अग्रिम जमानत क्या है जानिए इस पोस्ट के अंदर ! Know what is anticipatory bail in this post !

हेलो दोस्तों वेलकम टू माय यूट्यूब चैनल गुरुकुल का ज्ञानी आज कि पोस्ट में हम बात करने वाले हैं की अग्रिम जमानत क्या होती है ।
तो दोस्तों आपका स्वागत है मेरे इस यूट्यूब चैनल पर।
दोस्तों जब हम पर कोई एफआईआर होती है या होने वाली होती है तो हमारे दिमाग में सबसे पहले यह बात आती है कि कोर्ट से अग्रिम जमानत यानी एंटीसिपेटरी बैल ले ली जाए ।
ताकि पुलिस हमें गिरफ्तार न कर सके और हमें उस केस के कारण कम से कम परेशानियों का सामना करना पड़े एंटीसिपेटरी बैल से रिलेटेड प्रोविजन सैक्शन 438 सीआरपीसी में दिए गए हुए थे लेकिन अब भारत में नया कानून लागू हो गया है आईपीसी की जगह और सीआरपीसी की जगह ।


भारत में 1 जुलाई 2024 से आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता और सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लागू कर दिया गया है अब जो भी ऑफेंस होंगे बीएनएस और बीएनएसएस के द्वारा ही आरोप तय किए जाएंगे ।
हम बात कर रहे थे अग्रिम जमानत की । सैक्शन 438 सीआरपीसी की जगह अब 482 बीएनएसएस में बताया गया है की पुलिस के अरेस्ट करने के पहले हम कोर्ट से बेल कैसे ले सकते हैं ।
आज की पोस्ट में हम इसी से रिलेटेड चीजों को डिस्कस करने वाले हैं पोस्ट शुरू करने से पहले मैं यह रिक्वेस्ट करूंगा कि अगर आप कानून से संबंधित पोस्ट देखने में इंटरेस्टेड है तो आप मेरे इस यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब जरूर करके रखें जिन लोगों ने भी सब्सक्राइब नहीं किया वह सबसे पहले सब्सक्राइब जरूर करें । ताकि कानून से संबंधित पोस्ट आपको मिलते रहे ।
दोस्तों 1973 से पहले अग्रिम जमानत का कोई भी क्रिमिनल प्रोसीजर कोड नहीं था ।
लेकिन लॉ कमीशन ने जब रिपोर्ट दी तो उसमें इस बात का जिक्र किया गया कि काफी ऐसे मामले हैं जो नॉन बेलेबल केसेस के होते हैं ।
जो कि झूठे दर्ज करवा दिए जाते हैं जिनमे पुलिस को अरेस्ट करना होता है या पुलिस मनमानी से भी अरेस्ट कर सकती है ।
इसलिए उस रिपोर्ट में अग्रिम जमानत यानि एंटीसिपेटरी बैल का प्रोविजन ऐड करने की सिफारिश की गई थी ।
इसी के परिणाम स्वरुप जब 1975 में क्रिमिनल प्रोसीजर कोड लाई गई तो उसमें सैक्शन 438 के रूप में इस प्रोफेशन को जोड़ा गया था हालांकि सैक्शन 438 में अग्रिम जमानत जैसा कोई शब्द नहीं है लेकिन समय के साथ-साथ सेक्शन 438 के लिए अग्रिम जमानत या एंटीसेप्टिक फेल जैसे शब्द प्रचलित हो गए ।
सेक्शन 438 के अनुसार अगर किसी व्यक्ति को यह विश्वास के साथ लगता है कि उसको किसी नॉन बेलेबल अपराधों के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह इस धारा के अधीन हाई कोर्ट या सेशन कोर्ट में एप्लीकेशन फाइल कर सकता है की ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसे जमानत पर छोड़ दिया जाय।

और दूसरी बात इस इस तरह की बेल देने की पावर सिर्फ हाई कोर्ट और सेशन कोर्ट को ही हैं।
और एक इंपॉर्टेंट बात ।
की अग्रिम जमानत के लिए कोई टाइम नहीं होता कि कितने टाइम के लिए बेल होगी ।
बेल एप्लीकेशन में उस व्यक्ति की पूरी डिटेल देनी होती है और उस अपराध या घटना की पूरी डिटेल देनी होती है जिससे गिरफ्तारी की आशंका है और यह भी बताना होता है कि अपराधी घटना के बारे में अरेस्ट किए जाने की आशंका है और बेल एप्लीकेशन में यह लिखना होगा कि उस व्यक्ति का अपराधी घटनाओं में कोई रोल नहीं है फिर भी अन्य तरीके से उसे फसाने का प्रयास किया जा रहा है ।
दोस्तों अग्रिम जमानत के लिए यह भी जरूरी है की जमानत चाहने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई और क्रिमिनल केस पहले से दर्ज नहीं हो ।
या उससे पहले कभी कोर्ट से सजा न मिली हो ।
अगर पहले कोई केस हो लेकिन उस व्यक्ति को उस कैस में बरी कर दिया गया हो । तो उस से संबंधित डॉक्यूमेंट भी बेल एप्लीकेशन के साथ जरूर पेश करें क्योंकि इन चीजों को भी कोर्ट बैल ऑर्डर के टाइम में कंसीडर करता है । जो व्यक्ति अग्रिम जमानत के लिए अप्लाई करता है अगर वह घटना के टाइम पर घटनास्थल पर नहीं होकर किसी और जगह था तो उससे रिलेटेड सबूत भी कोर्ट के सामने पेश करने चाहिए ।
इसके अलावा ऐसे सारे डॉक्यूमेंट जिसे प्रूफ होता हों कि वह व्यक्ति निर्दोष है था सब चीज़ एप्लीकेशन के साथ जरूर पेश करने चाहिए ।
अगर एंटीसिपेटरी बैल चाहने वाला व्यक्ति पहले से बीमार हो तो उसकी बीमारी के डॉक्यूमेंट भी पेश करने चाहिए ।
एप्लीकेशन में यह भी लिखना होगा कि वह व्यक्ति अपनी जमानत के लिए कोर्ट के आदेश के अनुसार जमानत के लिए तैयार है और अगर कोर्ट अग्रिम जमानत के लिए कोई शर्त इंपोज्ड करता है तो उसकी पालना के लिए भी तैयार है ।


जनरली कोर्ट अग्रिम जमानत गदेते समय इस प्रकार की कंडीशन इंप्रूव कर सकता है कि जिस व्यक्ति को अग्रिम जमानत दी जा रही है वह बिना कोर्ट की परमिशन के देश छोड़कर नहीं जाएगा या फिर पुलिस द्वारा की जा रही इन्वेस्टिगेशन में पूरा सहयोग करेगा हालांकि सैक्शन 482 बीएनएसएस के प्रोविजन के अनुसार आप सीधे हाई कोर्ट में एप्लीकेशन पेश कर सकते हैं । लेकिन आजकल जब सीधे हाईकोर्ट में एप्लीकेशन पेश की जाती है तो हाई कोर्ट सबसे पहले तो यही पूछताछ करती है कि आपने सेशन कोर्ट में एप्लीकेशन पेश क्यों नहीं की इसलिए बेहतर यही होगा आपके लिए कि आप पहले सेशन कोर्ट के सामने एप्लीकेशन पेश करें और अगर सेशन कोर्ट किसी कारण से बेल ना दे पाए । जब आप हाई कोर्ट में एप्लीकेशन पेश करें ।
दोस्तों एंटीसिपेटरी बैल से रिलेटेड सुप्रीम कोर्ट का एक जजमेंटल है जोकि शुशीला अग्रवाल वर्सेस स्टेट ऑफ सिटी आफ दिल्ली एंड अदर्स का है ।
जो कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 29 जनवरी 2020 को दीया गया था इस जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन जारी की थी कि एंटीसिपेटरी बैल किन परिस्थितियों में दी जा सकती है और क्या-क्या कंडीशन लगाई जा सकती है जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि जब एक बार किसी व्यक्ति को किसी मैटर में एंटीसिपेटरी बैल मिल जाती है यानी अग्रिम जमानत मिल जाती है हालांकि अग्रिम जमानत मिलने के बाद इन्वेस्टिगेशन करने वाली एजेंसी को यह अधिकार होता है कि वह उस व्यक्ति को जांच के लिए बुलाया जा सकता है या फिर उससे सबूत कलेक्ट कर सकते हैं ।
अपने जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया है कि बेल देना या ना देना कोर्ट का विवेकाधिकार होता है और बैल देते टाइम कोर्ट किसी भी टाइप की कंडीशन यूज कर सकती है ।
जो भी परिस्थितियों की अनुसार जरूरी होगा ।
और यदि किसी कंडीशन का वायलेंस किया जाता है तो पुलिस बिल्कुल रिजेक्ट करवाने के लिए एप्लीकेशन भी फाइल कर सकती हैं ।
सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट में कहा की अग्रिम जमानत देते समय उस व्यक्ति का सामान्य व्यवहार इमेज और उसके आपराधिक रिकार्ड को भी देखना चाहिए ।
दोस्तों उम्मीद है आपको मेरी पोस्ट पसंद आई होगी ।
आगे भी मैं आपके लिए कानून से रिलेटेड पोस्ट लाता रहूंगा तो पोस्ट पसंद आई है तो पोस्ट को लाइक शेयर जरूर करें और ऐसे ही नॉलेजेबल पोस्ट चैनल पर आते रहेंगे तो चैनल को सब्सक्राइब जरूर करके रखें थैंक्स फॉर  गाइस ।

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Mohammed Saleem

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