प्रत्यावर्तित करे , या करवाए , या किसी दावे या मांग की पुष्टि , या ऐसी जानकारी दे , जिससे किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी , दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words: यह धारा यह बताती है कि अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को इस उद्देश्य से चोट ( simple injury )पहुंचाता है, जिससे वह कोई संस्वीकृति (confession) प्राप्त कर सके या उसके हितबद्ध किसी व्यक्ति से संस्वीकृति (confession) प्राप्त करे और यह धारा यह भी बताती है कि अगर चोट इस उद्देश्य से पहुंचायी जाती है जिसके अधीन ऐसे पीड़ित व्यक्ति को विवश या मजबूर करके कोई संपत्ति प्राप्त की जावे या उसके हितबद्ध किसी व्यक्ति से ऐसा करवाया जा सके जिससे उसका हितबद्ध व्यक्ति मजबूर या विवश होकर कोई संपत्ति उसको प्रदान करदे तो जो कोई व्यक्ति ऐसा करके कोई संस्वीकृति (confession) या कोई संपत्ति प्राप्त करेगा वह व्यक्ति इस धारा के अधीन दोषी होगा !
दृष्टांत
- क , एक पुलिस ऑफिसर , य को यह संस्वीकृति करने को की उसने अपराध किया है उत्प्रेरित करने के लिए यातना देता है , क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
- क एक पुलिस ऑफिसर , यह बतलाने को की अमुक चुराई हुई संपत्ति कहा रखी है उत्प्रेरित करने के लिए ख को यातना देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
- क एक राजस्व ऑफिसर , राजस्व की वह बकाया , जो य द्वारा शोध्य है , देने को य को विवश करने के लिए उसे यातना देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
- क , एक जमींदार , भाटक देने को विवश करने के लिए अपनी एक रेयत को यातना देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।
टिप्पणी
संस्वीकृति उद्धापित करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन करने के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करना इस धारा के अधीन दंडनीय अपराध है । इसके अनुसार , जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा की उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी जिससे किसी अपराध अथवा अवचार का पता चल सके , उद्धापित की जाए , अथवा उपहत व्यक्ति या उससे हितबद्ध व्यक्ति को मजबूर किया जाए की वह कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति प्रत्यावर्त्तित करे , या करवाए, या किसी दावे या मांग की पुष्टि करे , या ऐसी जानकारी दे जिससे किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके , वह सात वर्ष तक के सादा या कठिन कारावास से दंडित किया जाएगा , और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की बंदी के साथ किसी प्रकार का कर , अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या अभिरक्षा में उसकी मृत्यु संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रतिकूल है चाहे वह अनुसंधान , परिप्रशन या अन्यथा के दोरान हो । भारतीय दंड संहिता की धारा 330 जिसके अधीन अनुसंधान या परिप्रशन के दोरान यातना देता स्पष्ट: दंडनीय है , नागरिक के द्वारा किए गए अन्याय को समाप्त नहीं करता । प्रत्येक अपराध के लिए अपराधी का अभियोजन राज्य का कृतव्य है परंतु अपराध के द्वरा पीड़ित व्यक्ति को धन के रूप में प्रतिकार दिया जाना भी आवश्यक है । अत: मूल अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में न्यायालय मात्र घोषणा कर चुप नहीं बेठ सकता । उसे आगे बढ़ कर प्रतिकरात्मक राहत , सिविल विधि की तरह नुकसानी प्रदान कर नहीं , बल्कि नागरिक के प्राण के मूल अधिकार का राज्य द्वारा संरक्षण न कर सकने के लोक कृतव्य का उल्लंघन कर अन्याय कारित करने के लिए लोक विधि अधिकारात्मक के अंतर्गत प्रतिकार के रूप में देनी चाहिए ।