325 ipc in hindi

325 आईपीसी स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिए दंड – उस दशा के सिवाय , जिसके लिए धारा 335 में उपबंध है , जो कोई  स्वेच्छया  घोर उपहति करीत करेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी , दंडित किया जाएगा , और जुर्माने से भी , दंडनिए होगा।

Explanation In Kanoon Ki Roshni Mein Words : कोई व्यक्ति किसी कार्य को इस आशय और ज्ञान के साथ करता है ,जिससे किसी को घोर उपहति कारित करे या वह यह जनता हो कि उसका वह कार्य संभाव्य ही  स्वेच्छया  घोर उपहति कारित कर ददेगा तो उसका यह कार्य करना 325 मे वर्णित धारा का अपराध करता है!

घोर उपहति [Grievous Hurt] के लिए निम्न चोटों मे से कोई चोट होना आवश्यक है तभी घोर उपहति माना जाएगा -;

1 पुंसत्वहरण [Emasculation] (परूष शक्ति को समाप्त कर देना)

2 दोनों मे से किसी भी नेत्र की दृष्टी का स्थायी विच्छेद (permanent)

3 दोनों मे से किसी भी कान की श्रवण शक्ति का स्थायी विच्छेद (permanent)

4 किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेद (privation of joint)

5 किसी भी अंग या जोड़ की शक्तियों का नाश या स्थायी हानि [permanent Impairing]

6 सिर या चेहरे का स्थायी विदरूपीकरण [Disfiguration]

7 अस्थि या दांत का भंग या विसंधान (dislocation of bone or tooth)

8 कोई उपहति जी जीवन को संकटापन्न करती है या जिसके कारण उपहत [hurt] व्यक्ति बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा मे रहता है या मामूली कामकाज को करने मे असमर्थ रहता है !(राज्य बनाम शिव लिंगया air 1988 )

टिप्पणी

इस धारा के अधीन  स्वेच्छया  घोर उपहति कारित करने के लिए दंड की व्यवस्था है । इसके अनुसार , धारा 335 में उपबंध की दशा के सिवाय , जो कोई  स्वेच्छया  घोर उपहति कारित करेगा , वह सात वर्ष तक के सादा या कठिन कारावास से दंडित किया जाएगा ,और जुर्माने से भी दंडनीय होगा । धारा 335 जिसको इस धारा की परिधि के बाहर रखा गया है , गंभीर और अचानक प्रकोपन पर  स्वेच्छया  घोर उपहति कारित करने के संबंधित है । धारा 325 धारा 322 में परिभाषित दंड की व्यवस्था करती है ।

जहां चिकित्सीय साक्ष्य के अनुसार मृतक के माथे (कपाल) पर लाठी से क्षति कारित की गई , और बाह्य और आंतरिक क्षति के बीच सहसंबंध स्थापित नहीं किया जा सका , अभियुक्त को धारा 325 के अधीन दंडित किया जाना उचित है , धारा 304 के अधीन नहीं , क्यूंकी धारा 304 की अपेक्षित आवश्यकताए साबित नहीं होती । जहां अभियुक्त ने मृतक पर कुल्हाड़ी के हत्थे से कुछ प्रहार किए , और उनमे से कोई प्रहार शरीर के मर्म स्थान पर नहीं किया गया , यह अभिनिर्धारित किया गया की वह धारा 325 के अधीन दोषी है , धारा 307 के अधीन हत्या के प्रयत्न के लिए नहीं । जहां किशोर अभियुक्त ने अचानक झगड़े में क्षणिक आवेश में मृतक के सीने पर एक प्रहार किया , जिससे उसकी मृत्यु हो गई , उसे धारा 325 के अधीन दंडित किया गया , जहां दोनों अपीलार्थियों ने शरीर के मर्म स्थानों पर नहीं बल्कि गर्दन , घुटनों और कोहनी पर कई साधारण क्षति कारित की , परंतु सिर पर एक क्षति बहुत बलपूर्वक कारित की गई थी जिससी सभी ओर अस्थिभंग और फटन होने के कारण पीड़ित की मृत्यु हो गई , और साक्ष्य के अनुसार मृत्यु कारित करने का सामान्य आशय साबित न होकर लाठी और घूंट से घोर उपहति कारित करने का सामान्य आशय साबित हुआ , उन्हे धारा 34 के साथ धारा 325 के अधीन दंडित किया गया । पटना उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया की धारा 325 में शब्दों ‘और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ‘ का प्रयोग करता है की जुर्माना याद करना भी अपराधी का दायित्व है , यह नहीं की दोषसिद्ध के हर मामले में जुर्माने का भी दंडादेश हो ।

बसकियाराज बनाम राज्य में अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़े में अभियुक्त के द्वारा मृतक को सीडियों पर से धक्का देने पर मृतक पेर रखने के पत्थर पर गिर गया । ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था जिससे यह कहा जा सके की अभियुक्त ने मृतक को जानबूझकर उस पत्थर पर धक्का दिया था । धारा 304 भाग 2 के अधीन की गई अभियुक्त की दोषसिद्धि को धारा 325 के अधीन परिवर्तित कर दिया गया ।

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