100 IPC In Hindi

100 IPC In Kanoon Ki Roshni Mein Words-: 

यह धारा बताती है कि आप कब प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग मे किसी व्यक्ति की जान भी ले सकते है ! और वो 7 कंडिशन्स नीचे बतायी गई है जिनमे आप किसी व्यक्ति की जान भी ले सकते है !

धारा 100 IPC शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है –

शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार पूर्ववर्ती अंतिम धारा में वर्णित निर्बन्धनो के अधीन रहते हुए हमलावर की स्वेच्छाया मृत्यु कारित करने या कोई अन्य अपहानि कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिनपश्चात प्रगणित भाँतियो में से किसी भी भाँति का है अर्थात-

पहला – ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा;

दूसरा – ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा;

तीसरा – बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला;

चौथा – प्रकृति विरुद्ध काम तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला;

पांचवा – व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला;

छठा – इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसा परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने आप अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारीयों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा!

सातवां – अम्ल फेंकने या देने का कृत्य या अम्ल फेंकने या देने का प्रयास करना जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि ऐसे कृत्य के परिणाम स्वरुप अन्यथा घोर उपहति कारित होगी!

टिप्पणी

यह धारा इस बात को स्पष्ट करती है कि हमारे देश की आपराधिक विधि इस तथ्य को स्वीकार करती है कि कुछ परिस्थितियां ऐसी भी हो सकती हैं जिनमें व्यक्ति के पास अपने प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए आक्रमणकारी की मृत्यु कार्य करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प ना हो! इन परिस्थितियों को इस धारा के अंतर्गत 6 खंडों के रूप में निश्चित किया गया है! आरंभ में यह धारा स्पष्टत: यह कहती है कि यह 6 परिस्थितियां जिनके अंतर्गत प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में आक्रमणकारी की मृत्यु या अन्य कोई अपहानि कारित की जा सकती है, संहिता की धारा 99 के अंतर्गत उल्लेखित सामान्य निर्बन्धनो के अध्यधीन है! यह धारा इन परिस्थितियों में से कोई भी परिस्थिति उपस्थित होने पर प्रतिरक्षक स्वेच्छाया आक्रमणकारी की मृत्यु या अन्य कोई अपहानि कारित करने की शक्ति प्रदान करती है!

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