101 IPC In Hindi
धारा 101 IPC कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक होता है – यदि अपराध पूर्वगामी प्रगणित भाँतियो में से किसी भी भाँति का नहीं है, तो शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छाया कारित करने तक का न होकर धारा 99 के अंतर्गत वर्णित निर्बन्धनो के अध्यधीन हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छाया कारित करने तक का होता है!
टिप्पणी
यह उपबन्ध धारा 100 का उपप्रमेय है इसके अनुसार यदि अपराध धारा 100 के अंतर्गत प्रगणित छह खंडों में प्रगणित भाँतियो में से किसी भी भाँति का नहीं है तो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छाया कारित करने तक का ना होकर धारा 99 के अंतर्गत वर्णित निर्बन्धनो के अध्यधीन मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छाया कारित करने तक का होता है!
जजमेंट
योगेंद्र मोराराजी बनाम राज्य में एक विधि विरुद्ध जमाव के सदस्यों ने अभियुक्त की गाड़ी को जो एक स्टेशन वैगन थी इस सामान्य उद्देश्य से रोकना और पकड़ना चाहा कि उसे क्षति कारित करने की धमकी देकर उससे धन उद्दापित किया जाए अभियुक्त ने अपना रिवाल्वर से 3 राउंड गोलियां चलाई जिनमें से एक से जमाव के एक सदस्य की मृत्यु हो गई उच्चतम न्यायालय ने अभीनिर्धारित किया कि जमाव के सदस्यों ने जैसे ही गाड़ी को रोकने के लिए अपने हाथ खड़े किए उसी समय संहिता की धारा 101 के अंतर्गत प्रायवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उत्पन्न हो गया परंतु धारा 100 के अंतर्गत प्रगणित अपराधों में से कोई अपराध कार्य किए जाने की आशंका नहीं थी फलत: यदि जमाव के सदस्यों ने गाड़ी पर पत्थर या ईट के टुकड़े फेके भी हो तो भी अभियुक्त को आवश्यक हो तो हवा में गोली चलाकर गाड़ी समेत भाग जाना चाहिए था अतः इन परिस्थितियों में से मैं उसके द्वारा मृतक की मृत्यु कार्य करना विधि द्वारा न्यायनुमत नहीं था!