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व्याख्याकार | सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन मुद्दे को

मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपीएटी रिकॉर्ड के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन हो यानी EVM डाटा की व्यापक क्रॉस सत्यापन की मांग करने वाली याचिकाओं का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल को स्पष्ट किया कि मामले की सुनवाई दो सप्ताह के बाद की जाएगी न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने शुरू में कहा कि मामला अगले मंगलवार या बुधवार को सुना जाएगा हालांकि बाद में इसे सूची से हटा दिए जाने की संभावना पर प्रकाश डाला गया यह कहते हुए की वर्तमान रोस्टर के तहत यह संभवत अगले कि अगले सप्ताह में चला जाएगा ।

स्वागत है दोस्तों आज हम देखेंगे कि वास्तव में EVM  वीवीपीएटी सत्यापन मुद्दा क्या है यह कैसे हुआ और सुप्रीम कोर्ट इसके बारे में क्या कर रहा है इससे पहले कि हम इस मुद्दे के बारे में और गहराई से बात करें आईये हम जानते हैं की VVPAT होता क्या है वीवीपीएटी प्रणाली में कंट्रोल यूनिट में वोट की रिकॉर्डिंग के साथ-साथ उम्मीदवार के सीरियल नंबर नाम और चिन्ह वाली एक पेपर स्लिप उत्पन्न होती है ताकि किसी भी विवाद की स्थिति में दिखाई जा रहे परिणाम को सत्यापित करने के लिए पेपर स्लिप की गिनती की जा सके और उसे EVM से मिलाया जा सके एक प्रिंटर डीलिटिंग बेलाटिंग यूनिट से जुड़ा  होता है और वोटिंग बूथ में रखा जाता है एक मतदाता बेलाटिंग यूनिट पर बटन दबाने के बाद vvpat  पर मुद्रित पर्ची को एक छोटी सी देखने वाली विंडो या खिड़की के माध्यम से देख सकता है और इस प्रकार सत्यापित कर सकता है कि वोट उसकी पसंद की उम्मीदवार के लिए ही दर्ज किया गया है पारदर्शी खिड़की के माध्यम से पेपर स्लिप वीवीपीएटी पर 7 सेकंड तक दिखाई देती रहती है इसके बाद अपने आप कट जाती है और VVPAT के सील बंद ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है चुनाव संचालन नियम 1961 में संशोधन करके 2013 में VVPAT की शुरुआत की गई 2009 में डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी ने मंदमस रेट के लिए प्रार्थना करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था जिसमें इलेक्शन कमीशन को EVM  में पेपर ट्रेल या पेपर रिसीव किए प्रणाली शामिल करने का निर्देश दिया गया जो इस बात का पुख्ता सबूत हो कि ईवीएम में डाले गए वोटो को सही तरीके से दर्ज किया गया है हालांकि उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने जनवरी 2012 में उनकी प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया और याचिका का निपटारा कर दिया हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ डॉक्टर स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लगभग उसी समय राजेंद्र सत्यनारायण गिलड़ानी भी इसी तरह की राहत की मांग करते हुए भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत ही रिट याचिका दायर की उनकी याचिका को डॉक्टर स्वामी की याचिका के साथ टैग कर दिया गया और दोनों मामलों की एक साथ सुनवाई हुई अनिवार्य रूप से डॉक्टर स्वामी का मामला यह था कि उस समय प्रचलित EVM की प्रणाली सभी अंतरराष्ट्रीय मणिको को पूरा नहीं कर रही थी और हालांकि इसी आई  ने कहा था कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है लेकिन किसी भी अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की तरह यह भी हैकिंग का शिकार हो सकता है सुनवाई के दौरान उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इसी आई ने ईवीएम में पेपर बैकअप पेपर रसीद या पेपर ट्रेन नामक एक सुरक्षा उपाय शामिल करने से इनकार कर दिया है जो आसानी से और सस्ते में सबूत की आवश्यकता को पूरा करेगा कि एवं ने एक मतदाता द्वारा डाला गया वोट सही तरीके से दर्शित किया है दूसरी ओर इसी आई ने आग्रह किया की छेड़छाड़ की आशंकाएं निराधार है फिर भी उसने न्यायालय को सूचित किया कि वह पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए EVM में व्यवहार VVPAT तंत्र की शुरुआत की संभावना तलाश रही है पक्षो को सुनने के बाद न्यायालय ने 2013 में अपना फैसला सुनाया कैस का शीर्षक था सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत चुनाव आयोग पेपर ट्रेल को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अनिवार्य आवश्यकता मानते हुए और इसी आई यानी इलेक्शन कमिशन आफ इंडिया को वीवीपीएटी तंत्र पेश करने का निर्देश दिया फैसले का एक प्रासंगिक अंश आपको बताते चले EVM में मतदाताओं का विश्वास केवल पेपर ट्रेल की शुरुआत के साथ हासिल किया जा सकता है VVPAT प्रणाली के साथ EVM मतदान प्रणाली की सटीकता सुनिश्चित करते हैं ऐसा करने के इरादे से प्रणाली में पूर्ण पारदर्शिता और मतदाताओं के विश्वास को बहाल करने के लिए EVM को वीवीपीएटी प्रणाली के साथ स्थापित करना आवश्यक है क्योंकि वोट कुछ और नहीं बल्कि अभिव्यक्ति का एक कार्य है जिसका लोकतांत्रिक प्रणाली में अत्यधिक महत्व है इसके बाद ECI  ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन और VVPAT पर एक मैन्युअल तैयार किया और फिर जारी किया ।

दिशा निर्देश संख्या 16.6 में यह निर्धारित किया गया कि प्रत्येक विधानसभा खंड या निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक यांत्रिक यानी रेंडम रूप से चयनित मतदान केंद्र को VVPAT के सत्यापन से गुजरना होगा ।

अब आते हैं 2019 की एक याचिका पर जो 21 नेताओं ने दाखिल की थी 2019 में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री N चंद्रबाबू नायडू सहित 21 विपक्षी नेताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की गई जिसमें इसीआई के मैनुअल के दिशा निर्देश संख्या 16.6 को रद्द करने की मांग की गई थी ।

इन मामलों में याचिकाकर्ताओं ने इसी को एवं का न्यूनतम 50% याद वृश्चिक VVPAT  पेपर स्लिप सत्यापन करने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी जवाब में एसीयाई ने उसे समय जनशक्ति उपलब्धता सहित बुनियादी ढांचे की कठिनाइयों का हवाला दिया था यह तर्क दिया गया कि एक EVM की VVPAT पेपर ट्रेन का नमूना सत्यापन निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग अधिकारी और चुनाव पर्यवेक्षक की सीधी निगरानी में तीन अधिकारियों की एक टीम द्वारा किया जाता है इस प्रक्रिया में लगभग 1 घंटा लगता है इसीलिए याचिका करता ने जो मांगा है उसे 2019 के चुनाव के परिणाम घोषित करने में 5 से 6 दिन की देरी हो सकती है इसीआई ने भारतीय संख्यिकी संस्थान यानी आई एस आई की एक रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए कहा कि 479 यांत्रिक रूप से चयनित EVM  के VVPAT पार्ट पेपर ट्रेन के सत्यापन से चुनाव परिणाम में 99% से अधिक सटीकता उत्पन्न होगी ई सी आई  ने आगे कर दिया की दिशा निर्देश 16.6 के संदर्भ में सत्यापन के लिए 479 एवं के बजाय 4125 EVM के VVPAT ट्रेन के सत्यापन की आवश्यकता थी जो आईएसआई द्वारा रिपोर्ट की तुलना में 8 गुना अधिक था 2019 में महुआ मोइत्रा इंडिया और बड़ा कोर्स किया चुका है 2019 के लोकसभा चुनाव होने के बाद आने के बाद की शुरुआत के पहले सांसद दिए चुनाव थे टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा द्वारा अदालत के समक्ष याचिका दायर की गई थी जिसे मतदान निकाय को मतदाता मतदान और अंतिम विवरण चुनाव में वोटो की गिनती उनकी वेबसाइट पर प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी इस वर्ष यानी 2019 में विभि न्न निर्वाचन क्षेत्र में मतदान की संख्या यानी एशियाई द्वारा संकलित और प्रदान किए गए मतदाता मतदान डाटा और जिन गए वोटो की संख्या के बीच गंभीर विसंगतियों का आरोप लगाते हुए एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और बड़ा कैसे में भी संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की दोनों संगठनों ने इस बात पर जोर दिया कि इसी का उसके द्वारा आयोजित चुनाव से संबंधित सटीक डाटा एकत्र करना और प्रकाशित करना वैधानिक कर्तव्य है अब आते हैं 2023 में इंडिया द्वारा डायरी याचिका पर अदर बना 2023 में अदर ने शीश न्यायालय के समक्ष एक और याचिका दायर की जिसमें कहा गया की प्रचलित प्रक्रिया जिसके माध्यम से एशियाई केवल सभी एवं में से इलेक्ट्रॉनिक रूप से दर्ज वोटो की गिनती करता है और प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में केवल पांच बेदर्दी ढंग से चयनित मतदान केदो में भी पद के साथ संबंध एवं को क्रॉस सत्यापित करता है उसमें कमी है प्रार्थना के समर्थन में याचिका करता संगठन का दावा था कि मतदाता की यह पुष्टि करने की आवश्यकता की उनके वोट जैसा डाला गया पैसा दर्ज किया गया है कुछ हद तक पूरी हो जाती है जब एवं पर बटन दबाने के बाद लगभग 7 सेकंड के लिए बीवी पार्ट प्रदर्शित होती है याचिका न केवल उपरोक्त अधिकार को लागू करने की मांग करती है बल्कि यह भी प्रार्थना करती है कि सुब्रमण्यम स्वामी के मामले में 2013 के फैसले के तात्पर्य और उद्देश्य को प्रभावी बनाया जाए यह दावा किया जाता है कि कानून में एक पूर्ण वैक्यूम मौजूद है क्योंकि एशिया ने मतदाता को ही सत्यापित करने के लिए कोई प्रक्रिया प्रदान नहीं की है कि उनका वोट रिकॉर्ड के रूप में गिना गया है जो मतदाता सत्यापन का एक अनिवार्य हिस्सा है यह ध्यान दिया जा सकता है कि जहां अदर की 2019 की आज का में एवं डाटा और मतदाताओं द्वारा हस्ताक्षर किए जाने वाले रजिस्टर्ड के बीच वेरिफिकेशन की मांग की गई थी वहीं 2023 की याचिका में एवं और वीवीपीएटी के दाता के बीच वेरिफिकेशन की मांग की गई है सितंबर 2023 में शीर्ष न्यायालय के समकक्षदार एक हाफना में एवं पर डाटा के व्यापक सत्यापन के लिए एडर की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह स्पष्ट और निराधार आधार पर एवं और वीवीपीएटी की कार्य प्रणाली पर संदेह पैदा करने का एक और प्रयास था इसके अलावा यह तार दिया गया कि सभी बीवी पद पेपर पर्चियां को मैन्युअल रूप से गन्ना जैसा कि सुझाव दिया गया है न केवल श्रम और समय के लिए ज्यादा होगा बल्कि मानवीय त्रुटि और शर्त का भी खतरा बढ़ाएगा जहां तक उपयुक्त मौलिक अधिकार के बारे में अदर के दावे का सवाल है इसी में स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसा मतदाताओं के पक्ष में कोई अधिकार मौजूद नहीं है इसके अलावा एक और याचिका है जो सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है जो कहती है कि मतपत्र से मतदान नियम है एवं के वाले का अपवाद वकील ने हस्तआक्षेप की मांग की नवीनतम घटनाक्रम में अधिवक्ता मोहम्मद प्राचार्य ने अरुण कुमार अग्रवाल के मामले में एक हस्तक्षेप आवेदन के साथ इरशाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है जिसमें सुझाव दिया गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान मतपत्र का उपयोग करके होना चाहिए उन्होंने दावा किया है कीमत पत्र से चुनाव कराना नियम है और इसी केवल असाधारण परिस्थितियों में कैसे डर के सदर पर एवं का उपयोग करने पर विचार कर सकता है जिसे एक आदेश में दर्ज किया जाना चाहिए आपको इस मामले के बारे में जान के क्या लगता है हमें जरूर बताइए नीचे कमेंट सेक्शन इस पोस्ट को लाइक करिए और ज्यादा से ज्यादा शेयर करके हमारे पेज को प्रोत्साहित करिए ताकि हम इसी तरह के और पोस्ट बनाकर आपको ताजा मुद्दों के बारे में बता सके तो चलिए इसी के साथ हम आपसे मिलेंगे अगले पोस्ट में यूट्यूब चैनल कानून की रोशनी को सब्सक्राइब करना बिल्कुल मत भूलिएगा धन्यवाद

Mohammed Saleem

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