102 IPC In Hindi

धारा 102 IPC शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना – शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध किया ना गया हो, और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है !

टिप्पणी

यह धारा शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिक के विषय में दो महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बात करती है – यह अधिकार किस क्षण आरंभ होता है और यह कब तक बना रहता है! प्रथम पहलू के बारे में यह धारा यह स्पष्ट करती है कि शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध किया ना गया हो! द्वितीय पहलू के बारे में यह धारा यह कहती है कि शरीर की प्रतिरक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है यह विधि यह नहीं कहती कि इस अधिकार के प्रयोग के लिए व्यक्ति को तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी जब तक कि शरीर पर पहला वार कर न दिया जाए! यह अधिकार उसी क्षण निहित हो जाता है जिस क्षण शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है! यह आशंका अपराध के प्रति या अपराध की धमकी से पैदा होती है! इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपराध कार्य किया गया हो क्योंकि यह अधिकार प्रतिरक्षा का अधिकार है इसलिए यह केवल आसन्न अविधिक हमले से सुरक्षा करने के लिए प्राप्त है, हमलावर को दंडित करने के लिए नहीं क्योंकि आशंका वास्तविक होनी चाहिए काल्पनिक नहीं किसी अपराध का प्रयत्न या उसकी धमकी अवश्य होनी चाहिए! धमकी से उपस्थिति और आसन्न संकट अवश्य उत्पन्न होना चाहिए!

Leave a Comment